गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत समर्पण : श्री बाँके बिहारी जी के उपासक श्री रामजी व बुआ माया देवी (बेरी वालों) को सादर समर्पित भूमिका सुबह-सुबह सब्ज़ी ख़रीदने जाता तो मेरे पथ में एक कबाड़ी की दुकान पड़ती थी। उसकी दुकान के बाहर प्राचीन समय की एक सोफ़ा-कुर्सी पड़ी रहती थी। वैसे तो उस पर धूल-मिट्टी जमी रहती थी, परन्तु कभी-कभी उस पर कबाड़ी का ग्राहक भी बैठा दिखायी दे जाता था। उस कुर्सी के चारों ओर लगी लकड़ी पर बहुत सुन्दर कारीगरी उकेरी गयी थी जो धूल जमने के कारण किसी का ध्यान आकृष्ट नहीं करती

Full Novel

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गूगल बॉय - 1

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत समर्पण : श्री बाँके बिहारी जी के उपासक श्री रामजी व माया देवी (बेरी वालों) को सादर समर्पित भूमिका सुबह-सुबह सब्ज़ी ख़रीदने जाता तो मेरे पथ में एक कबाड़ी की दुकान पड़ती थी। उसकी दुकान के बाहर प्राचीन समय की एक सोफ़ा-कुर्सी पड़ी रहती थी। वैसे तो उस पर धूल-मिट्टी जमी रहती थी, परन्तु कभी-कभी उस पर कबाड़ी का ग्राहक भी बैठा दिखायी दे जाता था। उस कुर्सी के चारों ओर लगी लकड़ी पर बहुत सुन्दर कारीगरी उकेरी गयी थी जो धूल जमने के कारण किसी का ध्यान आकृष्ट नहीं करती ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 2

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 2 आज रविवार है अर्थात् अवकाश का दिन। छुट्टी अच्छी लगती है। चाहे कितना भी कमेरा व्यक्ति हो, परन्तु छ: दिन की बंधी हुई दिनचर्या से अलग अपनी इच्छा के अनुसार उठना-बैठना, खाना-पीना और अपनी पसन्द का काम करना बहुत सुखद लगता है। गूगल भी आज बहुत खुश है। सर्वप्रथम वह पाँच बजे उठेगा। एक गिलास पानी पीयेगा, नदी के किनारे-किनारे लम्बी सैर पर जायेगा, बाबा कालीधाम आश्रम के पुल पर बैठकर अपनी बाँसुरी बजायेगा, तन-मन से प्रफुल्लित होकर घर लौट आयेगा। आज उसने मन-ही-मन एक विशेष कार्य करने ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 3

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 3 गूगल की आई.टी.आई.में इस वर्ष सुभाष चन्द्र बोस जयंती पर एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। इसी संदर्भ में उसके अध्यापक ने कक्षा में बताया कि गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी रक्तदान करके महादानी बन सकता है। माँ ने भी एक दिन दानवीर कर्ण की कहानी सुनाते हुए बताया था कि दान तो देने वाले की प्रवृत्ति पर अधिक निर्भर करता है। कोई व्यक्ति अभाव में होते हुए भी अपने तन और मन से दूसरे की सहायता करके दानी बन सकता है। सोच-सोच कर उसका मन भी रक्तदान करने ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 4

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 4 बाहर से आकर गूगल ने जैसे ही बैठक अपने औज़ारों का थैला रखा तो पापा-माँ को आहट हो गयी । माँ उठकर उसके लिये पानी लेने चली गयी। ‘पापा, सारा दिन कैसी रही आपकी तबियत ..?’ कमरे में प्रवेश करते हुए गूगल ने पूछा। ‘बेटे, तबियत काफ़ी ठीक रही....दिन भर बुख़ार तो नहीं चढ़ा, परन्तु कमजोरी अधिक आ गयी है... कुछ भी खाने का मन नहीं होता.... सब कुछ कड़वा-सा लगता है’, धीरे-धीरे करके गोपाल उठ बैठा। गूगल के आने से उसमें कुछ स्फूर्ति आ गयी थी। माँ ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 5

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 5 गाँव में प्रत्येक वर्ष जन्माष्टमी का पर्व बड़ी से मनाया जाता है। एक मास पूर्व गाँव के बीचोंबीच बने श्री कृष्ण मन्दिर में सफेदी-रोगन साफ़-सफ़ाई होने लगती है। मन्दिर परिसर को सजाया जाने लगता ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 6

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 6 सुबह-सुबह नारायणी रसोई में नाश्ता बना रही थी। व गूगल भी नाश्ता करने के लिये वहीं आ गये। ‘बेटे गूगल, तू कहे तो आज मैं कुछ सामान ख़रीदने के लिये शहर चला जाऊँ! कई दिनों से शहर जाना ही नहीं हो रहा’, गोपाल ने प्रस्ताव रखा। ‘आप बेफ़िक्र हो कर चले जाएँ। आज आई.टी.आई. में कुछ विशेष काम नहीं है। गाँधी जयंती पर होने वाली प्रतियोगिता के लिये मुझे भी गाँधी जी के तीन बंदरों वाली प्रतिमा बनानी है, यह काम तो मैं घर पर भी कर सकता ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 7

