दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू

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विंध्याचल पर्वत की लघु एवं उच्च श्रृंखलाओं, वनोपवन, अरण्यक उपत्यकाओं में विस्तारित, गंगा , यमुना, सिंध , नर्मदादि , पावन सलिलाओं की पुण्य धाराओं से आप्लावित पुलिंद धरा, अनादि काल से अन्यान्य संस्कृतियों, युगधर्मों की रंगभूमि तथा स्वर्गोपम जीवन की कालातीत केलिकुंज रही है । युग युगांतर से इस महान भूभाग की माटी में वैदिकता, पौराणिकता और इतिहासत्व के सृजन की गाथाओं के अनंत अधिष्ठान रहे हैं। रचनात्मक शौर्यानुक्रम, जहाँ इसे वीरप्रसूता स्थापित करता है, वहीं प्रेम, भक्ति, त्याग और बलिदान की सतत परंपराएँ, इसे देवत्व भाव की आख्याति प्रदान करती हैं । समृद्ध सांस्कृतिक भावभूमि, सृजनात्मक उत्सवप्रियता एवं उत्कट जिजीविषा से ओतप्रोत बुंदेली जनमानस, सदा सहज सचेतनता के शिखर पर रहा आया है। यहां के शासकों का हर युग की केंद्रीय सत्ता में प्रबल हस्तक्षेप अथवा प्रभाव रहा। यह भारतवर्ष का वह पावन भूभाग है जहाँ आपद् समय, नारद, सनकादि, जमदग्नि, राम , कृष्ण तथा पांडवों ने भी शरण ली है । यही वह भूमि है, जहाँ दत्तात्रय, तुलसी, केशव, पद्माकर, भवभूति ने जन्म लिया। यही वो धरा है, जिसे महान राजपुरुषों अथवा महान नारियों सहित, महानतम संतो, मुनियों, तपस्वियों की साधनास्थली होने का गौरव प्राप्त है। इस पुण्य भूमि पर तपस्चर्या करने वाले महान ऋषि-मुनियों की अनंत श्रृंखलाओं के अलावा, विभिन्न राजवंशों के प्रादुर्भाव, सामुदायिक उद्भव तथा विकास की श्रेष्ठतम गाथाएं भी प्रतिष्ठित हैं ।

Full Novel

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 1

*रानी सीता जू* *'' बुंदेली इतिहास का एक उपेक्षित पात्र ''* (1679 - 1771) - रवि ठाकुर–-------------------------------------------------------–----------/-------------विंध्याचल पर्वत की एवं उच्च श्रृंखलाओं, वनोपवन, अरण्यक उपत्यकाओं में विस्तारित, गंगा , यमुना, सिंध , नर्मदादि , पावन सलिलाओं की पुण्य धाराओं से आप्लावित पुलिंद धरा, अनादि काल से अन्यान्य संस्कृतियों, युगधर्मों की रंगभूमि तथा स्वर्गोपम जीवन की कालातीत केलिकुंज रही है । युग युगांतर से इस महान भूभाग की माटी में वैदिकता, पौराणिकता और इतिहासत्व के सृजन की गाथाओं के अनंत अधिष्ठान रहे हैं। रचनात्मक शौर्यानुक्रम, जहाँ इसे वीरप्रसूता स्थापित करता है, वहीं प्रेम, भक्ति, त्याग और बलिदान की सतत परंपराएँ, ...और पढ़े

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 2

बुंदेलखंड के प्रत्येक राजवंश के राजपुरुष अथवा राज माहिषि पर, प्रथक-प्रथक दीर्घ आलेख लिखे गए और लिखे जा सकते किंतु बुंदेला राजवंश की दतिया शाखा के रियासत कालीन इतिहास की जिस कड़ी को, लेखकों , इतिहासकारों नेे लगभग विस्मृत कर दिया, अथवा अनदेखा कर दिया, बल्कि कहा जाए तो, उपेक्षित कर दिया, वास्तविकता में, उस एक कड़ी के बगैर, दतिया राजवंश का उल्लेख अधूरा ही रहता है।कुछ इतिहासकारों ने, कुछेक महत्वपूर्ण घटनाओं में उनका उल्लेख तो जरूर किया, किंतु सतही तौर पर। बिना उक्त भूमिका का महत्व समझे। रानी सीता जू के व्यक्तित्व और कृतित्व का सत्यार्थ मूल्यांकन अब ...और पढ़े

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 3

3 जिस साइफन सिस्टम की आधुनिकता की हम बात करते हैं वह तो सीता जू ने अपने तालाबों में, संचय, जल निकास, जल प्रदाय, नहर चालन, पेयजल आपूर्ति, फव्वारे आदि के संचालनार्थ, आज से 300 वर्ष पूर्व ही प्रयुक्त कर लिया था। नगरीय सौंदर्य, सिंचाई तथा पेयजल प्रदाय की इस वैज्ञानिक सोच के लिए कोटिसः प्रणम्य हैं महारानी सीता जू।सीता जू का जन्म 1679 ईस्वी में साँकिनी के परमार जागीरदार भरतपाल की पुत्री के रूप में हुआ। इनके बचपन का नाम कंचन कुंवरि था । 14 वर्ष की उम्र में इनका पाणिग्रहण, दतिया राज्य के तत्कालीन युवराज रामचंद्र के ...और पढ़े

