जिंदगी के रंग हजार

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प्यार मतलब लगाव,आत्मीयता,प्रेम,जुड़ाव,खिंचाव,चाहत अनेक शब्द है प्यार के लिए प्यार के अनेक रूप है माँ का बेटे से या बेटे का। माँ से प्यार बाप का बेटी से या बेटी का बाप से प्यार भाई का भाई से प्यार बहन का भाई से प्यार बहन का बहन से प्यार जीजा साली का प्यार जीजा सलेज का प्यार प्यार के अनेक रूप है लेकिन सबसे जुदा है आदमी औरत का प्यार यह एक सुखद एहसास है आदमी औरत दो विपरीत लिंग।विपरीत में आपस मे खिंचाव होता है।एक आकर्षण होता है।एक दूसरे को पा लेने की लालसा होती है।उत्कंठा होती है।और वे मिलन को आतुर हो जाते है। स्त्री पुरुष के शारीरिक मिलन से नवसृजन होता है।और यही सृष्टि का आधार है।इससे परिवार बनता है।परिवार से खानदान और खानदान से देश और देशों से दुनिया।

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जिंदगी के रंग हजार - 1

प्यारमतलबलगाव,आत्मीयता,प्रेम,जुड़ाव,खिंचाव,चाहतअनेक शब्द है प्यार के लिएप्यार के अनेक रूप हैमाँ का बेटे से या बेटे का। माँ से प्यारबाप बेटी से या बेटी का बाप से प्यारभाई का भाई से प्यारबहन का भाई से प्यारबहन का बहन से प्यारजीजा साली का प्यारजीजा सलेज का प्यारप्यार के अनेक रूप हैलेकिन सबसे जुदा है आदमी औरत का प्यारयह एक सुखद एहसास हैआदमी औरत दो विपरीत लिंग।विपरीत में आपस मे खिंचाव होता है।एक आकर्षण होता है।एक दूसरे को पा लेने की लालसा होती है।उत्कंठा होती है।और वे मिलन को आतुर हो जाते है।स्त्री पुरुष के शारीरिक मिलन से नवसृजन होता है।और यही ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 2

नाइफ्री की रेवड़ी और विकास कर्नाटक के कांग्रेसी विधायको में विकास निधि को लेकर असन्तोष है।चुनाव के समय पार्टी किये गए पांच फ्री के वादों को पूरा करने की वजह से सरकार के पास धन की कमी के रहते सरकार विकास निधि का पैसा नही दे पाएगी।और पैसा नही मिलेगा तो विधायक अपने क्षेत्र की जनता से किये वादे कैसे पूरा करेंगे।वह अपने क्षेत्र में विकास कार्य नही करा पाएंगे और जब वे काम नही करा पाएंगे तो जनता नाराज होगी।फ्री की रेवड़ी के कल्चर की शुरुआत केजरीवाल ने की ऐसा माना जाता है।उसने दिल्ली में तीन सौ यूनिट ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 3

इकीसवीं सदीऔरत अब घर की चारदीवारी में कैद नही रही।जल,थल,नभ को छोड़िए उसके कदम अंतरिक्ष मे भीपड़ चुके है।जीवन कोई भी क्षेत्र हो औरत मर्द के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।ऐसे क्षेत्रों की भी कमी नही है,जिनमे औरत मर्द से आगे निकल चुकी है।तो क्या यही आज की हकीकत है?अगर आपका उतर हाँ है तो आप गलत है।सौ प्रतिशत गलत है।दुनिया की आधी आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी मर्द का गुलाम है।आज भी शोषण,अत्याचार,जुल्म,उत्पीड़न का शिकार है।युद्ध हो या आतंकवाद उसका दंश औरत को ही झेलना पड़ता है।युद्ध होने पर हजारों,लाखो औरते विधवा हो जाती है।यह ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 4

इमरजेंसीदेश पर इमरजेंसी थोपी गयी थी।कब लगी थी।यह उन लोगो के लिए जो 21 मार्च 1977 के बाद पैदा पढ़ने या सुनने का विषय हो सकता है।लेकिन मेरे जैसे या मेरी जैसी उम्र के लोगो ने इसे अपने अपने तरीके से झेला है या भुगत भोगी है।24 और 25 जूनवैसे तो ये तारीखे है।कलेंडर की तारीख जो हर साल आती है।जन तारीखों का किसके लिए क्या महत्व है।यह मैं नही जानता लेकिन मेरे जीवन मे इन तारीखों का बहुत महत्त्व है।24 जून 1973 को मुझे जीवनसाथी के रूप में इंद्रा उर्फ गगन मेरे जीवन मे आयी थी।25 जून को ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 5

