जिंदगी मेरे घर आना

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दो दिनों की लगातार बारिश के बाद चैंधियाती धूप निखरी थी. सफेद कमीज और लाल स्कर्ट में सजी बच्चियों की चहचहाहट से मैंदान गूंज रहा था। नेहा को अपने केबिन में बैठे इन सबकी प्यारी-प्यारी उछलकूद देखना बड़ा ही भला गल रहा था। इनमें ही खो सी गई थी कि प्यून ने आकर किसी का विजिटींग कार्ड थमाया... ‘कर्नल एस. के. मेहरोत्रा‘. यूं ही सरसरी निगाह डाल मशीनी ढंग से कह डाला -‘भेज दो।‘

Full Novel

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जिंदगी मेरे घर आना - 1

दो दिनों की लगातार बारिश के बाद चैंधियाती धूप निखरी थी. सफेद कमीज और लाल स्कर्ट में सजी बच्चियों चहचहाहट से मैंदान गूंज रहा था। नेहा को अपने केबिन में बैठे इन सबकी प्यारी-प्यारी उछलकूद देखना बड़ा ही भला गल रहा था। इनमें ही खो सी गई थी कि प ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 2

जिंदगी मेरे घर आना भाग २ और इस सारे बदलाव का श्रेय नेहा नवीना यानी उसे दिया जाता है यह सब तो अनजाने में हो गया किसी योजना के तहत उसने कुछ नहीं किया। किसी भी चीज को गंभीरता से लेना तो उसके स्वभाव में शामिल ही नहीं। भले ही माली काका और उनकी पत्नी या रघु और मंगल के बीच झगड़े सुलझाती वह बड़ी धीर गंभीर नजर आए। लेकिन गंभीरता से उसका कोसों दूर का नाता नहीं। सावित्री काकी के अंदर जाते ही बिल्कुल नन्हीं नेहा बन ठुनकने लगती -‘माली दादा, तुम्हें तो अब इलायची अदरक डाली बढ़िया ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 3

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ३ सुबह उठी तब भी ये भारीपन दिलो-दिमाग पर तारी था। कल घटना भुलाए नहीं भूल रही थी। इसलिए मन बदलने की खातिर लाॅन में चलीं आई। सुनहरी धूप, हरी दूब, उसपर झिलमिलाते ओसकण... सब मिलकर एक अलग ही छटा प्रस्तुत कर रहे थे कि... शरद को प्रवेश करते देख उसका शरारती दिमाग पैंतरे लेने लगा। ०० रस्ते के दोनों ओर झूलते डहेलियां औरों की तरह शरद को भी मोह रहे थे। और वह रूक-रूक कर कुछ झुकते हुए बड़े गौर से उन्हें देखते हुए आगे बढ़ रहा था। धीरे से पीछे ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 4

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ४ जब मम्मी ने शरद से चाय के लिए पूछा और शरद ने कहा तो नेहा को बड़ी ख़ुशी हुई. उसने जोर से सर हिलाया, ‘अब आएगा मजा..” रघु बाजार गया है और सावित्री काकी गेहूँ धो रही हैं। चाय तो नेहा को ही बनानी होगी। ऐसी चाय पिलाएगी, बच्चू जीवन भर याद रखोगे। ठीक ही सोचा था, मम्मी थोड़े देर में आईं और चाय का आदेश दे चली गईं। आश्चर्य चकित भी हुईं कि बिना ना-नुकुर किए इतनी सहजता से कैसे तैयार हो गई वह। पूरे मनोयोग से चाय बनायी नेहा ने। ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 5

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ५ कार स्टार्ट होने की आवाज आई तो नेहा झपटकर ड्राइंगरूम में आ ऐसी चाय, भला चुपचाप पीने का मजा क्या ? जल्दी से ढूढ़-ढ़ाँढ़ कर एक शास्त्रीय संगीत का सी.डी.लगा दिया । असली मजा तो अब आएगा जब वेस्टर्न म्युजिक पर थिरकने वाले को यह संगीत भी गटकना पड़ेगा। मुस्कराहट दबाते, एक पत्रिका में मुँह छुपाकर बैठ गई। कप रख, खड़े हो, शरद ने एक जोरदार अँगड़ाई ली (मानो, इस चाय ने सारी थकान दूर कर दी हो) और एक अदद मुस्कराहट के साथ पूछा -‘कब से शुरू किया है, ये शास्त्रीय ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 6

