’नमस्ते बाउजी. कैसे हैं?’बाहर बरामदे में बैठे बाउजी यानी रामस्वरूप शर्मा जी, सुधीर के दोस्त आलोक के इस सम्बोधन और उसके पैर छूने के उपक्रम से गदगद हो गये. ’ठीक ही हूं बेटा. अब बुढ़ापे में और कैसा होना है? भगवान जितने दिन अभी और कटवाये यहां काटेंगे. अपनी इच्छा से कब कौन गया है? शरीर है तो हारी-बीमारी है, लाचारी है. क्या कीजियेगा? सब झेलना है....!’ किसी को अपनी ओर मुखातिब देख बाउजी ने सारी बातें एक साथ कह लेनी चाहीं. लेकिन तब तक सुधीर अन्दर से आ गया था. बोलते हुए बाउजी की ओर उसने जिन नज़रों से देखा,
Full Novel
सुरतिया - 1
’नमस्ते बाउजी. कैसे हैं?’बाहर बरामदे में बैठे बाउजी यानी रामस्वरूप शर्मा जी, सुधीर के दोस्त आलोक के इस सम्बोधन उसके पैर छूने के उपक्रम से गदगद हो गये. ’ठीक ही हूं बेटा. अब बुढ़ापे में और कैसा होना है? भगवान जितने दिन अभी और कटवाये यहां काटेंगे. अपनी इच्छा से कब कौन गया है? शरीर है तो हारी-बीमारी है, लाचारी है. क्या कीजियेगा? सब झेलना है....!’ किसी को अपनी ओर मुखातिब देख बाउजी ने सारी बातें एक साथ कह लेनी चाहीं. लेकिन तब तक सुधीर अन्दर से आ गया था. बोलते हुए बाउजी की ओर उसने जिन नज़रों से देखा, ...और पढ़े
सुरतिया - 2
अचानक गुड्डू को याद आया कि उसके स्कूल में भी तो लोककला पेंटिंग होने वाली है, वो भी नेशनल की!! यदि बाउजी कोलाज़ जानते हैं, तो और भी बहुत कुछ जानते होंगे. गुड्डू तुरन्त वापस लौटा. बाउजी को बताया. बाउजी तो बाखुशी तैयार हो गये. कब से तो कोई काम जैसा काम खोज रहे थे वे. अब हाथ आया है तो छोडेंगे नहीं. गुड्डू भी मारे खुशी के दौड़ता हुआ सरोज के पास गया खबर सुनाने. “जानती हो मम्मा, बाउजी कोलाज़ जानते हैं और फ़ोक पेन्टिंग भी. वे मेरी एग्जीबिशन के लिये पेंटिंग बनायेंगे...हुर्रे.....!” “अरे! बाउजी कैसे बनायेंगे? उन्हें ...और पढ़े
सुरतिया - 3
आप सोच रहे होंगे कि हम इतना सब क्यों बता रहे? अरे भाई! न बतायें, तो आप बाउजी को पायेंगे? नहीं न? तो चुपचाप पढ़िये उनके बारे में. “क्या बाउजी..... कब से आवाज़ें लगा रही. आप सुनते ही नहीं. कितनी बार कहा है कान की मशीन लगाये रहा कीजिये. अगर नहीं लगानी थी, तो खरीदवाई ही क्यों? पच्चीस हज़ार की मशीन पड़ी है बिस्तर पर और मैं गला फाड़-फाड़ के पागल हुई जा रही हूं.” सरोज, बाउजी की मंझली बहू की झल्लाई हुई आवाज़ इतनी तेज़ थी, कि कोई अगर बाहर के गेट पर होता, तो भी सुन लेता. ...और पढ़े
सुरतिया - 4
सरोज और सुधीर, दोनों का ही महीने के पहले हफ़्ते में मूड अच्छा रहता है, तब तक, जब तक ने पैसा नहीं दिया . उसके बाद फिर रोज़ के ढर्रे पर ही उनका मूड भी चलने लगता है. लेकिन ये बुरा नहीं लगता बाउजी को. घर में यदि कोई ऐसा व्यक्ति रह रहा है जिसे पर्याप्त पेंशन मिल रही हो, तो उसका दायित्व है घर के खर्चों में हाथ बंटाना. टीवी ऑन करके बैठ गये थे बाउजी. सीरियल वे देखते नहीं, न्यूज़ में एक ही न्यूज़ को इस क़दर दिखाते हैं चैनल वाले कि बाउजी उकता जाते हैं. सुबह ...और पढ़े
सुरतिया - 5
सुधीर की आवाज़ पड़ गयी थी बाउजी के कानों में. उन्हें लगा, लौट जायें, लेकिन फिर आ गये टेबल अपनी कुरसी के पास. उनकी कुरसी पर गुड्डू, सुधीर का बेटा बैठा था, सुधीर ने फौरन दूसरी कुरसी की ओर इशारा किया, बाउजी उसके इशारे पर दूसरी कुर्सी खिसका बैठ गये. वैसे आदत तो उन्हें अपनी उसी कुर्सी पर बैठने की है. अब आपको लगेगा कि भई इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है? कहीं भी बैठ गये? लेकिन सबकी आदत होती है न अपनी एक निश्चित जगह पर बैठने की! फिर बाउजी तो सदियों से बैठते चले आ रहे उस जगह.....! ...और पढ़े
सुरतिया - 6 - अंतिम भाग
गुड्डू ने झटपट अपनी टेबल खाली कर दी थी. बाउजी ने वहीं अपना सामान जमाया. दो-तीन दिन खूब रौनक घर में. सुनील कोलकता में है. उसकी बीवी भी बंगाली है. जाने के एक दिन पहले ड्राइंग रूम में दोनों भाई और उनकी पत्नियां बैठक जमाये थीं. वहां से आती आवाज़ों पर बाउजी ने ध्यान लगाया तो समझ में आया कि उन्हीं के बारे में बात हो रही है. सुधीर कह रहा है कि बाउजी के लगातार एक ही जगह रहने के कारण वे दोनों कहीं खुल के आ-जा नहीं पाते. कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम भी नहीं बना पाते. ...और पढ़े