अम्मा मुझे मना मत करो

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रामदीन अपने गाँव की एक सुंदर-सी लड़की वैजंती से प्यार कर बैठा था। वह हर रोज़ वैजंती के घर के सामने से निकलता; एक बार नहीं, कभी-कभी तो दो तीन बार भी। जब तक वैजंती उसे दिखाई नहीं देती वह उसे रास्ते के पीछे ही पड़ जाता। वैजंती भी धीरे-धीरे समझने लगी कि यह लड़का उसी के लिए इस तरफ़ के चक्कर लगाता रहता है। धीरे-धीरे वैजंती को भी उसका इंतज़ार रहने लगा। जब तक वह भी रामदीन को ना देख ले उसका मन शांत नहीं होता। एक अजीब-सी बेचैनी उसे परेशान करती रहती। अब रोज़-रोज़ के आने-जाने से रामदीन को इतना तो समझ आ ही गया था कि उसे ग्रीन सिग्नल मिल रहा है। वैजंती उसे देखते ही शरमा कर अंदर भाग जाती लेकिन अगले दिन उसी समय फिर से बाहर आकर बैठ जाती। एक दिन वैजंती के पिता ने रामदीन पर नज़र पड़ते ही उसे आवाज़ लगाई, “ऐ लड़के इधर आ …” रामदीन कुछ पल के लिए घबरा गया परंतु फिर निडरता के साथ चलता हुआ वैजंती के पिता के पास आकर खड़ा हो गया और पूछा, “क्या है काका आपने मुझे क्यों बुलाया?”

Full Novel

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 1

रामदीन अपने गाँव की एक सुंदर-सी लड़की वैजंती से प्यार कर बैठा था। वह हर रोज़ वैजंती के घर सामने से निकलता; एक बार नहीं, कभी-कभी तो दो तीन बार भी। जब तक वैजंती उसे दिखाई नहीं देती वह उसे रास्ते के पीछे ही पड़ जाता। वैजंती भी धीरे-धीरे समझने लगी कि यह लड़का उसी के लिए इस तरफ़ के चक्कर लगाता रहता है। धीरे-धीरे वैजंती को भी उसका इंतज़ार रहने लगा। जब तक वह भी रामदीन को ना देख ले उसका मन शांत नहीं होता। एक अजीब-सी बेचैनी उसे परेशान करती रहती। अब रोज़-रोज़ के आने-जाने से रामदीन ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 2

रामदीन और पार्वती बेचैनी से वैजंती के आने का इंतज़ार कर रहे थे। पार्वती सोच रही थी कैसी होगी होने वाली बहू। कुछ ही समय में वैजंती अपनी माँ के साथ एक हाथ में मिठाई और कचौरी से भरी प्लेट लेकर वहाँ आई। रामदीन की निगाहें वैजंती के चेहरे पर अटक गईं लेकिन उसकी अम्मा की आँखें वैजंती के चेहरे से होते हुए उसके हाथों पर आकर अटक गईं। वह समझ गईं कि इस लड़की का तो एक हाथ काम नहीं कर रहा है। उनका मन भारी हो गया और वहाँ एक सन्नाटा-सा छा गया। तभी इस सन्नाटे को ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 3

जब सुखिया केवल दस वर्ष की थी तब एक दिन अचानक उसको चाक घुमाता देखकर रामदीन की आँखें फटी फटी रह गईं। उसे ऐसा लग रहा था मानो सुखिया ऐसी अद्भुत कला अपने साथ खून में समेट कर ले आई है। सुखिया के हाथ चाक पर इस तरह घूम रहे थे मानो महीनों का अभ्यास करके आई हो। मिट्टी का वह खिलौना ऐसा रूप ले रहा था जैसा कि ख़ुद रामदीन बनाया करता था। इतनी छोटी उम्र और छोटे-छोटे हाथों से यह हो पाना असंभव नहीं तो अत्यधिक कठिन अवश्य ही था। रामदीन ने आखिरकार सुखिया से पूछ ही ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 4

सुखिया की आँखों में आँसू थे, उसे दुख था लेकिन अपने हाथों पर उसे विश्वास भी था। वह सब लेगी बस यही सोच उसे मजबूती दे रही थी। वैजंती ने अपनी बेटी के पास आकर कहा, “सुखिया अब हमारा क्या होगा बिटिया?” फिर अपने हाथ की तरफ़ इशारा करते हुए आगे कहा, “मैं तो लाचार हूँ, जैसे तैसे घर का काम कर लेती हूँ।” सुखिया ने अपनी माँ को प्यार से निहारते हुए कहा, “अम्मा रो मत, बाबू जी ने मुझे सब कुछ सिखा दिया है। मैं हूँ ना मैं सब कर लूंगी।” वैजंती को नन्ही सुखिया की बातों ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 5