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 7 पन्द्रह दिन के अवसाद के बाद घर की पटरी पर लौटने लगी। गूगल ने दुकान का काम सँभाल लिया। जब वह सामान ख़रीदने शहर जाता तो नारायणी भी दुकान में आकर सामान बेच देती। माँ को संतोष था कि गूगल भी अपने पापा की भाँति घर की सब आवश्यकताओं का ध्यान रखने लगा है। उसे लगता, पिछले पन्द्रह दिनों में गूगल के शरीर में उसके पापा ने वास कर लिया है। कभी-कभी नारायणी सोचती, बालक तभी तक बच्चे रहते हैं, जब तक उनपर ज़िम्मेदारी नहीं पड़ती। ईश्वर इंसान ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 8

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 8 सुबह-सुबह गूगल माँ के साथ उठ बैठा। माँ आदत थी सुबह साढ़े चार बजे से पाँच के बीच उठने की। घर के आवश्यक काम करती। प्रतिदिन स्नान करना, पूजा-पाठ करना, फिर नाश्ता तैयार करना, भगवान को भोग लगाना और सबको प्रसाद खिलाना। गूगल को बिस्तर पर बैठा देखा तो माँ ने टोक लिया - ‘गूगल, रात को तो तुम कहानी सुनते-सुनते ही सो गये थे।’ ‘हाँ माँ, तुम्हारे वीर बालक बादल की कहानी थी ही इतनी मज़ेदार की सुनते-सुनते ही नींद आ गयी। परन्तु मुझे वहाँ तक तो ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 9

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 9 अपनी दिनचर्या पूरी करने के बाद गूगल एक बाँके बिहारी के मन्दिर में गया और गिन्नियों की थैली को सँभाल आया। थैली को सुरक्षित पाकर गूगल निश्चिंत हो गया और अपने बिस्तर पर लौट आया। दुकान का काम अब बड़ा भी हो गया था और आसान भी। पापा को तब ग्राहक के अनुसार शहर जाकर एक-एक सामान लाना पड़ता था परन्तु अब तो बहुत-सा तैयार माल भी उसकी दुकान में मिलने लगा। काम सीखने के लिये उसके मामा का लड़का भी उनके पास आ गया था, जिससे गूगल ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 10

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 10 मशीन ख़रीदने के लिये गया तो गूगल अपने एक गिन्नी भी ले गया। दुकान का सामान ख़रीदकर वह सुनार की दुकान पर आ गया। उसका साथी बलवन्त दुकान पर ही बैठा था। बलवन्त से पहली मुलाक़ात गोवर्धन परिक्रमा के दौरान ही हुई थी। फिर तो बाँके बिहारी ने उनको दोस्त बना दिया। जब कभी आवश्यकता पड़ती तो वह बलवन्त से रुपये भी ले लेता और अधिक होते तो उसके पास जमा भी करवा देता। अपनी माँ के गले की चेन भी उसने बलवन्त से ही बनवायी थी। तब ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 11

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 11 मशीन आने के कारण अब दुकान का काम गया और जल्दी भी होने लगा है। माँ का अधिक समय दुकान पर ही व्यतीत होने लगा है। दुकान की आमदनी बढ़ रही थी तो घर में सुख-सुविधाएँ भी बढ़ने लगीं। दोपहर में भोजन करने के लिये आया तो गूगल ने माँ से कहा - ‘माँ, रक्तदान सेवा का तो तुरन्त फल मिलता है।’ ‘बेटे, रक्तदान पूर्णतया स्वार्थ रहित प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें रक्तदाता को यह भी पता नहीं लगता कि यह किसके काम आयेगा। दूसरी ओर रक्त लेने वाले ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 12

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 12 गणतंत्र दिवस से पूर्व एक विशाल रक्तदान शिविर के नाम रक्तदान’ कार्यक्रम बनाकर सचिव महोदय ने आयोजित किया। इसमें पाँच सौ यूनिट रक्त एकत्रित हुआ। गूगल तो इस कैम्प में जा नहीं पाया, परन्तु उसका नाम वहाँ बार-बार घोषित होता रहा - ‘रक्तदाताओं को उपहार में दिये जाने वाले हेलमेट श्री गूगल जी के माध्यम से बाँके बिहारी जी द्वारा प्रदान किये गये हैं।’ इस बात को लेकर अनेक लोग कानाफूसी तो कर रहे थे परन्तु इससे अधिक किसी को कुछ मालूम नहीं था जो किसी को बता ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 13

