.................ऐसे मिला एकलव्य अंगुष्ठ हमारे देश के अधिकांश लोग भील बालक एकलव्य के बारे में केवल अंगुष्ठदान के प्रसंग से ही परिचित हैं। उसके सम्बन्ध में और अधिक जानने के लिये हम सभी उत्सुक रहते हैं। इसी प्रेरणा से, एकलव्य के बारे में शोध करना मेरे चिन्तन में समाहित हो गया। .........मैंने एकलव्य को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महाभारत एवं उसके एक अंश कहे जाने वाले हरिवंश पुराण के प्रसंगों में खोजने का प्रयास किया है। लोक कथा एवं जनश्रुतियों के अतिरिक्त रामचरितमानस के प्रसंगों ने एकलव्य की कथा के विस्तार में सहयोग किया है। पाण्डव युग में
Full Novel
एकलव्य 1
.................ऐसे मिला एकलव्य अंगुष्ठ हमारे देश के अधिकांश लोग भील बालक एकलव्य के बारे में केवल अंगुष्ठदान प्रसंग से ही परिचित हैं। उसके सम्बन्ध में और अधिक जानने के लिये हम सभी उत्सुक रहते हैं। इसी प्रेरणा से, एकलव्य के बारे में शोध करना मेरे चिन्तन में समाहित हो गया। .........मैंने एकलव्य को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महाभारत एवं उसके एक अंश कहे जाने वाले हरिवंश पुराण के प्रसंगों में खोजने का प्रयास किया है। लोक कथा एवं जनश्रुतियों के अतिरिक्त रामचरितमानस के प्रसंगों ने एकलव्य की कथा के विस्तार में सहयोग किया है। पाण्डव युग में ...और पढ़े
एकलव्य 2
2 द्रोणाचार्य और गेंद का प्रसंग जीवन में जब जब प्रोढ़ता यानी कि मृत्यु की निकटता अनुभव है, तब तब मानव के चित्त पर पूर्व के कृत्यों की झांकी भाषित होने लगती है। वही झांकी दुःख से निवृत होने के बाद भी कुछ समय तक चित्त में अपना स्थान बनाये रखती हैं। आचार्य द्रोण प्रतिदिन की तरह चिन्तन में डुबे हुये गंगा स्नान के लिये निकले। उस समय सभी राजकुमार नित्य की तरह उनके साथ थे। ध्यानमग्न आचार्य स्नान करने के लिये कुछ अधिक गहरे जल में प्रवेश कर गये। वे चौंके और उनने अनुभव किया कि अचानक ...और पढ़े
एकलव्य 3
3 परमहंस बाबा का सन्देश जीवन में जब कोई नया कार्य आरम्भ किया जाए उसके बारे में योजनाएँ पूर्व में ही बना ली जावें।आज यही सोचकर निषादराज हिरण्यधनु और उनकी पत्नी सलिला युवराज एकलव्य को गुरूदेव द्रोणाचार्य के पास भेजने की तैयारी करने लगे। हिरण्यधनु ने उसे स्वर्ण मुद्रायें दी और संभलाकर रखने को कहा । वे उसे यात्रा के निर्देश दे रहें थे। यकायक वे बोले ‘‘मैं स्वयं आचार्य द्रोण के समक्ष उपस्थित होकर निवेदन करना चाहता था, लेकिन इन दिनों दस्युओं का आतंक अत्यधिक बढ़ गया है, इसी कारण मैं अपने पुरम को नहीं छोड़ ...और पढ़े
एकलव्य 4
4 पांन्डवों का प्रिय श्वान। आज निषादराज हिरण्यधनु अत्याधिक चिन्तित हैं। उन्हें लग रहा था कि यदि आरंभ से सांदीपनि आश्रम की ओर एकलव्य को प्रेरित किया होता, तो आज यह समस्या सामने ही न आती। द्रोणाचार्य की शिक्षा पद्धति की साज सज्जा हम सबको आकर्षित करती रही और हमने एकलव्य को आचार्य द्रोण के यहां भेज दिया ? द्रोणाचार्य भी नीच जाति के युवक को राजकुमारों के साथ कैसे सिखाते ? आचार्य ने अपनी शब्दावली से सम्पूर्ण निषादजाति का अपमान किया है। जिस आदमी में सवर्ण अवर्ण का ऐसा विष भरा है , समझ नहीं आ रहा ...और पढ़े
