राजेश कुमार के तमिल उपन्यास रुपया, पद और बलि का अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा ने किया है। यह एक जासूसी और जुर्म की कहानी है। इसमें तुच्छ राजनीति में पड़ कर किसी के प्राणों को लेने में भी नहीं हिचकते । राजनीति में लोग पैसा कमाने के लिए ही आते हैं। न केवल पैसा पद पाने के लिए भी किसी की बलि चढ़ा देते हैं। राजनीति में रुपया, पद और बलि इसी की प्रमुखता है। यह बहुत ओछी राजनीति है। हत्या जुर्म की जासूसी कहानी आपको अच्छी लगेगी। आगे आप पढ़कर जानिए। ****** बहुत सारे गुलाब की मालाओं से लदे गर्दन के दर्द को सहन करते हुए-नकली दांत के सेट को दिखाते हुए माणिकराज एक सुंदर हंसी हंसे। उनके चारों तरफ फ्लैश कैमरा चमक रहे थे- वे चमक-चमक कर बंद हो गए। पास खड़े हुए राजनीतिक अनुयायियों से वे बोले "वोट की गिनती अभी भी हो रही है। अभी से आपने मुझे मालाओं से लाद दिया।" "क्या साहब.... अभी भी आपको संशय है ? पचास हजार वोटों से आप आगे हैं । अभी सिर्फ आठ बूथ के वोट गिनने बाकी हैं। उनके पूरे वोट यदि विरोधी पार्टी को मिल जाए तो भी आप नहीं हारोगे। धैर्य के साथ मुस्कुराइए, फोटो में अच्छा पोस दीजिए मुखिया जी..."

Full Novel

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रुपये, पद और बलि - 1

मूल लेखक राजेश कुमार सारांश राजेश कुमार के तमिल उपन्यास रुपया, पद और बलि का अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा किया है। यह एक जासूसी और जुर्म की कहानी है। इसमें तुच्छ राजनीति में पड़ कर किसी के प्राणों को लेने में भी नहीं हिचकते । राजनीति में लोग पैसा कमाने के लिए ही आते हैं। न केवल पैसा पद पाने के लिए भी किसी की बलि चढ़ा देते हैं। राजनीति में रुपया, पद और बलि इसी की प्रमुखता है। यह बहुत ओछी राजनीति है। हत्या जुर्म की जासूसी कहानी आपको अच्छी लगेगी। आगे आप पढ़कर जानिए। रुपये, पद ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 2

अध्याय 2 माणिकराज के मन में डर से घबराहट होने लगी। उनके माथे पर पसीने की बूंदे छलक आई। पर पड़े हुए तौलिए से पसीने को जल्दी-जल्दी पोंछा और 'परमानंद' को आवाज लगाई। "सर..." "एक गिलास ठंडा बरफ का पानी लेकर आओ..." परमानंद ने वाटर कूलर से एक गिलास पानी भरकर लाकर दिया। खाली गिलास को वापस देकर फिर पसीना पोछने लगे। परमानंद ने पूछा "सर आप क्यों परेशान लग रहे हो।" "छी... इस पत्र को पढ़ कर देख।" पढ़ कर देख कर परमानंद को आश्चर्य हुआ। "क्या है सर... ऐसा लिखा है ? पुलिस को फोन करके बता ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 3

अध्याय 3 बात मालूम होने पर पुलिस की खाकी यूनिफॉर्म स्टेशन के प्लेटफार्म के चारों ओर जमा हो गई। की पंखुड़ियां चारों तरफ बिखरी हुई थी माणिकराज के चारों तरफ मक्खियां भिन्न-भीना रही थी। उनके स्वागत करने आए अनुयायी कुछ दूर पर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे। पार्टी के मुख्य कार्यकर्ता चार-पांच लोग सिर्फ फिक्र के साथ खड़े हुए थे | इंस्पेक्टर उनके पास आए। "किस ने चाकू मारा पता चला...?" "पता नहीं चला इंस्पेक्टर। भीड़ का फायदा उठाकर उसने ऐसा किया। "पास में कौन-कौन खड़े थे ?" "मालूम नहीं।" "तुम लोग कौन हो ?" "हम इस पार्टी ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 4