रेलवेमैं रेलवे में उस समय बुकिंग क्लर्क था।मेरी सर्विस के वे शुरुआत के साल थे।1974 कि रेलवे की हड़ताल मैं देख चुका था।आपातकाल मे रेलवे मे भी भय का माहौल था।हर पल छापे पड़ते रहते थे। विजिलेंस व अन्य एजेंसीय वाले घर भी पहुंच कर पत्नी से जानकारी करते कि पति घर कितने पैसे लाता है।स्टेशन पर नजर आने वाला हर अजनबी या परिचित कोई खुफिया विभाग का लगता।हर समय डर पसरा रहता।चाहे घर पर ही या ड्यूटी पर।हर पल सतर्क ओर सावधान रहकर काम करना पड़ता था।पत्नी भी चिंतित रहती।मैं आगरा में था इसलिए आगरा जम के हालातएम ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 6

मेहता साहिबमेहता साहिब का नाम सुनते ही आपको तारक मेहता का उल्टा चश्मा याद आ गया होगा।यह टी वी है जो कई वर्षों से टी वी चैनल पर चल रहा है।।इस सीरियल में तारक मेहता एक प्रमुख पात्र के साथ साथ सूत्रधार भी है।ये सीरियल बच्चे बूढ़े जवान सब ने पसन्द जीकिया औऱ इसे दखते है।लेकिन मैं तारक मेहता के उल्टे चश्मे के तारक मेहता की बात नही कर रहाफिरमैं अपने बॉस की बात कर रहा हूँ।उनका नाम था ओम दत्त मेहता मंझले कद के बलिष्ट शरीर के।उनका जन्म आज के पाकिस्तान में हुआ था वह सेकंड वर्ल्ड वार ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 7

और पहली ड्यूटी इसी खिड़की की मिलीथी।परेशानी आयी।उन दिनों लकड़की की ट्यूब होती थी।इसमें कार्ड टिकट की साइज के होते थे।जिसमें टिकट भरने पड़ते थे।हर स्टेशन का एक खाँचा और चाइल्ड टिकट का अलगऔऱ जिन मेहताजी को लोग गुस्से वाला कहते या उनसे डरते थे।वह वैसे नही थे।मैं उनके करीब आने लगा।कैसेसर्विस में काम का बड़ा महत्त्व होता है।और हर इंचार्ज अपने उस सहायक को पसन्द करता है जो काम करे और ओबीडेन्ट होबुकिंग ऑफिस में उन दिनों बहुत काम होता था।आजकल कम्प्यूटर न बहुत कुछ आसान कर दिया है।जैसा मैंने कहा उन दिनों कार्ड टिकट का जमाना था।साल ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 8

सन 1971 में मेरा रिश्ता तय हो गया था।रिश्ता तय का मतलब चट मंगनी पट ब्याह नही।आजकल तो हो है।लेकिन मेरे साथ ऐसा नही हुआ।सितम्बर1971 में सगाई हुई और शादी जून1973 में हुई इसकी वजह थी मोहरत का न होना।वैसे आजकल जन्मपत्री मिलाने का सिर्फ नाटक होता है क्योंकि अगर जन्मपत्री न मिले या मोहरत न निकले तो पंडित उल्टे सीधे रास्ते से सब कुछ कर देते हैंलेकिन न हमारी तरफ से न ही लड़की पक्ष की तरफ से ऐसा प्रयास किया गया।जो मोहरत निकला उसी को मानकर शादी का निर्णय लिया गया।और इस लम्बे दौरान के बीच दोनों ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 9

पत्नी की डिलीवरी पर मैं काफ़ी परेशान रहा था।और पत्नी की ऑपरेशन से डिलीवरी हुई थी।पत्नी को एक महीने अस्पताल रहना पड़ा क्योंकि कुछ टांके टूट गए थे।तब मैं मेहताजी के साथ मल्होत्रा अस्पताल गया था।मैं चाहता था।पत्नी को सरकारी अस्पताल से निजी में भर्ती करा दू।लेकि न वहा पर हमारी बात सुनकर उन्होंने सलाह दी थी कि शिफ्ट न किया जाएबहुत सी यादे जुड़ी है।मेहताजी के साथ।एक बार जे सी शर्मा के भाई की शादी में मेहताजी के साथ मैं भाटिया ,सैनी और शांति लाल गए थे।उस रात हम रास्ता भटक गए और हमे रात भर भटकना पड़ाथामेहताजी ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 10

