नागमणि एक रहस्य ही है जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण का दावा कोई नहीं करता लेकिन हमारे शास्त्रों व धर्मग्रंथों में इसका व इच्छाधारी नागों का उल्लेख मिलता है । इसी संबंध में यह मेरा सत्य संस्मरण है । ईस संस्मरण के द्वारा अंधविश्वास का प्रचार व प्रसार करने की मेरी कोई मंशा नहीं क्यों कि अंधविश्वास के सख्त खिलाफ मैं भी हूँ लेकिन अपनी आँखों देखी को झुठला भी नहीं सकता । यहाँ आस्था व अंधविश्वास के बीच में एक पतली सी महीन रेखा है जिसे हमें समझने की आवश्यकता है । यह अविश्वसनीय व हैरतअंगेज संस्मरण साझा करने का मकसद मात्र इतना बताना है कि हमारे धर्मशास्त्रों में वर्णित सभी बातें कपोलकल्पित नहीं हैं ।

Full Novel

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नागमणी (संस्मरण ) - 1

नागमणि ( संस्मरण ) भाग - 1 नागमणि एक रहस्य ही है जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण का दावा कोई नहीं लेकिन हमारे शास्त्रों व धर्मग्रंथों में इसका व इच्छाधारी नागों का उल्लेख मिलता है । इसी संबंध में यह मेरा सत्य संस्मरण है । ईस संस्मरण के द्वारा अंधविश्वास का प्रचार व प्रसार करने की मेरी कोई मंशा नहीं क्यों कि अंधविश्वास के सख्त खिलाफ मैं भी हूँ लेकिन अपनी आँखों देखी को झुठला भी नहीं सकता । यहाँ आस्था व अंधविश्वास के बीच में एक पतली सी महीन रेखा है जिसे हमें समझने की आवश्यकता है । यह अविश्वसनीय व ...और पढ़े

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नागमणी (संस्मरण ) - 2

एक पल को मैंने अपनी हथेली पर रखा वह मणि देखा और अगले ही पल उस आदिवासी के कहे अपनी मुट्ठी बंद कर ली ।मैं आश्चर्य से उछल पड़ा । मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे । मेरी अवस्था देखकर अचंभित मित्र ने शीघ्र ही मेरे हाथ से वह मणि लेकर अपनी हथेली पर रखकर मुट्ठी बंद करके देखा । आश्चर्य के भाव उसके चेहरे पर भी थे । बड़ी हैरत से उसने पूछा ” कितना विचित्र है न ? ऐसा लग रहा है हथेली से कोहनी तक नसों में कोई सांप जैसा चल रहा है । ...और पढ़े

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नागमणी (संस्मरण ) - 3

उस दिन अमरनाथ जी से हमारी मुलाकात संक्षिप्त व औपचारिक ही रही थी । चाय नाश्ता वगैरह करके उस सभी चले गए । बाद में पता चला अमरनाथ जी कुछ दिन वहां रुकने वाले हैं ।मित्र श्री संतराम का रिश्तेदार होने की वजह से हमने एक दिन उन्हें शिष्टाचार वश खाने पर बुलाया । अबकि उनके साथ एक और आदमी भी आया था जिसे वो अपना चेला बता रहे थे । इसके पहले की मुलाकात में अमरनाथ जी ने खुद किसी चमत्कार के बारे में नहीं बताया था लेकिन उनके इस तथाकथित चेले ने गुरूजी की तारीफों के पुल ...और पढ़े

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नागमणी (संस्मरण ) - 4

दूसरे दिन गुरूजी निर्धारित समय पर हमारे घर आ गए । उन्हें घर पर जलपान वगैरह कराकर हम साथ ही घर से बाहर निकले । मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि गुरूजी ने मुझसे एक बार भी यह नहीं पूछा कि कहाँ जाना है या कहाँ जा रहे हैं ? बस साथ चलते रहे ।कुछ ही देर में मैं अपने उस मित्र के घर पहुँच गया जिसके पास वह नाग मणि थी । मित्र का घर मेरे घर से लगभग पाँच मिनट की ही पैदल दूरी पर था ।दरअसल कल गुरूजी की बात सुनकर व साँपों के बारे में ...और पढ़े

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नागमणी (संस्मरण ) - 5

गुरूजी की बात अब मेरे समझ में आ रही थी । ‘ वाकई रात के अँधेरे में हम मंदिर के पास क्या कर रहे हैं कौन जान पायेगा ? और फिर जान भी ले तो क्या ? कोई गलत काम तो कर नहीं रहे हैं । अगर कामयाब हो गए तब तो गुरूजी के बताये अनुसार बहुत बड़ी बात हो जाएगी । तो फिर गुरूजी की बात मान लेने में बुराई ही क्या है ? ' और दूसरी कोई सुरक्षित जगह भी तो नहीं समझ में आ रही थी । काफी सोच विचार कर हमने गुरूजी से इसी सोमवार ...और पढ़े

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नागमणी (संस्मरण ) - 6

अब गुरूजी ने वह आटे से बनाया हुआ दीया प्रज्वलित कर दिया और उसके ठीक नीचे की सीढ़ी पर तक पानी चढ़ा हुआ था वह बर्तन रख दिया । मेरे मित्र द्वारा लाया गया दूध उस बर्तन में डालने के बाद गुरूजी ने वह मणि जो अब तक मेरे मित्र के ही पास थी कुछ बुदबुदाते हुए उस दूध से भरे बर्तन में डाल दिया । यह बर्तन एक छिछला और बड़े पेंदे का भगोना था जिसे कहीं कहीं टोप भी कहते हैं । अब गुरूजी ने अपने थैले में से एक लाल रंग के कपडे के टुकडे को ...और पढ़े

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नागमणी (संस्मरण ) - अंतिम भाग

रात के लगभग दो बजे मैं अपने घर पहुंचा । घर में किसी को भी इस घटना के बारे जानकारी ना हो इसलिए मैंने वह पात्र रखने और संभालने का जिम्मा अपने मित्र को ही दे दिया था । जाते जाते उसे सभी हिदायतें फिर से याद कराना नहीं भूला था । समय का चक्र चलता रहा और उसके वशीभूत हम भी अपनी राह चलते रहे । वही दिन और फिर वही दिनचर्या ! सुबह उठना दिन भर भटकना और फिर रजनी के सान्निध्य में निंदिया रानी के आगोश में स्वप्न लोक में विचरण करते हुए भोर तक का रास्ता ...और पढ़े

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