आख़िर वह कौन था - सीजन 3

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इस कहानी के पहले सीजन में आपने पढ़ा कि सुशीला एक सोलह वर्ष की गरीब मजदूर की बेटी थी। उसकी माँ एक बिल्डिंग पर काम करते समय, गिर कर स्वर्ग सिधार गई थी। पिता तो पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे। माँ के निधन के बाद एक दिन सुशीला ने जिस बिल्डर के लिए उसकी माँ काम कर रही थी उसे अपनी माँ की जगह काम पर रख लेने के लिए मनाया। बिल्डर ने उसकी दर्द भरी बातें सुनकर उसे काम पर रख लिया। शांता ताई सुशीला की पड़ोसन थी। एक बार शांता ताई कुछ दिनों के लिए अपनी बेटी विमला की ससुराल गई थी। जब वह लगभग दस बारह दिन में वापस आईं तो उन्होंने महसूस किया कि सुशीला अब उदास रहने लगी है। उन्होंने सुशीला से उदासी का कारण पूछा तो सुशीला ने कहा शांता ताई मुझे माँ की याद आती है। लेकिन कुछ महीनों में ही सुशीला के शरीर में आ रहे बदलाव से शांता ताई को समझ में आ गया कि उसकी उदासी का कारण क्या है। उन्होंने सुशीला से पूछा बिटिया कौन है वह, बता दे तो तेरा ब्याह उसके साथ करा दूंगी।

Full Novel

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आख़िर वह कौन था - सीजन 3 - भाग - 1

इस कहानी के पहले सीजन में आपने पढ़ा कि सुशीला एक सोलह वर्ष की गरीब मजदूर की बेटी थी। माँ एक बिल्डिंग पर काम करते समय, गिर कर स्वर्ग सिधार गई थी। पिता तो पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे। माँ के निधन के बाद एक दिन सुशीला ने जिस बिल्डर के लिए उसकी माँ काम कर रही थी उसे अपनी माँ की जगह काम पर रख लेने के लिए मनाया। बिल्डर ने उसकी दर्द भरी बातें सुनकर उसे काम पर रख लिया। शांता ताई सुशीला की पड़ोसन थी। एक बार शांता ताई कुछ दिनों के लिए अपनी बेटी विमला ...और पढ़े

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आख़िर वह कौन था - सीजन 3 - भाग - 2

उधर सुशीला का बेटा राजा भी मन ही मन दुखी रहता था। पिता के नाम बिना उसे भी जीवन कठिनाइयों का सामना आए दिन ही करना पड़ता था। कई बार अपमान का सामना भी करना पड़ता था। वह चाहता था कि अपनी माँ सुशीला से पूछ ले कि आख़िर उसका बाप है कौन? कौन है जो उन्हें इस तरह छोड़ कर चला गया? लेकिन कभी भी उसकी हिम्मत ही नहीं होती थी; अपनी जीभ खोलने की। सुशीला ने अपना खून पसीना बहा कर अपने बेटे राजा को एक अच्छा जीवन देने का संकल्प लिया था। सुशीला चाहती थी कि ...और पढ़े

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आख़िर वह कौन था - सीजन 3 - भाग - 4 

राजा के आख़िर क्यों पूछने पर सुशीला ने कहा, “राजा मैं ख़ुद इतनी छोटी थी कि कहाँ जाती, क्या अपने आप को किस-किस से बचाती? यहाँ तो हर गली, हर नुक्कड़ पर भेड़िए ताक लगाए खड़े रहते हैं। इसलिए मैं चुपचाप यहीं रह गई। यहाँ तो कम से कम शांता ताई का सहारा था। पहले महीने तो मुझे समझ ही नहीं आया था कि मेरे गर्भ में तुम्हारा जन्म हो चुका है; लेकिन जब पता चला तब मैंने सोचा …” “क्या सोचा था माँ …?” “मैंने सोचा था क्यों ना इस इंसान के सामने ही मैं तुम्हें जन्म देकर ...और पढ़े

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आख़िर वह कौन था - सीजन 3 - भाग - 3

राजा के द्वारा पिता के बारे में पूछते ही सुशीला को ऐसा लगा मानो हवा का एक तूफ़ानी झोंका उसके कानों से टकरा गया है। वह सहम गई, घबरा गई। उस समय ऐसा लग रहा था मानो समय रुक गया है। एकदम शांति थी, कहीं कोई हलचल नहीं थी। सुशीला की आँखें नीचे और राजा की आँखें टकटकी लगाए सुशीला के चेहरे पर टिकी हुई थीं। अपनी माँ को इस तरह उदास, डरा हुआ देखकर राजा ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, “माँ ऊपर देखो, मेरी तरफ़ देखो माँ।” सुशीला ने अपनी भीगी पलकों को ऊपर उठाया। ...और पढ़े

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आख़िर वह कौन था - सीजन 3 - भाग - 5

अपनी माँ की ऐसी हालत देख कर राजा ने उसे पानी पिलाया। आज जब राज़ खुल ही गया था सुशीला बरसों से सीने में दफ़न अपने मन के सारे घाव मानो खोल-खोल कर राजा को दिखा रही थी, सुना रही थी। सुशीला ने कहा, “राजा श्यामा मैडम अपना यह अपमान शायद कभी भी भूल नहीं पाएंगी कि उनके होते हुए भी उनका पति किसी और के साथ जबरदस्ती … सुना है, तलाक ले रही हैं श्यामा मैडम। बच्चे क्या करेंगे बेचारे, पता नहीं? राजा तुम्हें तो भगवान ने ही पिता के प्यार से, उस सुख से वंचित रखा। लेकिन ...और पढ़े

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आख़िर वह कौन था - सीजन 3 - भाग - 6

उधर श्यामा का फ़ैसला अटल था। वह तलाक चाह रही थी पर बच्चों को बता नहीं पा रही थी; केस नहीं चला पा रही थी। चाहे जो भी हो श्यामा यह कतई नहीं चाहती थी कि बच्चे इस राज़ को जानें। आदर्श को भी यही डर खाए जा रहा था कि बच्चों को यह पता नहीं चलना चाहिए। एक रात आदर्श ने श्यामा से कहा, “श्यामा यदि यही तुम्हारा अंतिम फ़ैसला है तो फिर क्या तुम मेरे ऊपर एक उपकार करोगी? मेरी एक बात मानोगी? यदि अलग ही होना है तो कोर्ट कचहरी क्यों करना है? हम आपसी समझौते ...और पढ़े

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आख़िर वह कौन था - सीजन 3 - भाग - 7 - अंतिम भाग

उधर आदर्श की बात मानकर श्यामा आपसी समझ के साथ ही अलग-अलग रहने के लिए मान गई। अगले दिन ने करुणा के पास जाकर कहा, “माँ मुझे माफ़ कर देना। मैं अब और आगे आदर्श का साथ ना दे पाऊंगी,” कहते हुए श्यामा ने करुणा के पाँव छुए। करुणा तो सब कुछ जानती थी। उन्होंने श्यामा को अपने सीने से लगाते हुए कहा, “बेटा क्या यही तुम्हारा अंतिम फ़ैसला है।” “हाँ माँ मैं जा रही हूँ।” “लेकिन श्यामा बच्चे …?” “माँ बच्चे बड़े हो चुके हैं, वह जो चाहे कर सकते हैं। जिसके साथ रहना हो रह सकते हैं।” ...और पढ़े

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