शाम तक पूरा घर चमाचम हो जाना चाहिए नीतू! अवंतिका ने फिर से दोहराया। नीली सलवार, पीला कुर्ता, गुलाबी स्वेटर के साथ लाल दुपट्टा कंधे से ओढ़ कर कमर तक लपेटे, नीतू ठुमकती सी दरवाजे के पास आ खड़ी हुई, "आप कल से कितनी बार बता चुकी हो आंटी, समझ गई अच्छी तरह सफाई करनी है कर लूंगी।"नीतू के स्वर की तेज़ी देख अवंतिका की हंसी निकल गई। "ठीक है, तुझे याद है अच्छी बात है। मैं ऑफिस से देर में आऊंगी बिट्टू पहले आ जाएगा।"अवंतिका आगे कुछ और भी कहती उससे पहले ही नीतू शुरू हो गई,

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जीवन का गणित - भाग-1

भाग - 1"शाम तक पूरा घर चमाचम हो जाना चाहिए नीतू!" अवंतिका ने फिर से दोहराया। नीली सलवार, पीला गुलाबी स्वेटर के साथ लाल दुपट्टा कंधे से ओढ़ कर कमर तक लपेटे, नीतू ठुमकती सी दरवाजे के पास आ खड़ी हुई, "आप कल से कितनी बार बता चुकी हो आंटी, समझ गई अच्छी तरह सफाई करनी है कर लूंगी।"नीतू के स्वर की तेज़ी देख अवंतिका की हंसी निकल गई। "ठीक है, तुझे याद है अच्छी बात है। मैं ऑफिस से देर में आऊंगी बिट्टू पहले आ जाएगा।"अवंतिका आगे कुछ और भी कहती उससे पहले ही नीतू शुरू हो गई, ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-2

भाग - 2"सारा प्यार यहीं लुटा देंगी क्या?" नीतू की शरारत भरी आवाज़ कानों में पड़ी तो अवंतिका का गया… उसकी आंखों से से आंसुओं की धारा बह रही थी।एक सजग अधिकारी होने के साथ ही बेहद संवेदन शील मां भी थी वह।वैभव ने मां को एक हाथ से कंधे से पकड़ा और दूसरे हाथ में उसकी शॉल और बैग थामा और दोनों कमरे में भीतर आ गए।अवंतिका ने आज घर आकर हमेशा की तरह कपड़े नहीं बदले थे। बिट्टू के साथ आकर सोफे पर बैठ सेंटर टेबल पर पैर टिका लिए।बिट्टू मां की बगल में ही बैठ गया। ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-3

भाग - 3"पहाड़ों पर रात बड़ी जल्दी हो जाती है दस बजते ना बजते ऐसा लगने लगता है जैसे रात हो गई हो।" वैभव ने कहा तो अवंतिका मुस्कुराने लगी।"तू है तो जग रही हूं नहीं तो नौ बजे तक बिस्तर में पहुंचकर विथ इन टेन मिनिट्स सो जाती हूं।" कहकर अवंतिका खुद ही अपने ऊपर हंस पड़ी।"रियली?" वैभव ने अचंभे से पूछा तो अवंतिका ने हंसते हुए सिर हिलाकर हामी भरी।"याद है मां हम देहरादून में थे तो कभी ग्यारह बजे से पहले तो डिनर भी नहीं करते थे।" वैभव पुरानी बात याद करके खुश हो रहा था।"वहां ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-4

भाग - 4सुबह अवन्तिका जब वैभव के पास आई तो वह गहरी नींद में था। एक लाड़ भरी नज़र सोते हुए बिट्टू पर डाल कर अवन्तिका बाहर निकल आई, किचन में नीतू नाश्ते की तैय्यारी कर रही थी। “क्या बना रही है, नीतू?” अवन्तिका ने किचन में आकर उससे पूछा तो वह एकदम से चौंक गई।“अरे आंटी आप तैयार भी हो गईं?” अवन्तिका को ऑफिस के लिए तैयार देख अचरज भरे स्वर में नीतू ने पूछा । उसे शायद उम्मीद थी कि अवन्तिका छुट्टी ले लेगी आज। कोई और समय होता तो वह पक्का यही करती मगर मंथ क्लोजिंग ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-5

भाग - 5घर पहुंचते ही अवंतिका ने सबसे पहले वैभव से पूछा, “आज तुझे बैंक आने की क्या सूझी को घर आया देख बिट्टू ने अपना लैपटॉप बंद कर एक किनारे रख दिया और उठकर बाहर हॉल में आने के लिए उठने वाला ही था, तब तक अवंतिका उसके पास आ गई उसके ही कमरे में।"बोर तो नहीं हुआ घर में?""नहीं बिलकुल भी नहीं आपका बेटा हूं, अपनी कंपनी बहुत एंजॉय करता हूं।"हंसते वैभव ने लैपटॉप दूसरी तरफ रख कर अवंतिका को अपने बैड पर बैठने की जगह दे दी। "वैसे तुझे सूझी क्या जो मेरे ऑफिस पहुंच गया ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-6