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 4 - 5

//4// महाराजा दलपत राव ने 1694 से 1696 के मध्य, दतिया किले ( प्रतापगढ़ दुर्ग ) का निर्माण कराया। का नया परकोटा तथा किले के चारों तरफ खाई, भीतरी शस्त्रागार आदि बनवाए। प्रताप बाग, दिलीप बाग, राव बाग, बारादरियाँ आदि का भी निर्माण कराया। इसी के साथ दतिया का नाम बदलकर दिलीपनगर किया। सन 1907 तक, राजकीय दस्तावेजों में दतिया का नाम दिलीप नगर ही चला किंतु आम जनमानस ने इसे दतिया ही बनाए रखा। रामचंद्र का जन्म 1675 में हुआ। रामचंद्र की मां चंद्र कुँवरि परमार नौनेर वाली, दलपत राव की चार रानियों में से मँझली रानी थीं। ...और पढ़े

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 6

6 अपने पुत्र रामसिंह को जन्म देने के बाद से ही, रानी सीता जू चिरगांव वास पर थीं। यहाँ एक सुरक्षित गढ़ी का निर्माण करवा कर, रामपुर बस्ती को आकार दिया। दुर्योग से, 1696 में ही दतिया के राजगढ़ महल में एकांत निवास कर रही रामचंद्र की माँ का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उस समय वे लगभग परित्यक्ता का जीवन जी रही थीं और अपने परिवार से पूरी तरह कटी हुई थीं। मां की मृत्यु की खबर पाकर रामचंद्र एवं सीता जी दतिया पहुंच गये, परंतु दलपत राव दक्षिण में बड़े दायित्वों का निर्वाहन करने की ...और पढ़े

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 7

7 1701 में रामचंद्र राव ने विचित्र कुँवरि से पांचवी शादी की। इससे पूर्व सीता जू के अलावा, वे और शादियां कर चुके थे। सीता जू के बाद की गई चारों शादियाँ सीता जू की सहमति-परामर्श के अनुसार, राजनीतिक कारणों से की गई थीं। इससे राव रामचंद्र का कुनबा बड़ा होता गया। समर्थन तथा प्रभाव भी बढ़ता गया। विचित्र कुँवरि से 3 पुत्र, रघुनाथ सिंह, अजीत सिंह एवं बुध सिंह का जन्म हुआ। 1701 की इस घटना के बाद रामचंद्र वापस लौट गए, जबकि सीता जू ने रामचंद्र राव की चारों रानियों के परिजनों सहित, दूरदराज के रिश्तेदारों को ...और पढ़े

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 8

8 लेकिन रानी ने सीधा हमला करके खून खराबा करने के बजाय, युक्ति पूर्ण कब्जे की योजना बनाई। जबकि पराक्रम की धुन में, रामचंद्र सीधा आक्रमण करने के पक्ष में थे। ऐसे में नौनेशाह ने रानी की सोच को उचित ठहरा कर रामचंद्र को शांत किया। दूसरी ओर भारतीचंद के राज्य अभिषेक की तैयारियाँ जोरों पर थीं। नई सेना पाकर गर्वोन्मत्त भारतीचंइद, आसन्न संकट से बेखबर थे। और फिर, राज्याभिषेक के ही दिन, अर्धरात्रि में रामचंद्र राव ने अचानक चारों ओर से हमला कर, प्रतापगढ़ दुर्ग को अपने कब्जे में लेकर भारतीचंद को बंदी बना लिया। इस कार्य में ...और पढ़े

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 9

9 उधर, महाराजा छत्रसाल, बुंदेलों को एक सूत्र में बांधकर, मुगलों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए, बुंदेलखंड का चतुर्दिक करने में व्यस्त थे। महाराजा छत्रसाल के इस अभियान में राव रामचंद्र का भी पर्याप्त योगदान रहा। इस क्रम में, सन 1721 मैं राव रामचंद्र ने बुंदेली एकता का प्रदर्शन करते हुए, महाराजा छत्रसाल के बुलावे पर, मौदहा के युद्ध में, इलाहाबाद के सूबेदार मोहम्मद शाह बंगश के विरुद्ध भीषण वीरता का प्रदर्शन कर, बंगश के सिपहसालार दिलेर खाँ को मार गिराया। इस युद्ध में ओरछा महाराज उद्दोत सिंह तथा चंदेरी के दुर्जन सिंह भी शामिल रहे। 1722 में गोहद ...और पढ़े

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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 10

10 इंद्रजीत के राज्याभिषेक के अवसर पर, रामसिंह के सौतेले भाई रघुनाथ सिंह ने मुगल दरबार में दतिया की पर अपना दावा प्रस्तुत किया, किंतु एक बार फिर, ओरछा महाराज के हस्तक्षेप से राज्य निष्कंटक हुआ। रघुनाथ सिंह को नदीगांव की जागीर से ही संतुष्ट होना पड़ा। मराठों ने पूर्व में जो 'कर' दतिया राज्य से मांगा था और न मिलने पर पीला जी ने दतिया पर आक्रमण करके जो क्षति उठाई थी, उससे पेशवा बहुत नाराज था। फलस्वरूप 1738 में पेशवा बाजीराव प्रथम ने सेना सहित सीधे दतिया का घेराव किया तथा नाबालिग राजा एवं विधवा रानी से ...और पढ़े

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