कान्ता बार बार दरवाजे तक आती और घूंघट से झांक कर देखती पर दूर दूर भी कही सत्तू नहीं दिखाई दे रहा था। ये इंतजार की घड़ियां बढ़ती ही जा रही थी। शाम हो गई । सुबह से राह देखते देखते शाम हो गई पर आनंद नहीं आया। सुबह का बना खाना वैसे का वैसा ही रखा रह गया। अब क्या करूं? कांता की घबराहट बढ़ती ही जा रही थी । जिसका इंतजार था वो तो ना आया पर सासू मां आ गई आते ही सवाल किया, "क्यो दुलहिन… ? चूल्हा क्यों नहीं जलाया?" घबराई सी कान्ता पास आकर बुदबदाई "माई देवर जी नहीं आए हैं ।" "क्या कहा...? नही आया ? ये क्या हुआ...? खेत में था तो बोला की माई भूख लगी है। खाना खाने घर जा रहा हूं, तो आया नही क्या……?"

Full Novel

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ये कैसी राह - 1

कान्ता बार बार दरवाजे तक आती और घूंघट से झांक कर देखती पर दूर दूर भी कही सत्तू नहीं दे रहा था। ये इंतजार की घड़ियां बढ़ती ही जा रही थी। शाम हो गई । सुबह से राह देखते देखते शाम हो गई पर आनंद नहीं आया। सुबह का बना खाना वैसे का वैसा ही रखा रह गया। अब क्या करूं? कांता की घबराहट बढ़ती ही जा रही थी । जिसका इंतजार था वो तो ना आया पर सासू मां आ गई आते ही सवाल किया, क्यो दुलहिन… ? चूल्हा क्यों नहीं जलाया? घबराई सी कान्ता पास आकर बुदबदाई माई देवर जी नहीं आए हैं । क्या कहा...? नही आया ? ये क्या हुआ...? खेत में था तो बोला की माई भूख लगी है। खाना खाने घर जा रहा हूं, तो आया नही क्या……? ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 2

एक मां के हृदय की पीड़ा कौन समझ सकता है….? उस मां की जिसका पुत्र बिना कुछ कहे….! बिना बताए….! अचानक घर से चला जाए। उस पीड़ा का सिर्फ अनुमान ही किया जा सकता है सामने के व्यक्ति के द्वारा। कोई दूसरा इसे नही समझ सकता। माई अपने आप को असहाय महसूस कर रही थी। एक बेटा कोसो दूर था तो एक बेटा घर से अचानक चला गया। पति तो बहुत पहले ही अकेला छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए थे। वो सहारा भी ढूंढे तो कहां? कांता कभी बाहर नहीं जाती थी। उसके बच्चे भी अभी छोटे थे। फिर भी कांता जो कुछ सास के लिए, इस घर के लिए कर सकती थी, कर रही थी। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 3

सत्तू,भाई के बच्चों से बहुत लगाव रखता था। वो उन्हें घुमाता, कहानियां सुनाता, उनके साथ खेलता भी था। इस अचानक चाचाके चले जाने से बच्चे बहुत परेशान थे। राम देव, कांता से बच्चे पूछते, पिताजी... मां …! चाचा कहांगए... ? उन्हें कान्ता और राम देव बहलाते, बेटा …! तुम्हारे चाचा जल्दी आ जायेंगे। रामू कामंझला बेटा जो चाचा से ज़्यादा हिला मिला था अक्सर याद कर रोने लगता । वो बाकी दोनों भाइयों की तरह मां पिताजी की बात पर यकीन नहीं होता। उसे चुप कराने और समझाने के बीच अक्सर कान्ता की आंखों से भी आंसू बह निकलते। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 4