अध्याय 4 ऑटो ड्राइवर इंस्पेक्टर को देखते ही भव्यता से खड़े हुए। इंस्पेक्टर ने पूछा "कितनी देर से.... यहां हो?" "आधे घंटे से खड़े हैं सर ?" "15 मिनट पहले इस तरफ से कोई भागकर आया क्या ?" "आदमी कैसा था बता सकते हैं क्या सर ?" "कॉलेज के लड़कों जैसे दिख रहा था, आंखों में धूप का चश्मा लगाया हुआ था।" एक ऑटो ड्राइवर ने आश्चर्य से चिल्लाया। "अरे.... वह अपने गोविंद के गाड़ी में बैठ कर गया था ना। चौखाने वाला शर्ट पहना था वही है ना ?" पोर्टर मारीमुथु ने सिर हिलाया "हां.. हां... वही वहीं ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 5

अध्याय 5 रामभद्रन पसीने से तरबतर होते हुए उस लिफाफे को खोला। उसमें से एक लंबा लेटर टाइप किया निकला। वे पढ़ने लगे। 'एक हफ्ते में मुख्यमंत्री बनने वाले रामभद्रन को मेरा नमस्कार ! तमिलनाडु में कोई भी एक पार्टी जीतकर आती है - तो वहां की जनता के लिए अच्छा काम करेंगे ऐसा उनसे अपेक्षा करते हैं यह साधारण सी बात है। इस बार आप जीत कर आए हो।' तमिलनाडु की जनता की तरफ से मैं जो मांग कर रहा हूं आप अच्छे काम करिएगा। भ्रष्टाचारियों को मंत्री पद मत दीजिएगा । माणिकराज के बारे में आपको मालूम ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 6

अध्याय 6 "क्या बोल रहे हो प्रधान जी ? चौंकाने वाली बात ?" "हां... आज सुबह मुझे एक लेटर एक-एक करके इस लेटर को तुम लोग पढ़ के देखो। उसके पहले मैं अपनी प्यास को बुझाता हूं।" अपने शर्ट की जेब में जो लेटर था उसे निकाल कर देकर – तिपाई पर जो व्हिस्की की बोतल थी उसके ढक्कन को खोल कर रामभद्रन एक गिलास में डालकर सोफे पर आराम से बैठकर पीने लगे। दो घूंट पीने के बाद - 5 लोगों ने उस पत्र को पढ़कर - पांचों का चेहरा सफेद पड़ गया। "क्या...? सब ने पढ़ लिया?" ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 7

अध्याय 7 कौशल राम की पत्नी नीलावती अधीर होकर रिसीवर को देखा। तो उसका चेहरा पसीने से भीग गया। बोल रहे हो ?" नीलावती की आवाज जलतरंग जैसे बजने लगी। दूसरी तरफ से हंसी की आवाज आई “मैं कोई भी हूं तो उससे आपको क्या है अम्मा ? ठीक.... तुम्हारे पति के ना चाहने वाला हूँ सोच लो।" नीलावती आघात से ठिठक सी गई। तो फिर आवाज आई "तुम्हें तुम्हारे गर्दन में यदि मंगलसूत्र रखना चाहती हो तो सुनो!" "तुम ... तुम... क्या बोलना चाह रहे हो !" "तुम्हारे पति को तुम्हें समझाना है..." "क्या समझाना ?" "हां ! ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 8

अध्याय 8 रिवाल्वर के आवाज सुनते ही बंगले के सब लोग उठ गए। ट्यूबलाइट की रोशनी पूरे बंगले के की खिड़कियों से दिखाई दे रही थी। वॉचमैन दौड़ा। पोर्टिको के सीढ़ियों पर चढ़ - कॉल बेल को बजाया। नीलावती ने दरवाजा खोल दिया। धड़- धड़ाते हुए सब अंदर घुसे । "क्या हुआ क्या हुआ अम्मा ?" "कुछ समझ में नहीं आ रहा है। कोई बंदूक चलाने की आवाज आई।" कौशल राम के कमरे की तरफ दौड़े। वहां पर सुधाकर खड़ा होकर दरवाजा खटखटा रहा था। "अप्पा, अप्पा।" अंदर - निशब्द। "जोर-जोर से दरवाजे को खटखटाने लगे। अंदर मौन। नीलावती ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 9