प्रवृत्ति----------"राशन मिला काजयपुर गया हुआ था।वहाँ हर चीज महंगी है।सब्जी भी।हमारे यहाँ जो सब्जी सीजन में 10 या 20 किलो तक मिल जाती है।वो सब्जी वहा दुकान पर 40 रु किलो से कम नही मिलती।वहा पर सप्ताह में एक दिन हाट लगती है यानी बाजार।इसमें सब्जी,किराना,कपड़े,फल सभी चीजों की दुकानें लगती है।भेल पूड़ी,पानी पूड़ी, समोसे जलेबी खान पान के भी ठेले लगते है।सब्जी बहुत सस्ती मिलती है।और भी सामान।बहुत भीड़ होती है।लोग एक हफ्तेइकि सब्जी खरीद कर लजाते है।मैं भी सब्जी लेने गया था।मंडी के बाहर एक बंददुकान के चबूतरे पर बैठा था।एक औरत मंडी के अंदर से सब्जी ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 11

"मैने तो बाबू से बोल दिया है।तू चाहे जो ले लेना लेकिन मेरा सेटलमेंट सही से कर देना"मेरे एक है।जो अभी कुछ महीने पहले केंट स्टेशन से गार्ड से रिटायर हुए हैं।रेल सेवा स रिटायर होने पर कर्मचारी का अपना फंड जो जमा होता है।वो तो मिलता ही है।उसके अलावा छुट्टियों का पैसे,ग्रेच्युटी,पेंशन बिक्री,इन्सुरेंस आदि का पैसा भी मिलता है।अब नियम तो ये है।सेवा निवर्ती के दिन सब पैसा मिल जाना चाहिए और मिलता भी है।लेकिन बाबू चाहे तो आपको आर्थिक हानि पहुंचा सकता है।भले ही इससे उसका कोई फायदा न हो।और इसी लिए लोग बाबू को पैसे देते ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 12

कुछ खट्टी मीठी बाते"खटाककुछ टूटने की जोर से आवाज आयी थी।परेश पलँग पर लेटा हुआ मोबाइल देख रहा था।आवाज वह उठते हुए बोला"क्या हुआऔर वह किचन में जा पहुंचा।किचन में उसकी बहन रेखा औऱ पत्नी दीपा काम कर रही थी।परेश की अभी2 महीने पहले ही शादी हुई थी।रेखा रसोई की सफाई कर रही थी और दीपा सिंक में बर्तन धो रही थी।बर्तन धोते समय दीपा के हाथ से कांच के डिनर सेट जी प्लेटे गिर कर टूट गयी थी"भाभी।भैया बेंगलोर स इसे खरीद कर लाये थे।वह नाराज होंगेननद की बाते सुनकर दीपा रुआंसी हो गई थी।मैके मे ससस कोई ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 13

डॉक्टर ने रिज्यूम करने के लिए बोल दिया है"क्या?मैं उसकी बात सुनकर चोंका था"डॉक्टर ने सिक आगे नही बढ़ाई करने के लिए बोला है"तुम।कैसे नौकरी करोगे।तुम तो अभी खड़े ही नही हो सकते?"डॉक्टर तो रिज्यूम करा रहा हैमेरे साथ कार्यरत रहा,मेरा शागिर्द मेरा शिष्य विनीत अभी सेवा में था।लेकिन वह वोलेंट्री रिटायरमेंट के लिए अप्लाई कर चुका था।वह पिछले तीन चार साल से वोलेंट्री लेना चाह रहा था।हर बार मेरे समझाने पर मा न जाता था।पर अबकी बार जब उसने कहा तो मैं बोला,"अगर ज्यादा परेशानी हो रही है तो दे देहालांकि उसके रिटायरमेंट में अब सिर्फ एक साल ...और पढ़े

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जिंदगी के रंग हजार - 14

आंकड़े और महंगाईअरहर या तूर की दाल 180 रु किलोउडद की दाल 160 रु किलीचने 100 रु किलोआप कोई भी दाल ले ले या चने,मोठ, साबुत मशहूर या कोई और सबके दाम बढे है।गेंहू का आटा चक्की से पहले 25 या 26 रु किलो आता था।अब 35 या 36 रु किलो है।अलग अलग कम्पनियों का सील बन्ध आटा आता है वो तो और भी ज्यादा महंगा है।गेंहू के अलावा जो,बाजरा, मक्का,ज्वार आदि के भाव भी पिछले साल के मुकाबले बढ़े हैं और इनके आटे के दाम भी बढ़े हैं।पहले यह कहा जाता था।अरे आदमी और कुछ नही तो दाल ...और पढ़े

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