मैं सुबह ऑफिस पहुंचा ही था कि पवन बाबू हाथों में एक लिफाफा लिए चले आ रहे थे।मैंने पूछा उनसे की, "किसका प्रेम पत्र लिए घूम रहे हो जनाब..??" तो उसने वो लिफाफा मेरे ही हाथ मे रख दिया और कहने लगा,"आपके लिए ही आया है जी ये प्रेम पत्र।पढ़कर सुनाइये तो ज़रा क्या लिख के भेजा है प्रेमपत्र भेजने वाले ने..।"मैंने लिफाफे को दोनो ओर पलट के देखा ना किसी का नाम ना पता ऐसा कौन करता है।मुझे असमंजस में देख पवन बोला ,"अरे...अपने पोस्टमैन गिरीश बाबू.. वही देकर गए हैं।तेरा ही नाम लिया विशेष रूप से कि तुझे ही देना है।अब इतना मत सोच कोई काम का ही होगा।पढ़ लेना।इतना बोलकर वो चला गया।मैं भी अपने केबिन में आकर बैठ गया।बड़ी उत्सुकता थी मुझे वो लिफाफा खोलने की।लिफाफा खोलते से ही एक भीनी खुशबू फैल गयी सब तरफ। देखा तो किसी का पत्र थाउसमे। कमाल करते हैं लोग भी.....मोबाइल के ज़माने में पत्र कौन लिखता है..?बोलकर मैने पूरे पत्र को खोला।पत्र भेजने वाले का नाम देखे बिना ही मैंने पढ़ना शुरू कर दिया।पहली लाइन पढ़कर ही मेरे चेहरे थोड़ा गुस्सा पर फिर एक लंबी सी स्माइल आ गयी। मेरी भावना का पत्र था। भावना मेरी पत्नी जो इस समय मायके में है।मुझसे रूठ कर 2 महीने पहले मायके जा बैठी है।कितने कॉल्स किया, मैसेज किये उसे, एक-दो बार तो मैं खुद लेने भी गया था पर वो मिली तक नही मुझसे। लेकिन आज अचानक उसने पत्र क्यों लिखा ये बात अब भी मेरे दिमाग मे घूम रही थी।कॉल भी तो कर सकती थी या मैसेज कर देती।ये पत्र क्यों...?खैर मैंने अपना दिमाग लगाना बन्द किया और बैठ गया पत्र पढ़ने।

Full Novel

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प्रेम की भावना (भाग-1)

मैं सुबह ऑफिस पहुंचा ही था कि पवन बाबू हाथों में एक लिफाफा लिए चले आ रहे थे।मैंने पूछा की, "किसका प्रेम पत्र लिए घूम रहे हो जनाब..??" तो उसने वो लिफाफा मेरे ही हाथ मे रख दिया और कहने लगा,"आपके लिए ही आया है जी ये प्रेम पत्र।पढ़कर सुनाइये तो ज़रा क्या लिख के भेजा है प्रेमपत्र भेजने वाले ने..।"मैंने लिफाफे को दोनो ओर पलट के देखा ना किसी का नाम ना पता ऐसा कौन करता है।मुझे असमंजस में देख पवन बोला ,"अरे...अपने पोस्टमैन गिरीश बाबू.. वही देकर गए हैं।तेरा ही नाम लिया विशेष रूप से कि तुझे ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (भाग-2)

अपना लैटर पोस्ट कर मैं आफिस पहुंचा।जैसे-तैसे दिन बिताया रात निकाली।अगले दिन बड़े उत्साह के साथ मैं आफिस पहुंचा।अरे नही, नही अपनी क्या..?मेरी भावना का लैटर जो आया होगा। जैसे मैं आफिस में घुसा मैंने अपनी खोजी नज़रो से सबसे पहले पवन को खोजा।इधर-उधर नज़र घुमा ही रहा था कि आफिस के कोने में खड़ा चाय पीते पवन बाबू नज़र आये।चाय देखकर तो मैं एक पल के लिए भावना और उसके लैटर को भी भूल गया था। मैं तुरंत पवन बाबू के पास पहुंचा।भावना का लैटर लेने के लिए।अब कुछ भी कहो अगर हम कुछ खा-पी रहे होते हैं ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (भाग-3)

प्रेम : "सुनो!!" भावना : .......... प्रेम : "सुन रही हो..!" भावना : ............ प्रेम : "सुनाई दे रहा कुछ बोल रहा हूँ मै..!" भावना : ............ प्रेम : "ऐ मोटी..!" भावना : "खबरदार जो मोटी बोला है तो.!किस एंगल से मोटी लगती हूँ मै आपको..?" प्रेम : "तो कब से आवाज़ दे रहा हूँ मै, जवाब क्यों नही देती..?" भावना : ............ प्रेम : "ले फिर चुप हो गयी..!!कुछ तो बोल यार।गुस्सा कर, चिल्ला ले, रो ले, चाहे तो मार भी ले, पर यूं चुप मत रह मेरी जान। तेरी चुप्पी खलती है मुझे यार।।।" भावना : ............ ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (भाग-4)

