रिश्ते तिज़ारत नहीं होते

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मुझे नहीं पता था कि उम्र के चौथेपन में मुझे इन स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। कोविड 19 की पहली लहर बीमारी से बचने, नौकरी को बचाने, ऑनलाइन पढ़ाने के तनाव में ऊपर ही ऊपर से गुजर गई थी। इस लहर में बीमारी से तो बच गई पर अपनी नौकरी को न बचा सकी। ऑनलाइन के झमेले खत्म हुए पर रिश्तों के झमेले शुरू हो गए। आमदनी बिल्कुल बंद हो गई थी। कॅरोना काल में नई नौकरी मिलने वाली नहीं थी। अब तक किसी पर आश्रित नहीं थी। किसी की मदद की दरकार भी न थी पर अब जीवन का वह नाजुक दौर शुरू होने वाला था, जिसमें किसी न किसी के मदद की जरूरत पड़ सकती थी। सबसे पहले बेटे ने कदम बढ़ाया कि वह मदद करेगा। उसने कहा -एक आदमी का खर्च ही कितना होता है !बस पांच किलो चावल, पांच किलो आटा, एक किलो दाल, दो -चार सौ की सब्जी महीने भर के लिए काफी होगा और क्या चाहिए? मैंने कहा- बेटा जी दाल, चावल, आटा, सब्जी के अलावा भी बहुत खर्च होता है ।

Full Novel

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रिश्ते तिज़ारत नहीं होते - 1

(1) मुझे नहीं पता था कि उम्र के चौथेपन में मुझे इन स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। कोविड 19 पहली लहर बीमारी से बचने, नौकरी को बचाने, ऑनलाइन पढ़ाने के तनाव में ऊपर ही ऊपर से गुजर गई थी।इस लहर में बीमारी से तो बच गई पर अपनी नौकरी को न बचा सकी। ऑनलाइन के झमेले खत्म हुए पर रिश्तों के झमेले शुरू हो गए। आमदनी बिल्कुल बंद हो गई थी। कॅरोना काल में नई नौकरी मिलने वाली नहीं थी। अब तक किसी पर आश्रित नहीं थी। किसी की मदद की दरकार भी न थी पर अब जीवन का ...और पढ़े

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रिश्ते तिज़ारत नहीं होते - 2

(2) जिंदगी चल रही थी कि एक दिन विशद का मैसेज आया। यह मेरा बहुत ही पुराना विद्यार्थी है। 6-7 वर्ष पहले फेसबुक पर मुझे देखकर उसने मुझसे संपर्क साधा था और मुझसे मिलने मेरे घर आया था। मैंने उसे दसवीं में पढ़ाया था। करीब 20 साल मुझसे छोटा होगा। गोल चेहरे, मध्यम कद व भरे शरीर वाला साधारण -सा युवा। वह एम. बी. करके किसी प्राइवेट कम्पनी में काम करता था। मुझे अकेले रहते देख बहुत दुःखी हुआ था, फिर वह अक्सर घर आने लगा। मुझे वह हमेशा दसवीं कक्षा वाला गोल -मटोल विद्यार्थी ही लगता था पर ...और पढ़े

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रिश्ते तिज़ारत नहीं होते - 3 - अंतिम भाग

(3) अपने कस्बे की दो घटनाएं आज भी मेरे चित्त पर अंकित हैं।सुचिता मासी ....मेरी माँ की पड़ोसन!अपने समय बेहद खूबसूरत महिला! धर्म- कर्म, दान- पुण्य, पूजा -पाठ में आस्था और विश्वास रखने वाली !पति किसी सरकारी विभाग में चपरासी था। उसकी पहली पत्नी से एक बेटी थी। सुचिता मासी गरीब घर की बेटी थीं, तभी तो दिखने में साधारण, दोआह, एक बच्ची के पिता को सौंप दी गईं। उस आदमी को मौसा कहने में मुझे शर्म आती थी क्योंकि वह बच्चियों को भी गन्दी निगाह से देखता था। उसने मुहल्ले में सबसे शानदार दो मंजिला मकान बनवा लिया ...और पढ़े

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