"इतनी जरूरी मीटिंग और ऊपर से लेट हो गया। आज तो मेरी खैर नहीं। पक्का आज तो मुझपर शामत आने वाली है और बॉस से गालियां खाने को मिलेंगी।" – अपनी अम्मी को बोलता हुआ रफ़ीक़ घर से बाहर की तरफ निकला। कार के पास पहुंच चाभी के लिए अपनी जेब में हाथ डाला। "उफ्फ, जिस दिन लेट हो रहा हो। मुसीबतें भी उसी दिन क़हर बनकर आएंगी। अब ये कार की चाभी किधर गई!"- अपनी जेबें टटोलता हुआ रफ़ीक़ खुद से ही बड़बड़ाया। "इसीलिए कहती हूँ भाईजान, कि इस छोटी बहन पर तरस खाओ और जल्दी से निकाह कर एक सुंदर-सी भाभीजान ले आओ। पर मालूम नहीं, मेरे नसीब में भाभीजान का साथ लिखा भी है या नहीं। ये रही आपकी चाभियाँ।"– मुस्कुराते हुए कार की चाभी अपने बड़े भाई की तरफ बढ़ाती हुई ज़ीनत बोली। फुर्ती से चाभी को लपक कर रफीक अपनी छोटी बहन की शरारत पर मुस्कुराता है और कार स्टार्ट कर ऑफिस की तरफ निकल जाता है। हवा में हाथ लहराते हुए ज़ीनत उसे अलविदा करती है। तेज़ गति से कार भगाते हुए रफीक ऑफिस की तरफ बढ़ता रहता है। तभी, एक मोड़ पर उसकी गाड़ी एक लड़की से टकराने से बचती है।

Full Novel

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हमनशीं । - 1

"इतनी जरूरी मीटिंग और ऊपर से लेट हो गया। आज तो मेरी खैर नहीं। पक्का आज तो मुझपर शामत वाली है और बॉस से गालियां खाने को मिलेंगी।" – अपनी अम्मी को बोलता हुआ रफ़ीक़ घर से बाहर की तरफ निकला। कार के पास पहुंच चाभी के लिए अपनी जेब में हाथ डाला। "उफ्फ, जिस दिन लेट हो रहा हो। मुसीबतें भी उसी दिन क़हर बनकर आएंगी। अब ये कार की चाभी किधर गई!"- अपनी जेबें टटोलता हुआ रफ़ीक़ खुद से ही बड़बड़ाया। "इसीलिए कहती हूँ भाईजान, कि इस छोटी बहन पर तरस खाओ और जल्दी से निकाह कर ...और पढ़े

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हमनशीं । - 2

...आज रफ़ीक के ऑफिस में भी छुट्टी थी। इसलिए, सारा दिन वह घर पर ही था। समय होने चिंटू साथ लिए वह सुहाना के घर पहुंचा। छत पर टहल रही सुहाना ने कार से बाहर निकलते चिंटू और रफीक को देख लिया था। नीचे आकर उसने घर दरवाजा खोला। मुस्कुराकर रफीक का अभिवादन किया और उन्हे भीतर बुलाकर बैठने को बोली। चिंटू भी भागकर अपने स्टडी टेबल से चिपक गया। "मुबारक़ हो सुहाना जी, आपने तो इस चुलबुले बच्चे का कायापलट ही कर डाला। न मालूम कौन सी घुट्टी पिलाई है आपने, दिनभर आपका ही नाम लिए फिरता है। ...और पढ़े

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हमनशीं । - 3

...चिंटू के सुहाना के पास न पहुंचने की खबर सुन उसके अब्बा आमिर और छोटे चाचू रफ़ीक़ कार लेकर उसे ढूँढने के लिए निकल पड़ें। अपने घर से सुहाना के घर तक के रास्ते को पूरी तरह छान मारा। पर न तो चिंटू व उसका ड्राइवर मिला और न ही उनके कार का कुछ अता-पता चला। सुहाना के घर पहुँच उससे पता किया तो वह भी चिंटू के गुम होने की वजह से बहुत ही परेशान थी। उसने बिना देर किए पुलिस से मदद लेने की बात कही। फिर सभी कोतवाली की तरफ निकल पड़ें। “गाड़ी रोको, गाड़ी रोको” ...और पढ़े

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हमनशीं । - 4

...हालांकि चिंटू के साथ हुई दुर्घटना से वह काफी डर और सहम सा गया था। पर, अपनो के बीच और सबका प्यार पाकर धीरे-धीरे वह इस सदमे से बाहर निकल आया। अब, चिंटू सुहाना के पास ट्यूशन पढ़ने न जाता। रफीक़ और ख़ुशनूदा के अनुरोध पर सुहाना ही उसके पास पढाने आ जाया करती। जिस दिन सुहाना न आ पाती, चिंटू को लेकर रफीक़ ही सुहाना के घर पर पहुंच जाया करता। एक दिन। सुहाना के दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई । सुहाना की अम्मी ने दरवाजा खोला । सामने रफ़ीक़ खड़ा था । रफीक के चेहरे पर ...और पढ़े