मैं भावना की रिपोर्ट्स हाथ मे लेकर स्तब्ध सा बैठा हुआ था..! मुझे अब भी डॉक्टर की कही बातों विश्वास नही हो पा रहा था..!! थोड़ी देर बाद भावना डॉक्टर के केबिन में आई..! डॉक्टर ने जो बातें मुझे कही वो सब उसे भी बताई..! ये सब जानने के बाद तू भावना का हाल हमसे भी ज्यादा बेहाल था। उसके चेहरे का तो रंग ही उड़ गया..! कुछ देर बाद भावना की बाकी की रिपोर्ट्स भी आ गयी। डॉक्टर ने उसकी वो रिपोर्ट्स देखी और भावना से प्रश्न करने लगी..! जब मैं उठकर जाने लगा तो उन्होंने मुझे वहीं ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (भाग-5)

उस दिन भावना ने पहली बार मुझसे कुछ मांगा था । इंकार करने का तो सवाल ही नही था मेरी जान अगर जान भी मांग लेती तो दे देता। मैंने भावना की आंखों से बह रहे आंसूओ को अपने दोनो हाथों से पोंछते हुए उससे पूछा, "बोलो, क्या चाहिए..? अगर मेरे वश में हुआ तो जरूर दे दूंगा।" भावना बोली, "आप दूसरी शादी कर लीजिए प्रेम जी..!" भावना ये मांगने वाली है इसकी तो उम्मीद मुझे कभी सपने में भी ना थी। इससे तो अच्छा भावना मेरी जान ही मांग लेती। अगर मुझे इसकी थोड़ी भी भनक लगी होती ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (भाग-6)

अगले दिन सुबह आंख खुली तो कुछ बेहोंशी सी छा रही थी। मैंने बेड के बगल में देखा, मुझे भावना है। लेकिन जब ध्यान से देखा तो होंश ही उड़ गए। भावना नही सुधा थी। मैं रूम के बाहर भागा। बाहर आकर देखा भावना किचन में थी और मम्मी मंदिर में ..! मैं किचन में भावना की तरफ भागा।उसकी पीठ थी मेरी तरफ। मैंने वैसे ही जाकर उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। भावना जस की तस खड़ी रही। उसने कोई भी प्रतिक्रिया नही दी। मैंने उसे अपनी ओर घुमाया। और पूछा,"क्यों किया तुमने ऐसा..??" लेकिन भावना ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (भाग-7)

भावना घर छोड़कर गयी तो गयी साथ मे तलाक़ के वो पेपर्स भी ले गयी जो मैंने उसे डराने के लिए बनवाये थे। उस दिन जब उसका पहला पत्र आया था, और उसमे भावना ने तलाक के पेपर्स का उल्लेख किया तो मैं दंग रह गया..! हां एक दो बार भावना ने फ़ोन पर जरूर उसने ये बात कही थी। पर वो हर बात में ही तलाक़ की धमकी देने वाली है ये तो कल्पना से भी परे था मेरे लिए। मैंने आज निश्चय किया था ऑफिस का काम निपटा कर अपने साले साहब रवि को कॉल करूँगा। ऑफिस ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (भाग-8)

मैं अगले दिन का अवकाश लेकर इंदौर के लिये निकल पड़ा.!! क्योंकि पत्र में इंदौर का ही एड्रेस लिखा था..!! मुझे अपने शहर इस इंदौर पहुंचने में उतना समय नही लगा जितना इंदौर के एक कोने से दूसरे कोने में पहुंचने में लग गया..!! पहले मैंने सोचा रवि से पूछ लेता हूँ ये कौन सी जगह है.? फिर लगा," पता नही भावना ने उसे बताया है या नही इस पत्र के बारे में..!" कैब वाले ने एक बड़े से हॉस्पिटल के आगे लेजाकर कैब खड़ी कर दी !! मैंने उससे पूछा,"यहां क्यों रोकी गाड़ी..??" ड्राइवर ने कहा," सर ये ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (भाग-9)

मुझे गुस्सा आ रहा था बहुत...! पर गुस्सा किसपर आ रहा था? ये समझ नही पा रहा था मैं..!! पर गुस्सा करना चाहता था मैं, उसपर अपनी नाराज़गी जाहिर करना चाहता था मैं ! "आखिर क्यों किया उसने मेरे साथ ऐसा..?" क्यों मुझे अपनी दुख-तकलीफ़ के बारे में बताना जरूरी नही समझा..??" मेरी खुशी के लिये अपनी सारी खुशियों का त्याग कर दिया..!! भावना ने मेरे बारे में सोचा, पर मैंने क्या किया उसके लिए..? भावना जब भी चिड़चिड़ाती, या गुस्सा करती....मैं हमेशा उसपर गुस्सा हो जाता! उससे बात करना बंद कर देता ! उसके चिड़चिड़ाने की वजह, बार-बार ...और पढ़े

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प्रेम की भावना (अंतिम भाग)

भावना के जाने के दो महीने बाद सुधा ने जुड़वा बच्चो को जन्म दिया। एक बेटा और एक बेटी। बड़ा मन रहा घर मे पूजा-पाठ हो जाये..! मगर मेरा मन नही था। पर मम्मी कहने लगी,"छोटे स्तर पर ही रख लेते हैं प्रेम..!कन्याभोज करवा लेने दे..!!" मैं क्या कहता..? अपने दुख से सबको क्यों दुखी करु?? बच्चो के जन्म के तीन महीने और भावना के जाने के पांच महीने बाद बच्चो का नामकरन संस्कार हुआ..! तब तक दोनो के घर के नाम पड चुके थे। बेटे का नाम रखा "यथार्थ" और बेटी का ,"सृष्टि"...! ये नाम मुझे भावना ने ...और पढ़े

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