वैजंती उसके मन में चाहे जो भी सोच रही हो लेकिन सुखिया का इरादा अटल था। मेले में जाने उत्साह ने उसे और भी अधिक जोश से भर दिया था। धीरे-धीरे सुखिया ने बहुत सारे बर्तन और मटके आदि बना लिए। वह उन पर रंग भरकर सुंदर चित्रकारी भी करने लगी। यदि माँ सरस्वती का आशीर्वाद लेकर किसी का जन्म होता है और मेहनत करने की चाह होती है तो कला हाथों से निकलकर कलम, पेंसिल या चित्रकारी करने के ब्रश तक अपने आप ही पहुँच जाती है। सुखिया तो जैसे माँ सरस्वती का आशीर्वाद लेकर ही पैदा हुई ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 6

जिस मेले का इंतज़ार सुखिया कर रही थी उस मेले में आने की चाह आसपास के गाँव के लोगों भी उत्साह भर रही थी। सागर उसी शहर में रहने वाले एक बहुत बड़े बिज़नेस मैन थे। इस मेले के बारे में पता चलते ही उन्हें भी उनकी बेटी अनाया को यह शानदार मेला दिखाने की इच्छा हो गई। जब उनके घर में अनाया को मेला दिखाने की बात चल रही थी, तब उसकी मम्मी नैंसी ने उससे कहा, “अनाया अपने शहर में एक बहुत ही सुंदर मेला लगा है। तुम्हें वहाँ जाकर बहुत अच्छा लगेगा। बहुत सी नई-नई चीजें ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 7

वैजंती ने रोती हुई अनाया को बड़े ही प्यार के साथ अपने पास बुलाकर बिठाया और उसके आँसू पोंछते कहा, “डरो नहीं बिटिया, तुम्हारे पापा तुम्हें ढूँढते हुए यहाँ ज़रूर आ जाएंगे।” “तुम्हारा नाम क्या है?” “अनाया …” उसने रोते हुए कहा। सुखिया के हाथ अब भी चाक पर घूम रहे थे। सुखिया भी थी तो उसी की उम्र की लेकिन उससे कहीं ज़्यादा परिपक्व थी, जिसका कारण था हालात। खैर सुखिया ने उससे कहा, “देखो मैं कैसे बर्तन बनाती हूँ इसके ऊपर। तुम भी बनाओगी अनाया?” सुखिया चाह रही थी कि किसी तरह से वह रोना बंद कर ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 9

सुखिया के हाथों से बने इतने सुंदर बर्तन देखने के बाद सागर के मन में एक प्रश्न उठा और जवाब जानने के लिए उन्होंने उससे पूछा। “अच्छा यह बताओ सुखिया आप स्कूल जाती हो या नहीं?” “जाती हूँ अंकल, मेरे बाबूजी कहते थे पढ़ाई बहुत ज़रूरी है। मैं पढ़ाई भी करूंगी और हमारी इस कला को ज़िंदा भी रखूंगी।” उसके बाद सागर ने उन्हें अपनी कार में बिठा कर उनके घर तक छोड़ दिया। जाते समय सागर ने कहा, “वैजंती जी मैं अगले हफ्ते मेरे ड्राइवर को भेजूंगा, आप लोग शहर आ जाना। वहाँ सुखिया के लिए मैंने कुछ ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 8

सागर के बहते आँसुओं और उनके दुःख का एहसास वैजंती को हो रहा था। वह गलती से हुए उनके दर्द को समझ रही थी जो अनजाने में ही उनसे हो गई थी। अपने एक ही हाथ से हाथ जोड़ने की कोशिश करते हुए उसने कहा, “साहब जी हम जानते थे, आप अपनी बेटी को ढूँढते हुए इधर ज़रूर आएंगे।” तब तक सागर की नज़र सुखिया के बनाए सुंदर रंग बिरंगे मिट्टी के बर्तनों पर पड़ गई। उन्होंने उन खिलौनों और बर्तनों को तब ध्यान से देखा तो उनके मुँह से अनायास ही निकल गया, “वाह अद्भुत, कितने सुंदर बर्तन, ...और पढ़े

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अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 10 - अंतिम भाग

गाँव की वह छोटी सी सुखिया बड़ी होते-होते शहर की जानी मानी सुखी मैम बन गई; जिसकी बनाई मिट्टी सभी वस्तुएँ ख़ूब बिकती थीं। अपनी बेटी की सफलता देखकर वैजंती को याद आता कैसे सुखिया ने एक दिन उससे गिड़गिड़ाते हुए कहा था, 'अम्मा मुझे मना मत करो, कोशिश तो करने दो' यह सोचते ही वैजंती को लगता, अच्छा हुआ जो उसने सुखिया को उसकी मर्जी से यह सब करने दिया। आज उसकी सुखिया, सुखिया से सुखी मैम बन गई है। एक शो रूम तो सागर ने सुखिया को दिया ही था लेकिन शहर में अगला शो रूम सुखिया ...और पढ़े

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