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ६ नेहा की आँखें खुली तो पसीने से तर-ब-तर थी... ओह! ये पावरकट जान लेकर रहेगा एक दिन... पता नहीं कब किताब पढ़ते-पढ़ते आँख लग गई थी उसकी। बहुत देर तक ठंढे पानी से हाथ-मुंह धोती रही। अचानक ध्यान आया जरा इन महाशय का हाल देखें... और जो देखा तो ईष्र्या से भर उठी... लान में झूले पर लेटा... शरद ठंढी-ठंढी हवाओं के झोकों का मजा लेता... एक मोटी सी किताब में डूबा था। जी तो उसका भी कर रहा है, जरा लाॅन में टहले तो कुछ राहत मिले... पर वो हजरत जो ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 7

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ७ अब लगता है, यह घर का यही माहौल वह भी तो चाहती लेकिन किसी से सहयोग मिले, तब तो। डैडी के लिए तो घर का मतलब था, पेपर, ब्रेकफास्ट, डिनर (लंच वे आॅफिस में लिया करते थे) और नींद... बस। और मम्मी इतना कम बोलतीं - सिर्फ काम की बातें, बस। और भैया को रौब जमाने से ही फुर्सत नहीं। महीने में दस दिन तो उसके साथ लड़ाई ही रहती... रौब तो ये शरद भी कम नहीं जमाता, पर दूसरे ही पल मना भी लेता है, अपनी गलती मान भी लेता है। ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 8

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ८ ‘अंकल... शरद ने शायद कुछ प्रतिवाद में कहा था पर यहां सुनने फुर्सत किसे थी। वह तो उछलती, कूदती दूर निकल आई थी। पर डैडी ने छूट दे दी तो क्या... शरद तो उसकी पहरेदारी को मौजूद था। मम्मी ने एक बार कह क्या दिया कि ‘तुम झरने के पास मत जाना, एक मिनट स्थिर नहीं रहती हो, कहीं पैर रपट गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे।‘ - बस बात गाँठ बाँध ली। खुद तो आराम से भैया के साथ पानी में पैर डाले बैठा था... वह आ ही रही थी ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 9

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ९ और अभी कैसे घूर रहा है, खा ही जाएगा जैसे। मन नहीं तो क्यों आया? नहीं ले आता, तो कोई मर तो नहीं जाती वह... जोर से बोली, ‘तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या?‘ अब जैसे अपने में लौटा वह... वही पुरानी अकड़... ‘हाँ! हाँ! बहुत अच्छा लग रहा है... सारे कपड़े भीग जाएंगे न तो और भी अच्छा लगेगा... चलो अब, बहुत हुआ प्रकृति-दर्शन।‘ -उपहास भरे स्वर में बोला। ‘हे, भगवान! उसने तो ध्यान ही नहीं दिया। हवा के झोंकों के सहारे झरने से पानी की फुहारें सी पड़ रही थीं ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 10

जिंदगी मेरे घर आना भाग – १० इतना मूड खराब हो गया, अपनी स्टडी टेबल पर आ यूँ ही, किताब खोल ली। तभी शरद ने पीछे से आँखों पर हाथ रख दिया (जाने कैसी बच्चों सी आदत है, सुमित्रा काकी भी नहीं बचतीं, इससे। पहले तो वह आराम से नख-शिख वर्णन कर जाती थीं... ‘एक महाशरारती लड़का है, जिसकी कौड़ी जैसी आंख है, पकौड़ी जैसी नाक है, हथौड़ी जैसा मुँह है, कटोरा-कट बाल है।‘ - लेकिन नाम नहीं बोलती) - लेकिन आज मुँह फुलाए चुप रही। शरद ने भी तुरंत हाथ हटा लिया और उसकी किताब की ओर झुकते ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 11