रात भर में पैर और भी सूज आया। साथ ही दर्द भी बढ़ गया। ना तो उससे चला जा था, ना ही खड़ा हुआ जा रहा था। अब जब खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा था तो इस स्थिति में तो नौकरी पर जाना संभव नहीं था। इस कारण जाना निरस्त करना पड़ा। अगले दिन सुबह गांव के ही एक डॉक्टर को दिखाया गया। डॉक्टर ने बोला, आराम हो जाएगा परंतु समय लगेगा। अभी आप कहीं नहीं जा सकते। आपको घर पर ही रहना पड़ेगा। वो डॉक्टर क्या ही था..! झोला छाप बंगाली डॉक्टर था। पूरे गांव का इलाज वो ही करता था। उसने अपनी देसी डाक्टरी की। बांस की कमानी बना कर उससे पैरी को चारो ओर से कस कर मजबूती से बांध दिया। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 5

इधर उस दिन जब सत्य देव भाभी के कहने पर आम के बाग में टिकोले लाने पहुंचा, तो उसनेे पेड़ के नीचे तीन साधु बैठे हुए थे। उनको देख कर सत्य देव अचकचा सा गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये कहां से आ गए..? ये बाग उसकी तो है नही। वो तो दूसरे के बाग में टिकोले तोड़ने आया है। ऐसा न हो ये साधु उसे डांटे। सत्य देव कीघबराहट कोसाधुओं ने भांप लिया। उन्होंने बड़े प्यार भरी नजरों से सत्य देव की ओर देखा और कहा, बालक..! इधर आओ बालक..! डरो मत ..। पहले तो सत्य देव डरा। फिर उन साधुओं की आखों की आंखों मेंहिचकिचाहट के साथ सत्य देव थोड़ा आगे बढ़ा। साधुओं ने फिर कहा, आओ बालक घबराओ नहीं। हमारे पास आओ। अब थोड़ी हिम्मत करके आनंद आगे बढ़ा। क्या बेटा क्यूं आए हो? ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 6

इधर गांव में कांता और रामू किसी तरह अपनी गृहस्थी चला रहे थे। केशव पढ़ने में बहुत अच्छा तो था पर ठीक ठाक जरूर था। अपनी हर कक्षा में पास जरूर हो जाता था। धीरे धीरे कर के वो दसवी के बाद बारहवीं में पहुंच गया। परीक्षा हो गई थी। अब बस परिणाम का इंतजार था। आज केशव का बारहवीं का रिजल्ट घोषित हुआ था और वो पास हो गया था। कान्ता बेहद खुश थी। माधव घर की जिम्मेदारियों को निभाने में पढ़ ना सका था। राघव का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। पूरे घर की आशा अब बस केशव पर ही टिकी थी। खुद रामू बस पांचवी पास थे। आज जब बेटा बारहवीं पास कर गया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। रामदेव का सीना आज गर्व से चौड़ा हो गया था। वो केशव कागुड़ से मुह मिठा कराते हुए बोले, ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 7

अब केशव की पोस्टिंग गांव के पास वाले शहर में हो गई। वो बहुत खुश था अपने घर आकर। समय उसे घर परिवार और मां की खास जरूरत भी पड़ने वाली थी। क्योंकि सुशीला मां बनने वाली थी। केशव की मां बहुत खुश थीं कि बेटे का परिवार बढ़ने वाला है। कांता बहू का खूब ध्यान रखती। मां कान्ता भी बेहद खुश थी कि बेटा पास आ गया था। रोज सुबह केशव शहर जाताड्यूटी करता और रात में वापस घर आ जाता। जिस दिन छुट्टी होती उस दिन अपने और माधव के बच्चो के साथ समय बिताता। केशव पिताभी जीवन का आनंद जो युवा अवस्था में अभाव के कारण ना ले पाए थे अब लें रहे थे। समय पूरा होने पर सुशीला ने एक सुंदर और स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। बेटा हूबहू सुशीला की परछाईं था। वैसा ही रंग बिलकुल वैसा ही नाक नक्श। उसे देख कर कांता को थोड़ी सी निराशा हुई। वो उम्मीद लगाए थी कि केशव का बच्चा केशव के जैसा ही सुंदर होगा। पर कोई बात नही… बेटा तो था। गांव में कहते है घी का लड्डू टेढ़ा मेढ़ा भी अच्छा ही होता है। इस लिए पोते को पा कर कांता खुश थी। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 8