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 13 अनेक नौजवान, छात्र लाल रंग के हेलमेट पहने साइकिल पर घूमते दिखायी देने लगे हैं। इनकी तुरन्त पहचान हो जाती है कि इन्होंने रक्तदान किया है। इससे भी रक्तदान के कार्य में बहुत सहायता मिल रही है। लोगों में जागरूकता आ रही है। गूगल के पास कई अजनबी लोगों के फ़ोन आते हैं यह पूछने के लिये कि वह अगला रक्तदान शिविर कब लगायेगा। इन सब बातों से उसका उत्साह बढ़ता है। माँ भी आस-पड़ोस में गूगल की प्रशंसा सुनती है तो खुश हो जाती है। गूगल ने ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 14

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 14 पिछले दस दिन से महा रक्तदान शिविर की बड़े उत्साह से चल रही थीं। रेडक्रास सचिव को जब गूगल ने कैम्प लगाने की बात कही तो उन्होंने उत्साह से भरकर पूछा - ‘कितने यूनिट का कैम्प लगेगा?’ ‘लगभग पाँच सौ यूनिट का..।’ ‘आपने कैसे अनुमान लगाया?’ ‘एक सौ पचास रक्तदाताओं की लिस्ट तो आई.टी.आई. के छात्रों की आ गयी है, सौ के आसपास यहाँ के कॉलेज के छात्र हैं। पचास के आसपास बाँके बिहारी जी के भक्त हैं...सब अनुमान लगाकर मैंने पाँच सौ यूनिट का विचार किया है।’ ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 15

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 15 गूगल की मित्र अरुणा ने भी रक्तदान का करने के लिये एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रखा था। पिछले सप्ताह से वह मन्दिर के पुजारी से मिलकर प्रतिदिन सत्संग में जाकर महिलाओं के बीच रक्तदान की चर्चा करती। प्रारम्भ में तो एक-दो महिलाओं का ही समर्थन मिला, कुछ ने खुलकर विरोध भी किया। अरुणा उन लोगों में से नहीं थी जो विरोध का सामना नहीं कर पाते और निराश होकर बीच में ही मैदान छोड़ जाते हैं। वह तो अपने मित्र गूगल की भाँति दृढ़ निश्चय तथा विश्वास से ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 16

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 16 आख़िर वह दिन भी आ ही गया जब जी के जन्मोत्सव पर विशाल रक्तदान शिविर आयोजित हुआ। एक ओर सभी आगंतुकों के लिये प्रसाद तैयार किया जा रहा था। मन्दिर परिसर में अलग-अलग स्थानों पर तीन टीमों द्वारा रक्त एकत्रित किया जा रहा था। मुख्य मन्दिर के सामने अतिथियों को तथा रक्तदाताओं को सम्मानित किया जा रहा था। अनेक नये लोग प्रथम बार रक्तदान करने आये। बीच-बीच में बाँके बिहारी जी का जय-जयकार किया जा रहा था। मन्दिर के दोनों पुजारी तो भाग-भाग कर काम कर रहे थे। ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 17

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 17 सच तो यह है कि स्वैच्छिक रक्तदान करने लोगों का डर निकल गया। छात्र व युवा तो इसे सम्मान का सूचक मानने लगे। अनेक छोटी-बड़ी सामाजिक संस्थाएँ जो विभिन्न प्रकार की सामाजिक सेवाएँ कर रही थीं, वे भी रक्तदान शिविर आयोजित करने लगीं। किस संस्था ने कितने रक्तदान शिविर लगाये और कितना रक्त एकत्रित किया...आपस में स्पर्धा का विषय बन गया। रक्तदानी संस्थाओं और अधिक बार रक्तदान करने वाले युवकों को बार-बार सम्मानित किया जाने लगा। स्वैच्छिक रक्तदान करना और कराना एक आन्दोलन बन गया। गूगल का पुराना ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 18

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 18 सुबह माँ घर में बने बाँके बिहारी जी मन्दिर में पूजा करके पलटी तो सामने गूगल खड़ा था। उसने गूगल को कहा - ‘बेटा, एक काम कर। अरुणा की माँ को फ़ोन लगा। इस समय वह मन्दिर जाती है। उससे कहना कि मन्दिर से वापसी पर मुझसे मिलकर जाये। मैं भी उससे मन की बात कह देती हूँ... आगे बिहारी जी की इच्छा।’ गूगल ने फ़ोन लगाया तो अरुणा ने उठाया और कहा - ‘जय रक्तदाता गूगल जी।’ ‘जय रक्तदाता अरुणा जी। मेरी माँ की आंटी जी से ...और पढ़े

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गूगल बॉय - 19 - अंतिम भाग

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 19 पहले तो गूगल घर में बने बाँके बिहारी में जाकर कभी-कभी वन्दना करता था। विशेषकर तब जब उसको परीक्षा देने जाना होता था या किसी बड़े काम के लिये जाना होता या कोई बड़ी सफलता हाथ लग जाती थी...परन्तु जब से उसे कुर्सी से ख़ज़ाना मिला है, तब से वह नियमित रूप से मन्दिर में पूजा-पाठ करने लगा है। अब उसको पूरा विश्वास हो गया है कि उसका जो भी काम बन रहा है, वह बाँके बिहारी जी की कृपा से बन रहा है। गूगल के अन्दर बहुत ...और पढ़े

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