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ११ सर ने क्या पढ़ाया कुछ भी नहीं गया दिमाग तक... बेल लगते डेस्क फलांगती पहुँच गई, अपनी पसंदीदा जगह पर। केमिस्ट्री लैब के पीछे, कामिनी के झाड़ की घनी छाया ही प्रिय स्थल था उनका। वह स्वस्ति, छवि और जूही.... बैग एक तरफ पटक आराम से बैठ गई और उसने सवाल दागा - ‘हाँ! अब बोलो, इससे मेरा क्या संबंध।‘ छूटते ही बोली छवि... ‘तुझसे नही तो और किससे है? इतनी तेजी से किसमें परिवर्तन आता जा रहा है?‘ ‘परिवर्तन आ रहा है? क्यूँ भला, चेहरा वही, हाईट वही, रंग वही... फिर? ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 12

जिंदगी मेरे घर आना भाग – १२ उदास चेहरा लिए वह घर भर में घूमती रहती है... पर किसी कोई गुमान ही नहीं। सब समझते हैं एग्जाम की टेंशन है. सिक्के का दूसरा पहलू देखने का कष्ट किसी को गवारा नहीं। चुपचाप बिस्तर पर पड़ी रहती है, तकिया, आँसुओं से गीला होता रहता है। इतना असहाय तो कभी महसूस नहीं किया, जीवन में। घर की नए सिरे से साज-संभाल होती देख खीझ कर रह जाती है और कोसती रहती है, खुद को... हाँ! ठीक कहती है, स्वस्ति, बिल्कुल ठीक कहती है, बहुत बदल गई है, वह। अभी पहले वाली ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 13

जिंदगी मेरे घर आना भाग – 13 नए सिरे से किताब में मन लगाने की कोशिश कर ही रही कि बुआ आती दीखीं। हाथ में उनके एक फोटो था। देखते ही बिफर पड़ी। ‘बुआ! मैंने कह दिया है न‘ ‘तूने जो कहा है, मैंने सुन लिया और अब मेरी भी सुन‘ - शांत स्वर में बोलीं वह। ‘मुझे कुछ नहीं सुनना...‘ और किताब नजरों के सामने कर जोर-जोर से पढ़ने लगी। ‘ठीक है, फोटो रखती जा रही हूँ.... कल सुबह मुझे अपने विचार बता देना... कुछ हल निकालना होगा या नहीं। तुम अपनी बात पर अड़ी रहो... भैया-भाभी अपनी ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 14

जिंदगी मेरे घर आना भाग- १४ नेहा में वही पुरानी चपलता लौट आई थी बस बीच-बीच में रोष की की जगह सिंदूरी आभा छिटक आती, चेहरे पर। सहेलियों के बहुत कुरेदने पर भी सच्चाई नहीं आ सकी होठों पर। लेकिन जब एंगेज्मेंट का दिन करीब आने लगा तो स्वस्ति को राजदार बना ही लिया। सुन कर किलक उठी स्वस्ति... नाराज भी हुई। - -‘हाय! सच नेहा, जा मैं नहीं बोलती तुझसे...इतना गैर समझा मुझे... बिल्कुल भी बात नहीं करनी तुझसे।‘ - लेकिन छलकती खुशी ने ज्यादा देर तक नाराजगी टिकने नहीं दी। दूसरे ही पल उसका कंधा थाम बोली- ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 15

जिंदगी मेरे घर आना भाग – १५ डैडी ने दो-चार बेहद करीबी दोस्तों को चाय पर बुला लिया था... अंकल तो, खैर सुबह से यहाँ ही थे) सब शरद को शुभकामनाएँ देना चाहते थे। सबके बीच भी शरद की जिंदादीली वैसे ही, बरकरार थी - खन्ना आंटी को सफेद बैकग्राउंड वाली साड़ी में देखकर बोला -‘क्या आंटी, आपने ऐसी साड़ी पहन रखी है अरे! ये तो सुलह का प्रतीक है। इस बार हम लोग कोई समझौता-वमझौता नहीं करेंगे। इस्लामाबाद तक खदेड़ कर न रख दिया तो कहना‘ -‘वही बेमतलब सी बातें जो कोई अर्थ नहीं रखतीं पर जड़ता तोड़ने ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 16

