सोच -कुछ अनकही बातें अपनों के साथ

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कभी -कभी मन बहुत व्यथित हो जाता है रिश्तों की बिगड़ती तकदीर को ...समझ ही नहीं आता है कि क्या करना सही होता है ..क्या नहीं करना । बस हम सब जिन्दगी की रेस में दौड़ते-दौड़ते इतने आगे निकल जाते हैं कि जिससे कुछ रिश्ते हमसे दूर होते जाते है। चाहे कितनी भी कोशिस ना कर लें हम पर रिश्तों को कभी भी सही तरीके समझ ही नहीं पायेंगे।कई बार परिस्थिति और हालात भी ऐसे होते है कि जिनकी वजह से हम कुछ भी नहीं कर पाते है।चाहकर भी टूटते हुये रिश्तों को सम्भाल नहीं पाते है।चाह करके भी उन्हें टूटने से रोक ही नहीं पाते है हम..क्योंकि हालात ही कुछ ऐसे होते हैं हमारे सामने कि जिसमें हम कुछ कर ही नहीं सकते है और दूर होने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं होता है ।

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सोच - कुछ अनकही बातें अपनों के साथ - 1

1. रिश्ते =========================== कभी -कभी मन बहुत व्यथित हो जाता है रिश्तों की बिगड़ती तकदीर को ...समझ नहीं आता है कि क्या करना सही होता है ..क्या नहीं करना । बस हम सब जिन्दगी की रेस में दौड़ते-दौड़ते इतने आगे निकल जाते हैं कि जिससे कुछ रिश्ते हमसे दूर होते जाते है। चाहे कितनी भी कोशिस ना कर लें हम पर रिश्तों को कभी भी सही तरीके समझ ही नहीं पायेंगे।कई बार परिस्थिति और हालात भी ऐसे होते है कि जिनकी वजह से हम कुछ भी नहीं कर पाते है।चाहकर भी टूटते हुये रिश्तों को सम्भाल नहीं पाते है।चाह करके ...और पढ़े

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