एकलव्य 5
5 कैसे स्वागत करूँ मैं गुरुदेव का ? सतत् अभ्यास से ही मानव अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाया है। निश्चित उद्देश्य को लेकर जो अभ्यास किया जाता है वह उसमें सफल होकर रहता हैं किन्तु हम अपने कार्य का सही लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते हैं। एकलव्य ने इसी सिद्धांत पर अपना लक्ष्य निर्धारित किया। वह उस पथ पर, मन को एकाग्र करके चलता रहा तो आज उसकी धनुर्विद्या ईर्ष्या का विषय बन गयी। उसने जो कुछ अर्जित किया, किसी की कृपा का फल नहीं बल्कि अपने श्रम और अभ्यास का परिणाम है। आज भारत वर्ष के ...और पढ़े
एकलव्य 6
6 द्रोण के आचरण का भाव वेणु के पिता जी ग्रामप्रधान चन्दन को आज याद आ रही है उस की, जब एकलव्य रात्रि विश्राम हेतु पुत्री वेणु की अभ्यास स्थली में आकर रूके थे। उस दिन वेणु ने उन्हें लक्ष्यबेध कर दिखलाया था। वेणु के लक्ष्यवेध से प्रभावित होकर ही वे अभ्यास के लिये यहां आये हैं। उन्हें ज्ञात हो गया, मेरी पुत्री सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर से ही विवाह करेगी। वेणु के कहने से ही मैंने एकलव्य से मिलने का प्रयास नहीं किया। आज के पूर्व पाण्डव भी तो एकलव्य से मिलने के लिये आये थे। यह बात हमें, अपने ...और पढ़े
एकलव्य 7
7 कुरूवंशी निषादकन्या सत्यवती की सन्तान ’जब जब आपदायें आई हैं, किसी नये पथ का निर्माण उपस्थित हुआ। उस के स्वरूप का निर्धारण उस आपदा पर निर्भर रहा है।’’इस गहन चिन्तन में निषादराज बारात लेकर लौट आये। जैसे ही उन्होंने निषादपुरम में प्रवेश किया , परमहंस बाबा की खोज की गई। परमहंसजी का कहीं कोइ पता नहीं चला। हिरण्यधनु राजप्रसाद के विशाल कक्ष में सिंहासन पर विराजमान थे। उन्होंने विवाह के उपलक्ष में होने वाले लोकनृत्यों का बहिष्कार कर दिया है। पास में ही मंत्री चक्र्रधर बैठे थे। पहरे पर पहरे दार धनुषबाण लिये खड़े हैं। इस समय ...और पढ़े
एकलव्य 8
8 एकलव्य को निषाद ही रहने दें। ’’मानव जीवन में कुछ ऐसे क्षण भी उपस्थित होते है जिनमें वह पूर्व कृत्यों का मूल्यांकन करने लगता है। उन क्षणों की गहरी तहों में प्रविष्ट होकर विवेचन करने का प्रवाह वह निकलता है।’’ इसी दशा में डूबे द्रोणाचार्य को गुप्तचर ने निषादपुरम की नवीन स्थिति से अवगत करा दिया था। आज अर्जुन के पांचाल से युद्ध करने हेतु चले जाने के प्श्चात् उन्हें अपने निर्णय पर बारंबार पश्चाताप आ रहा है कि उन्होंने एकलव्य को उस दिन शिष्य क्यों नहीं बनाया ? उसके पश्चात् भी इति नहीं की, उसका अंगुष्ठ ...और पढ़े
एकलव्य 9
9 द्रोपदी के स्वयंवर में एकलव्य द्रोपदी स्वयंबर की सूचना सम्पूर्ण भारत वर्ष के राजाओं को हो गई। द्रोपदी विश्व की अद्वितीय सुन्दरी !! कहते हैं अग्निशिखा सी सुंदर इस युवती ने अग्नि कुण्ड से जन्म लिया है ! बड़े बड़े धनुर्धर उसे पाने की लालसा लगाने लगे। देश के अधिकांश धनुर्धर उस स्वयंवर में भाग लेने का मन बनाने लगे। कुछ को द्रोपदी वरण से भी कोई मोह नहीं था तो भी धनुर्विद्या के परीक्षण का अवसर हाथ से खोना नहीं चाहते थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में देश के जन समूह के सामने आने का यह ...और पढ़े