जिंदगी मेरे घर आना भाग – १६ उसकी ये हालत देख, शरद भी घबड़ा उठा। बड़ी आजीजी से गीली में बोला- ‘नेही... नेही.. प्लीज ऐसे मत रो पगली... बोल कैसे जा पाऊँगा मैं?...तुझे ऐसी हालत में छोड़कर कदम उठेंगे, मेरे?... बोलो... नेहा प्लीज... मेरे सर की कसम जो और... जरा भी रोई...‘ बड़ी मुश्किल से काबू कर पाई, खुद पर। उसका चेहरा हथेलियों में भर शिकायती स्वर में बोला - ‘यों कमजोर न बनाओ मुझे‘; आवाज की कम्पन ने ही उसे आँखें उठाकर देखने पर मजबूर कर दिया। बिना आँसुओं के ही वे आँखें, इस कदर लाल थीं कि... ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 17

जिंदगी मेरे घर आना भाग- १७ जैसी की आशा थी (और प्रार्थना भी).... युद्ध बंद हो गया। दोनों पक्षों जान-माल की भारी हानि उठानी पड़ी। पूरे युद्ध में भारत हावी रहा और इसके जवानों ने अपूर्व वीरता का प्रदर्शन किया था। सारे देश में उत्साह-उछाह की लहर दौड़ गई थी। युद्धस्थल से लौटते जवानों का हर स्टेशन पर भव्य स्वागत होता। उपहार और मिठाइयों के अंबार लग जाते, तिलक लगाया जाता, आरती उतारी जाती। इस बार उसने भी सक्रिय भाग लिया था, इन सब में। 'लायंस क्लब' में एक कमिटी बनी थी... जिसकी जेनरल सेक्रेट्री का पद संभाला था, ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 18

जिंदगी मेरे घर आना भाग- १८ ‘... ईश्वर न करे कभी किसी का ऐसे दृश्य से साक्षात्कार हो। नेहा, तुम सामने होती तो सच कहता हूँ जावेद की स्थिति देख, गश आ जाता तुम्हें। जावेद का शरीर गले तक सुन्न हो गया था। मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था, आवाज आनी भी बंद हो गई थी। सिर्फ उसकी बड़ी-बड़ी आँखें खुली थीं जो सारा वक्त छत घूरती रहतीं। डॉक्टर भी आश्चर्यचकित थे कि कैसे सर्वाइव कर रहा है, वह। लेकिन मैं जानता था, दो नन्हें-मुन्नों और एक बेसहारा नारी की चिंता ने ही उसकी साँसों का आना-जाना ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 19

जिंदगी मेरे घर आना भगा- १९ मिनटों में ही जैसे सारा पिछला जीवन जी गई. अभी भी नेहा की तो फाइल पर ही जमीं थीं. शरद इतनी देर तक कुर्सी से पीठ टिकाए, एक प्रिंसिपल की व्यस्तता टॉलरेट कर रहा था। नेहा का व्यस्त होने का बहाना अब बिखरने लगा था. फाइल में गड़ी नजरें धुँधली पड़ने लगी थीं, अक्षरों की पहुँच तो पहले भी दिमाग तक नहीं थी। आखिरकार... उसे फाइल गिराना ही पड़ा और बिखरे कागजों को समेटने के बहाने आँखों की नमी को सुखा पेपर व्यवस्थित कर सर उठाया तो पाया, हल्का सा स्मित लिए शरद ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 20

जिंदगी मेरे घर आना भाग- २० अपने केबिन में आकर कुर्सी पर ढह सी ही गई. बार बार अपना हाथ खोल कर देखती और फिर जोर से मुट्ठी बंद कर लेती मानो क्षण भर के लिए जो शरद के हाथों की नर्म ऊष्मा मिली थी वो कहीं खो न जाये.शायद काफी देर तक निढाल सी पड़ी रही क्यूंकि मिस जोशी कुछ पूछने आईं और उसे देखकर घबरा गईं, “मैम आपकी तबियत तो ठीक है ?? क्या हुआ ? बुखार है...सर दर्द है ? न हो तो आप घर चले जाइए. आज आराम कीजिए “ आराम के नाम से ही ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 21