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हमनशीं । - 5

...इधर कुछ दिनों से सुहाना रफ़ीक़ से अपना सिर भारी रहने की शिकायत किया करती। ट्रेनिंग और घूमने-फिरने के के वजह से होने वाले यह सिरदर्द पहले-पहल तो सुहाना के थोड़ा आराम लेने से खुद ही ठीक हो जाया करता। तभी एक दिन, सुहाना का सिरदर्द इतना असहनीय हो गया कि रफ़ीक़ ने जयपुर के ही एक डॉक्टर को दिखाया तो उन्होने इसे मामूली सिरदर्द बता कुछ दवा लेने की सलाह दी । पर, सुहाना को जब उससे भी राहत न मिली तो रफ़ीक़ ने उसे लेकर दिल्ली वापस लौटने का फैसला किया। अगली ही फ्लाइट पकड़ कर दोनों ...और पढ़े

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हमनशीं । - 6

“एक दिन सुबह। आँखें खुलते ही रफ़ीक़ ने बुझे मन से सुहाना के मोबाइल पर फोन लगाया। इसबार, सुहाना मोबाइल ऑन था और कॉल जा रहा था । जैसे शरीर को उसकी आत्मा मिल गई हो, बिस्तर पर लेटा हुआ रफीक फुर्ती से उठ बैठा। एक-दो रिंग के बाद सुहाना ने कॉल उठाया।...... ......कहाँ चली गई थी तुम, बिना बताए? कैसी हो? अम्मी कैसी हैं? तुम्हें थोड़ी भी समझ नहीं कि हमलोगों पर क्या गुजरेगी!” – बिना रुके रफ़ीक़ बोले ही जा रहा था। “हम्म... बताऊँगी, बाद में। अभी रखती हूँ।” – यह कहकर सुहाना ने फोन काट दिया। ...और पढ़े

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हमनशीं । - 7

.....बुझे मन से रफ़ीक़ घर लौटा और बिना किसी से कुछ कहे सीधे अपने कमरे की तरफ चला गया। को घर लौटा देख चिंटू ने आवाज़ दिया। पर रफ़ीक़ न पलटा और अपने कमरे में जाकर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया। तभी किसी ने रफीक़ के कमरे का दरवाजा खटखटाया। “देखो, चिंटू मियां। आज मुझे खेलने या कहीं घुमने का बिलकुल मूड नहीं। तुम अपनी खालाजान के पास जाकर खेलो।” – तकिये में अपना मुंह दबाए रफ़ीक़ ने बंद कमरे से ही आवाज़ लगाते हुए कहा। “रफ़ीक़ मियां, मैं हूँ। दरवाजा तो खोलो। क्या हुआ, मुझे बताओ। ऐसी ...और पढ़े

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हमनशीं । - 8

.....शाम होते ही रफ़ीक़ कार लेकर सुहाना के घर पहुंचता है और सभी को लेकर समारोह में आ जाता आज सुहाना अपने परंपरागत लिबास में इतनी फब रही थी कि रफ़ीक़ की आँखें उससे हटने का नाम ही न ले रही थीं। तभी रफ़ीक़ की कानों में धीरे से ख़ुशनूदा कुछ कहकर निकल जाती है जिसपर झेंपते हुए रफ़ीक़ अपनी नज़रें नीची कर लेता है। सुहाना को देखते ही चिंटू भागकर उससे लिपट जाता है। ख़ुशनूदा सभी मेहमानों से सुहाना का परिचय कराती है। पर, सुहाना की नजरें तो आज एक अंजान चेहरे पर टिकी थी, जो अभी-अभी रफीक़ ...और पढ़े

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हमनशीं । - 9 (End Part)

.... रफीक़ के अगले कुछ दिन सुहाना की यादों के सहारे ही गुजरे। कितना भी खुद को समझाने की करे, पर मन तो मानने को तैयार ही न था। बुझे मन से ऑफिस जाना और वापस आकर अपने कमरे में बंद हो जाना। खाना भी अब वह अपने कमरे में ही मँगा लिया करता। इसलिए घरवालों से भी ज्यादा बातचीत न हो पाती। कभी छोटी बहन ज़ीनत उससे बात करने की कोशिश करती तो उसे भी डांट कर भगा दिया करता। उसकी ऐसी हालत पर घर के लोग भी बड़े फिक्रमंद रहा करतें। एक दिन। रफ़ीक़ अपने कमरे में ...और पढ़े

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