एकलव्य 11
11एकलव्य का भक्ति भाव ‘‘ जिसके लिये हम जी जान से अपना सर्वस्व निछावर करने के लिये रहते है, वही हमारे सामने यु़द्ध करने के लिये शस्त्र लेकर खडा हो जाय। कैसा लगेगा उस समय ? हमें लगेगा, उसे हराकर अपने अस्तित्व का एक बार और बोध करा दें।” आचार्य द्रोण बिस्तर पर पड़े पड़े यही सब सोचने लगे कि हम राजसभा और आचार्यों को लेकर बैठे रहे। पाण्डवों के तेरह वर्ष पूर्ण होने की गिनती नहीं कर पाये। युद्धभूमि में यदि भीष्म पितामाह से यह प्रश्न न किया जाता तो शायद उस समय भी हमें काल का ...और पढ़े
एकलव्य 10
10 शिवरात्रि का पर्व और एकलव्य पड़ोसी के सुख दुख जानने की प्रवृति मानव की प्रारम्भ से रही है। धीरे धीरे राजनीति में निहित स्वार्थों के कारण पड़ोसी के प्रत्येक कार्यकलाप में हम अपना प्रतिबिम्ब देखने लगे। राजाओं के गुप्तचर की व्यवस्था का जन्म इसी सन्दर्भ में हुआ होगा। हस्तिनापुर में लोग हमारे बारे में क्या कहते हैं ? यह विचार करके निषादराज ने अपना एक गुप्तचर हस्तिनापुर की गतिविधियों को जानने के लिये रखा था। हां उन्हे पांचाल नरेश के यहां गुप्तचर रखने की आवश्यकता नहीं हुई। क्यों कि वहां की बातें तो उन्हे नाविकों से ज्ञात ...और पढ़े
एकलव्य 13
13 कुशल प्रशासक सम्राट जरासंध से सीख पुष्पक अपनी पत्नी को समाचार सुना रहा था कि उसने गत दिनों अजीब घटना क्रम समीप से देखा । वह वर्णन करने लगा और उसकी पत्नी ध्यान से सुनने लगी । .......जब राजा पौण्ड्र (करूश) कुमायु की गद्दी पर बैठा। उसने निषादराज एकलव्य के गदा संचालन के साथ उनके अट्ठासी हजार वीर योद्धाओं के बारे में सुन रखा था। वह श्रीकृष्ण से द्वेश भावना रखने लगा। पौण्ड्र को पता चल गया कि हमारे निषादराज, अर्जुन की श्रीकृष्ण से घनिष्ठ मैत्री के कारण उनसे द्वेषभाव रखते हैं। इसलिये वह निषादराज एकलव्य से मिला। ...और पढ़े
एकलव्य 14
14एकलव्य और बलराम में गदा युद्ध निर्धारित योजना के अनुसार निषादराज आक्रमण करने के लिये द्वारिकापुरी जा पुष्पक ने सोचा- पौण्ड्र (करूश) कुमायूं से चल पड़ा होगा। वह भी यहाँ आने ही वाला होगा। उधर द्वारका में ज्यों ही सूचना पहुंचेगी वहां से कोई महाबली युद्ध करने आएगा । सचमुच ही निषादराज के आक्रमण की सूचना द्वारिकापुरी पहुँच गई थी। बलराम अपनी सेना के साथ युद्ध के मैदान में आते दिखाई पड़े। दर्शक बने रहने के लिये मैं एक टीले पर जाकर खड़ा हो गया। मैंने अपने सामने तीव्र गति से एकलव्य की ओर बढ़ते हुये ...और पढ़े
एकलव्य 12
12एकलव्य का राज्याभिषेक एक दिन हंसी हंसी में महारानी ने निषादराज हिरण्यधनु से कहा, “स्वामी कुछ दिनों से आपकी में भी श्वेत बाल दृष्टि गोचर होने लगे है।” महारानी की यह बात सुनकर वे सोचने लगे, “अयोध्या के राजा दशरथ ने तो दर्पण में श्वेत बालों को देखकर राम का राज्याभिषेक करने का निश्चय कर लिया था। कहीं महारानी सलिला इसी बात का संकेत तो नहीं दे रहीं हैं।’ यह सोचकर बोले, “हम समझ गये महारानी का संकेत किस ओर है?” “मैं समझी नहीं किस ओर संकेत ?” “यही महारानी, हमें एकलव्य का राज्याभिषेक कर देना चाहिये।” ’स्वामी मेरा ...और पढ़े