अनुष्ठान की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थी। सारे रिश्तेदारों नातेदारों को निमंत्रण दिया गया था। सभी की प्रतीक्षा रही थी। सभी की आवश्यकता के हिसाब से व्यवस्था की जा रही थी। केशव के घर रिश्तेदार और घर वाले आ गए। मां तो सबसे पहले आ गई थी सब संभालने। उन्होंने बच्चे को और अनुष्ठान की सारी तैयारी संभाल ली। आखिर बेटा कोई धार्मिक काम करे तो माता पिता को तो खुशी होती ही है। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 9

आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे सत्तू एक सामान्य सा लड़का संन्यासियों के साथ साथ चला जाता है बेशक, उसकी जिंदगी में परेशानियां थी। वो गरीबी का सामना कर रहा था। एक वक्त के खाने के बाद दूसरे वक्त का क्या होगा ये पता नहीं होता था । परन्तु पलायन उसका समाधान नहीं हो सकता था । वो अपने भाई रामू की तरह हालात का सामना कर सकता था । पर उसे संन्यासियों के साथ जाना ज्यादा ठीक लगा। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 10

अपनी किलकारियों से अरविंद जी के घर को गुंजायमान करता हुआ अनमोल समय के साथ बड़ा होने लगा । नन्हे नन्हे पांवों से जब वो चलना शुरू किया तो उसकी सुन्दर छवि सब को मोहित कर लेती । दादी का जी भी अब गांव में नहीं लगता था। वो यहां अनमोल की नटखट शरारतों का आनंद लेने आ गई थी।अनमोल को उठते गिरते देख कर अनायास ही उनके मुख से निकल जाता ' ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियां। पूरे घर का केंद्र बिंदु अनमोल हीं था । हनी और मनी तो मां से भी ज्यादा अनमोल की देखभाल करने की कोशिश करती । परी छोटी थी पर वो भी अपनी गुड़िय खिलौने आदि अपने भाई पर न्योछावर करने में जरा भी संकोच नहीं करती । ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 11

अनमोल को अपने पहले रिजल्ट से मिली तारीफ से इतनी प्रेरणा मिली की वो नन्हा सा बच्चा अपने मन निश्चय करता है कि मैं अगर मन लगा कर पढूंगा तो स्कूल के साथ साथ घर में भी सब तारीफ करेंगे । ये बात उसके दिल दिमाग में घर कर गई। अनमोल साल दर साल आगे की कक्षा में बढता गया । नए क्लास में आते ही वो जी - जान से जुट जाता । जब तक पूरी किताबें खत्म नहीं हो जाती उसे चैन नहीं पड़ता । खास कर गणित उसका मन पसन्द विषय था चाहे जितना भी कठिन सवाल हो जब तक वो साल्व न कर लेता उसे खाना, पीना,सोना कुछ नहीं भाता था । ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 12

मां पापा और परी के जाने के बाद अनमोल अपने कमरे में आया और फूट-फूट कर रोने लगा। पहली वो घर से बाहर निकल कर इतनी दूर आया था । कुछ देर रोने के पश्चात उसने खुद को संभाला और सोचा आखिर इतने सारे बच्चे हैं सब तो अपना अपना घर छोड़ कर हीं आए हैं। सब के साथ उनके घर वाले थोड़ी ना आए है, अगर मैं रोऊंगा तो घर पे भी सब दुखी होंगे। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 13

