शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ

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।।। एकांत ।।। ................ सब ने देखा फूल सा खिलता सदा जिसका बदन । कोई क्या जाने कि वह कैसे जिया एकांत में ।। जिन लवों की बात सुन सब खिलखिलाते मस्त हो। बुदबुदाते हैं वही लव बैठकर एकांत में ।। लोग ऐसे भी जिन्होंने जन्म से ही जुल्म ढाए। वह भी रोते हैं कभी कुछ सोचकर एकांत में ।। एक घर है जिसको वह मंदिर समझता था कभी। आज उसके द्वार तक जाता है पर एकांत में ।। मद भरे मादक नयन मदिरा पिला मदहोश करते। खुद बुझाते प्यास अपनी अश्रु से एकांत में ।। है किसे फुर्सत लगाए आंसुओं का जो गणित। कौन जाने किसने कब कितने पिये एकांत में ।। दोस्त तुमने आजतक जग की सुनी जग से मिले हो। पर कभी अपनी सुनो खुद से मिलो एकांत में ।। शोरगुल से दूर तुमको जब कभी फुर्सत मिले। जी के देखो जिन्दगी क्षणभर कभी एकांत में ।।

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शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 1

।।। एकांत ।।। (1) .................. सब ने देखा फूल सा खिलता सदा जिसका बदन । कोई जाने कि वह कैसे जिया एकांत में ।। जिन लवों की बात सुन सब खिलखिलाते मस्त हो। बुदबुदाते हैं वही लव बैठकर एकांत में ।। लोग ऐसे भी जिन्होंने जन्म से ही जुल्म ढाए। वह भी रोते हैं कभी कुछ सोचकर एकांत में ।। एक घर है जिसको वह मंदिर समझता था कभी। आज उसके द्वार तक जाता है पर एकांत में ।। मद भरे मादक नयन मदिरा पिला मदहोश करते। खुद बुझाते प्यास अपनी अश्रु ...और पढ़े

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शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 2

।।। दिल की बात ।।। (5) .................. जुवां पर आकर थम जाती है कैसे कह दूँ दिल बात । कोई भी मरहम न दे सका सभी से मिले मुझे आघात ।। जुवां पर आकर थम जाती है कैसे कह दूँ दिल की बात ।। हंसी है पलभर की मेहमान छलों का छाया घना वितान । गम के गीत सुनाता नित्य दर्द के हैं लाखों एहसान ।। हुआ है कोईबार यैसा भी, संग संग जागा सारी रात । जुवां पर आकर थम जाती है कैसे कह दूँ दिल की बात ।। समझ न पाओ परिभाषा न ...और पढ़े

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शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 3

।।।आत्मबोध।।। (11) मैं समय के पूर्व कुछ कहने लगा था । अपनी धारा में स्वयं बहने लगा था भावना का वेग था उलझा हुआ । कुछ नहीं था स्वयं में सुलझा हुआ ।। एक अलग संसार था सपनीला सा । एक अलग अंदाज था गर्वीला सा ।। भ्रम नहीं था कुछ भी सब आसान था । मैं स्वयं से सत्य से अंजान था ।। आज जब बातावरण कुछ शांत था । कोलाहल से दूर था एकांत था ।। कलम लेकर हाथ में कुछ गढ़ रहा था । एक अन्तर्द्वन्द मुझ में बड़ रहा ...और पढ़े

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शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 4

।।। विदाई ।।। (13) जाना ही है तो जाओ । जो रुक ना सको तो जाओ ।। नियति है जाओ । पर शपथ मिलन की खाओ ।। जाने से तुमको रोक सकूं मेरा क्या हक है मिलन एक संयोग बिछुड़ना आवश्यक है आज बिछुड़ने से पहले तुम गीत प्रीत के गाओ जाना ही है तो जाओ ......... महक उठे घर आँगन सारा महके क्यारी क्यारी पुलकित प्रांण पखेरू महकें महके हर फुलवारी जहाँ रहो जैसे भी हो फूलों सी गंध लुटाओ जाना ही है तो जाओ .......... जाने फिर कब मिलें पुराने संगी साथी ...और पढ़े

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शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 5

प्यार की कहानी (15 ) सुनलो मैं अपने प्यार की कहता हूँ कहानी! गुजरी जो इश्क-ऐ – दिल पे है अपनी जुबानी ! कुछ रोज साथ साथ गुजारे हंसी-खुशी। पर कुछ दिवस के बाद ही रहने लगा दुखी। यह सोचकर कि अब तो बिछुड़ना जरूर है । फिर जाने कब मिलें कि गांव बहुत दूर है। अब कौन रोज सुबह से आकर जगाएगा। अब कौन मुझको प्यार के नगमे सुनाएगा। अब कौन साथ बैठ जूठी रोटी खाएगा। अब कौन रोज साथ हंसेगा हंसायेगा । मैं तुमको प्यार करता हूँ करता ही जाऊंगा । पर नाम तेरा अपनी जुबां पर ...और पढ़े

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शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 6

बड़े लाड़ दुलार सें पालौ जीऐ , पार पलना झुलाओ कबहूँ गोद लई! देके स्लेट पढ़ाओ जीए अ आ , जिद्द पूरी करी जो कबहूँ खीझ गई! जाकीछींक पै धरती उठाएं फिरौ, सोओ नई रातभर जो कबहूँ पीर भई! जाखों प्राणन से ज्यादा प्यार करौ, आज बेटी हमारी सयानी भई! जाखों छाती धरें फिरे रातन कै, कटे हाथन हाथन दिन सबरे ! जाकी बातन में दुख भूल गए, जाकी चालन से मन मोद भरे,! जाखों कईयां लई और पिठइयां धरी, गए मेला तमासिन में सबरे! ऐसी फूलन सी बेटी बोझ भई, जा के हाथन हाथन लये नखरे! ...और पढ़े

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शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 7

दोहा होरी के हुड़दंग में सब यैसे हुरयात ऊँच नीच छोटे बड़े आपस में मिलजात एक को परस्पर जब हम रंग लगात मूठा देत गुलाल कौ भेदभाव मिट जात भुला ईर्षा शत्रुता वैमनस्य और बैर एक रंग रंगजात सब को अपनों को गैर रंग रंग के रंग जब एक रंग हो जात तब केशरिया संग हरा रंग बहुत हर्षात होरी विधि ने यैसी खेली होरी। अंग अंग रंग दई गोरी ।। विधि ने यैसी खेली होरी बारन में कारौ रंग डारौ गालन मल दई रोरी ।। विधि ने ...और पढ़े

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