भाग - 6 "नीतू दीदी, आज खाने में क्या बना रहीं हैं?" कुकर की सीटी की आवाज सुनकर वैभव हॉल में आकर नीतू को गायब देख आवाज़ लगाकर पूछा। पूरा किचन भाप से भरा हुआ था वैभव ने रसोई घर में जाकर चिमनी की स्पीड बढ़ा दी। तब तक कुकर में एक और सीटी आ गई थी। कुकर की सीटी के शोर में वैभव की आवाज दब सी गई, नीतू ने उसकी आवाज तो सुनी पर बात ठीक से समझ नहीं आई। अवंतिका का कमरा साफ करती हुई नीतू दौड़कर आ खड़ी हुई। "जी भैया? कुछ कह रहे हैं ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-7

भाग - 7कॉलेज में वैभव का नया सेमेस्टर स्टार्ट हो चुका था। उसके आने के अगले ही दिन आयुषी आ गई थी।मगर अब कॉलेज का वर्कलोड अपने चरम पर था। जिस आयुषी को एक हफ़्ते से दिन-रात मिस किया था, दुनिया-जहान भर के प्लांस बनाए थे उनके फिर मिलने पर साथ समय बिताने के, उसकी केवल मुस्कान देख कर ही दिन बीत रहे थे वैभव के। व्यस्तता के चलते उसके साथ बैठकर बात करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था।आयुषी की बेचैनी भी उसके चेहरे पर साफ़ नजर आती थी। वे दोनों कभी-कभी एक लैब से दूसरी ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-8

भाग - 8आयुषी और वैभव अब साथ-साथ एक नई दुनिया में प्रवेश कर रहे थे।आयुषी के वक्त का एक हिस्सा वैभव के साथ बीतने लगा। अब न हॉस्पिटल की ड्यूटी उन्हे थकाती थी, ना देर तक चलने वाली क्लासेस। पहले भी लंच अक्सर कॉलेज कैंटीन में किया करते थे, सभी दोस्तों के साथ। मगर अब आते जरूर दोस्तों के साथ, मगर बैठते आस पास ही थे। भीड़ के बीच भी आयुषी हमेशा वैभव के लिए जगह बचाकर रखती और वैभव सबको पीछे छोड़ आयुषी की बगल में जा बैठता। उनके बीच की नजदीकियां अब क्लासमेट्स भी नोटिस करने लगे ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-9

भाग - 9 मॉर्निंग ट्रेनिंग को अभी चार ही दिन हुए थे, कि नए मिले सर्कुलर ने धमाका किया थर्ड ईयर के सेकिंड सेमेस्टर एग्ज़ाम्स नियत तारीख़ से एक हफ्ते पहले ही स्टार्ट होने वाले थे।वैभव और आयुषी दोनों ही सकते में आ गये थे, पहले दूसरे साल के एग्जाम इतने कठिन नहीं लगे थे, तैयारी के लिए पूरा वक्त मिला था। मगर अब तो जैसे दुनिया भर की ज़िम्मेदारियाँ उन पर आ लदी थीं। उस पर हॉस्पिटल की ड्यूटी भी और ज़्यादा थका देने वाली होने लगी थी। कुछ और करने की हिम्मत नहीं बचती दिन ख़त्म होते-होते। ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-10

भाग- 10वादे के मुताबिक़ आयुषी दस ही मिनट में तैयार होकर सामने आकर खड़ी हो गई। रेड कलर की की घुटनों से ज़रा सी नीची जाती हुई स्लीवलेस ड्रेस, दूधिया रंगत की बाहों से फिसलती हुई नज़र उसी की मैंचिंग के ब्रेसलेट पर जा अटकी थी वैभव की।लंबे खुले हुए बाल पीठ पर आराम से टिके हुए थे जिनकी एक लट करीने से आगे कंधे पर झूल रही थी। गहरी आंखों के काजल ने उनकी गहराई को और बढ़ा दिया था। कानों में लटकते लंबे से इयररिंग्स भी ब्रेसलेट के साथ के ही दिख रहे थे। ब्लैक कलर का ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-11

भाग- 11एग्ज़ाम खत्म होते ही आयुषी के चाचू उसे लेने आ गए थे। वह उसी दिन उनके साथ शादी शामिल होने निकल गई। जाने से पहले आयुषी ने वैभव को भी कहा था कि हफ़्ते का ब्रेक मिल रहा है, वह भी चाहे तो अपनी मॉम से मिल आए। पर वैभव का अभी बागपत जाने का दिल नहीं था, सो उसने लखनऊ ही रुकने फैसला लिया। जिस पर अब उसे पछतावा हो रहा। बिना आयुषी के वैभव का दिल बिल्कुल नहीं लग रहा था लखनऊ में। मोहित का साथ भी उसे बुरी तरह पका रहा था। मन कितनी जल्दी ...और पढ़े

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जीवन का गणित - भाग-12

भाग- 12 डिनर के बाद वॉक करने का अपना नियम वैभव अभी भी लगातार बनाए हुए था। लॉन में देर वॉक करने के बाद वैभव अपने रूम की ओर बढ़ गया। हालांकि ज्यादा थकान नहीं थी फिर भी कुछ और करने को नहीं था तो सोचा कमरे में जाकर लैपटॉप पर ही कुछ देखा जाए। जब उसने अचानक दिल्ली जाने का प्रोग्राम बना लिया तब मोहित ने वैभव से कहा था, ‘खुशी हो या उदासी हो, सब आपके अपने भीतर होते हैं, जो आपके साथ चलते हैं। उनसे इनसान पीछा छुड़ा नहीं सकता वे मन के किसी कोने में ...और पढ़े

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