अध्याय 9 "क्या सच में ?" कमिश्नर के आवाज में सदमा दिखाई दिया। "...." "बाड़ी कहां पर है ?" "एलियट्स बीच का मतलब? प्रॉपर जगह का नाम बताओ।" "......" "ठीक है, आप कौन हैं मैं मालूम कर सकता हूं?" दूसरी तरफ से रिसीवर को रख दिया गया तो कमिश्नर रिसीवर को रख के चिड़चिड़ाते हुए, इंस्पेक्टर गुणशेखर और सब इंस्पेक्टर देवराज को देखा। "माणिकराज का केस अभी खत्म नहीं हुआ और कोई अमृत प्रियन की हत्या कर एलियट्स बीच में फेंक दिया | अमृत प्रियन एम.एल.ए. है ना।" "हां सर, मंत्री बनने वाले लिस्ट में उनका भी नाम था ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 10

अध्याय 10 "जोसेफ ! अभी तुम कहां से बोल रहे हो बताया ?" घबराए हुए आवाज से कौशल राम पूछा- जोसेफ दूसरी तरफ से बोला। "सर अमनंजीकरें टेलिफन बूथ से बोल रहा हूं।" "कौन सी जगह ?" "परनीअप्पा थिएटर के पास से।" "ठीक है, तुम टेलीफोन बूथ में ही रहो। सुधाकर को कार से भेजता हूं।" "सर, मुझे डर लग रहा है।" "डरो मत ! कोई भी तुम्हें कुछ नहीं कर सकता" कह कर कौशल राम ने रिसीवर को रख वहीं से अपने बेटे को आवाज दी। "सुधाकर !" "क्या बात है अप्पा ?" "जोसफ को पहचान लिया गया ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 11

अध्याय 11 पुलिस इंस्पेक्टर जोसेफ को देखकर सुधाकर से बोले "सर यह आपके... दोस्त.. है?" "हां क्यों ?" "कुछ जाइए। इन्हें कहीं देखा हो ऐसा लगा।" कार को सुधाकर ने आगे बढ़ाया। थोड़ी देर चलने के बाद धीरे से कार के पीछे कांच के द्वारा मुड़कर देखा - वह इंस्पेक्टर कार को घूर कर देखता हुआ खड़ा था। "सुधाकर" "हां..." "इंस्पेक्टर को मुझ पर संदेह हो गया लगता है।" "कैसे कह रहे हो ?" "कार को ही बार-बार मुड़-मुड़ कर देख रहे हैं ?" "इसलिए तुम्हारे ऊपर संदेह है कैसे कह सकते हो ?" "उनकी निगाहें ठीक नहीं।" "यह ...और पढ़े

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रुपये, पद और बलि - 12 - अंतिम भाग

अध्याय 12 सुधाकर के रिवाल्वर लेने से जोसेफ पसीने से तरबतर हो गया। उसकी जुबान और उसका गला सूख "सु.... सुधाकर यह क्या है ?" "मालूम नहीं ? यह रिवाल्वर है। तुम्हारी आत्मा को शांति नहीं चाहिए क्या जोसेफ? तुम्हारे परमपिता के पास जाने में ही तुम्हारी भलाई है।" "तुम... मुझे क्यों मारना चाहते हो ?" "पुलिस को तुम पर शक है उसके बाद भी तुम जिंदा रहो तो फंस जाओगे और हमें भी फंसा दोगे। चुपचाप प्राणों को त्याग दो। सिर्फ मेरी इच्छा नहीं है। अप्पा की भी यही इच्छा है।" "अरे पापी लोगों ! आखिर में तुमने ...और पढ़े

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