जिंदगी मेरे घर आना भाग – २१ स्कूल की प्रिंसिपल छाया गुहा को देखकर मम्मी-डैडी एकदम निश्चिन्त हो गए.छाया बहुत स्नेहिल थीं. उन्होंने मम्मी-डैडी को पूरा आश्वासन दिया कि वे नेहा का अपनी बेटी की तरह ख्याल रखेंगी. वे नेहा को देख बहुत खुश हुईं थीं. उन्हें आशा नहीं थी कि कॉलेज से निकली कोई फ्रेश लड़की यहाँ आने की सोचेगी. इस स्कूल को ऊंचाइयों तक ले जाने के उनके बहुत सपने थे और इस सपने को पूरा करने के लिए वे युवा लोगों का सहयोग चाहती थीं. जो उनकी तरह ही समर्पित हों. इन बच्चों के साथ नेहा ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 22

जिंदगी मेरे घर आना भाग- २२ शरद उसे देखते ही एकदम अटेंशन की मुद्रा में खड़ा हो गया और कर फूल आगे बढ़ा दिए.विमूढ़ सी नेहा ने फूल थाम लिए पर कुछ बोल ही नहीं पाई. थैंक्स भी शायद होठों में ही रह गया. नेहा ने शरद को बैठने का इशारा किया...पर शरद तब तक नहीं बैठा, जब तक नेहा नहीं बैठ गई....ये आर्मी के एटिकेट्स. अभी शरद यूनिफ़ॉर्म में नहीं था और टी शर्ट जींस में एक दुबले-पतले लडके सा लग रहा था. उम्र जैसे उसे छू कर भी नहीं गई थी. नेहा थोड़ी सी कॉन्शस हो गई. ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 23

जिंदगी मेरे घर आना भाग – २३ स्कूल में तो नेहा बिलकुल व्यस्त रहती पर घर आते ही ख्याल कहीं शरद फिर से न आ धमके. वो देर तक साड़ी नहीं बदलती.साड़ी बदलती भी तो पहले की तरह गाउन नहीं पहनती, एकाध बार शीशे में भी झाँक लेती, बाल ज्यादा तो नहीं बिखरे हुए. फिर खुद से ही पूछती वह शरद के प्रति इतनी उदासीन है तो फिर अपने रख रखाव का इतना ख्याल क्यूँ रख रही है और फिर खुद ही जबाब दे देती, सलीके से तो रहना ही होगा...एकदम लद्धड़ सी तो नहीं रह सकती न. पर ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 24

जिंदगी मेरे घर आना भाग- २४ शरद को ड्राइंग रूम में बैठाकर नेहा ने किचन का रूख किया. जैसा उसे अंदेशा था. सोनमती ने ढेर सारी चीज़ें फैला ली थीं और अब लस्त-पस्त हो रही थी. ”इतना सारा क्या क्या बनाने लगी...तुम्हारी यही आदत है लाओ मैं कुछ मदद कर दूँ ““अरे नहीं दीदी जी बस हो गया...आप जाकर बैठो न.मैं फटाफट कर लूँगी. “ नेहा ने शिकंजी बनाने के लिए नीम्बू निकाले तो सोनमती लपक कर आई, “मैं बना देती हूँ...”“चुपचाप जो फैलाया है, उसे समेटो...जल्दी करो वरना पांच बजे लंच मिलेगा “ नेहा ने डपटा. जब नेहा ...और पढ़े

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जिंदगी मेरे घर आना - 25 - अंतिम भाग

भाग- 25 (अंतिम भाग ) अब डैडी के लिए मन्नत वाली बात मनगढ़ंत थी, ये नेहा और शरद दोनों थे पर कुछ कह नहीं सकते. लम्बी, घुमावदार, बलखाती सडक पर दौड़ती जीप और आसमान में खरगोश के छौने से कूदते-फांदते सफेद बादलों के साथ लुका-छिपी खेलता सूरज एक रोमांच पैदा कर रहा था. सच है, ऐसे ड्राइव पर नेहा शायद पहली बार आई थी. यूँ तो किसी ना किसी बहाने शाहर का चप्पा -चप्पा घूम चुकी थी पर अगली सीट पर ड्राइवर होता और कुछ लोगों के साथ पिछली सीट पर नेहा. वह साथी टीचर्स से ज्यादा घुल-मिल नहीं ...और पढ़े

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