एकलव्य 15
15प्रकृति धर्म समय अपनी गति से प्रवाहमान रहता है। निषाद एकलव्य भील जातियों के कल्याण कार्य में व्यस्त रहने लगे। उनके पुत्र पारस और विजय अपने पिता की तरह धनुर्विद्या और गदा संचालन में प्रवीण हो गये। वे भी अपने पिता के अनुसार प्रतिभाशाली हैं। उसकी माताजी वेणु उन्हे धनुर्विद्या के अभ्यास कराने में व्यस्त रहती थीं। अनेक दिन बीत चुके थे । आज लम्बे समय बाद निषादराज एकलव्य के दरबार में सभासदों की सभा हो रही है। महारानी वेणु हर बार की तरह निषादपति एकलव्य की बांयी ओर सिंहासन पर विराजमान हैं। सभी सभासद आसन ग्रहण कर चुके हैं। ...और पढ़े
एकलव्य 16
16एकलव्य का अवसान‘ युद्ध शान्ति। युद्ध में विनाश है शान्ति में सृजन। युद्ध में वीभत्सता के दर्शन होते हैं, शान्ति में लोक कल्याण की भावना का विस्तार होता है। कभी-कभी शान्ति के लिये भी युद्ध अनिवार्य हो जाता है । एकलव्य उस दिन यही सोच रहे थे । उधर कौरव और पाण्डवों के सम्बन्ध में गुप्तचर पुष्पक सूचना भेज रहा था। कौरव और पाण्डव की ओर से सन्देश वाहकों के द्वारा युद्ध में सम्मिलित होने के लिये निमन्त्रण आ चुके थे। सन्देश वाहकों के हाथ आये आमंत्रण की उदासीन और औपचारिक सी भाषा से एकलव्य समझ ...और पढ़े
एकलव्य 17
17 युद्धभूमि में दर्शन ! .......और एक दिन बहुप्रक्षित महायुद्ध आरम्भ हो गया । हालांकि दोनो ओर से आक्रमण का आदेश हुआ था और न कोई तीर चला । सेनायें आमने सामने आ डटी थी । यौद्धा अपने हथियार चमका रहे थे । संजय ने जो कुछ धृतराष्ट्र को सुनाया उसे गुप्त भाषा में लिखकर पुष्पक ने अपने राजा को सारा वृतांत भेज दिया । जिसे उस भरी राजसभा में मंत्री शंखधर उसे पढने का प्रयास कर रहे थे । सहसा उन्होंने सिर ऊॅंचा किया ......... और कहा, ’’अब तो दोनों सेनायें आमने सामने कुरूक्षेत्र के मैदान में आकर ...और पढ़े
एकलव्य 18
18महावीर बर्बरीक कौरव पाण्डवों के युद्ध उनके जीवन ओैर उनके विचारों के बारे में जन में नाना प्रकार की कथायें प्रचलित थीं । निषादमुनि, पुरम के एक मोहल्ले में एकत्रित हो गये लोगों को, ऐसी ही एक जन श्रुति सुना रहे थे कि मुरदानव की कामकटंकटा नाम की परमसुन्दरी कन्या थी। उसने शर्त रखी कि जो वीर मुझे पंजा लड़ाने में हरा देगा। मैं उसी के साथ विवाह करूँगी। यह प्रण सुन कर अनेक पराक्रमी वीर आये और हार मान कर चले गये। परमवीर घटोत्कच भी आया। उपस्थ्ति लोगों ने एकस्वर में मुनि से पूछा, कौन ...और पढ़े
एकलव्य 19 - अंतिम भाग
19 श्रीकृष्णा के अवसान में.... वेणु जीवन भर से धनुर्विद्या के सतत् अभ्यास में लगी रही थीं अब भी वे उसी तन्मयता से अपना दैनिक नियम पूरा करती थीं। एक दिन उनके पुत्र निषादराज पारस ने पूछा , “माताजी, अभ्यास से कभी आपका मन नहीं भरा ?आप तो इस विद्या में बहुत आगे निकल गई है ।” “नहीं वत्स, मैं तो इस विद्या की साधारण छात्रा हूँ और छात्र-छात्राओं के लिए अभ्यास जीवन का क्रम कहलाता है। हां मैंने यह तय किया है कि जिस दिन मैं अपने सपनों को तुम्हारे माध्यम से साकार कर सकूँगी, उसी दिन ...और पढ़े