अनमोल की क्लास रेग्युलरली चलने लगी थी। वो रोज ही तनय के साथ कोचिंग आता जाता था। कुछ और से परिचय होने के बावजूद वो किसी से भी बात नहीं करता था। उसे अपना एक एक मिनट कीमती लगता था। बाकी बच्चे आपस में बात चीत करते और जिस भी दिन छुट्टी होती सब साथ ग्रुप बनाकर घूमने भी जाया करते। पर अनमोल खुद को इन सब चीजों से दूर हीं रखता था। उसका देख कर तनय जो पहले सब के कहने पर कभी कभी चला जाता था। अब वो भी खुद को इन सब चीजों से अलग कर लिया था। तनय और अनमोल दोनों ही मन लगाकर पढ़ाई कर रहे थे । ...और पढ़े

14

ये कैसी राह - 14

रिजल्ट के दिन की खुशी अरविंद जी का परिवार शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता था। अनमोल की मेहनत हुई थी तो अरविंद जी का कोटा भेजने का फैसला भी सही साबित हुआ था। उस रात सब ने बहुत ही खुशी से एक साथ मिल कर खाना खाया, और फिर सब बहुत रात तक बातें करते रहे। इन बातों में भविष्य की प्लानिंग ज्यादा थी । ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 15

उस दिन दोनों दोस्त (जवाहर और अरविंद)आपस में मिल कर बहुत खुश थे पुरानी याद ताजा हो गई । जवाहर जी भी अपने घर जा कर पत्नी रत्ना से सारी बात बताई, आज मै अरविंद के घर गया था। जवाहर जी ने रात को सोते समय कहा, मै तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं। जब से आया हूं अरविंद के घर से तभी से सोच रहा हूं पर तुम्हे फुरसत हीं नहीं है सुनने की। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 16

जवाहर जी और रत्ना अपने बेटों बाल और गोविन्द से बात कर निश्चिंत हो गए की उन्हें कोई ऐतराज़ है । ये फैसला किया दोनों ने कि अगले सन्डे अरविंद और सावित्री को अपने घर बुलाया जाएगा ,फिर उनसे रिश्ते की बात की जाएगी। इतनी देर सब्र रखना मुश्किल था पर ऐसी बाते बिना आमने सामने बैठे नहीं हो सकती । फोन पर तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती थी। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 17

अगले अवकाश में दोनो परिवार इकट्ठा हुए। फिर कुल पुरोहित को बुला कर शुभ मुहूर्त निकलवाया गया। तीन महीने की शादी की तारीख निकाली गई थी। बेहद शुभ मुहूर्त था। मां भी गांव से आ गई थी। उनके निर्देश अनुसार ही सब कुछ हो रहा था। मां सारी रीति रिवाजों और परम्पराओं के साथ दोनों पोतियों का ब्याह करना चाहती थी। जवाहर जी और रत्ना बिल्कुल भी आर्थिक बोझ नहीं डालना चाहते थे अरविंद और सावित्री के उपर। वे सारी व्यवस्था खुद ही करना चाहते थे, ये कह कर की, ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 18

अरविंद जी के घर वापस आने के बाद अनमोल अपनी पढ़ाई में जुट गया। प्रथम वर्ष में अनमोल अच्छे से उत्तीर्ण हो चुका था। अब उसे दूसरे वर्ष में भी अच्छे नंबर लाने थे। क्लास शुरू हो गई थी। सब कुछ पिछले वर्ष की भांति ठीक चल रहा था। इस बार उसके रूम के पास ही एक ऐसा लड़के को रूम अलॉट हुए जो अपने में ही गुम रहता, किसी से भी बात नहीं करता। उस लड़के का नाम योगेश था। आते - जाते निगाहें मिल जाती तो भी वो कतरा कर निकल जाता। ...और पढ़े

19

ये कैसी राह - 19

आपने अभी तक पढ़ा की अनमोल हॉस्टल छोड़ कर अपने ही बैच के योगेश के साथ शिफ्ट हो गया।जब खत्म होने के बाद भी अनमोल नहीं आया तो अरविंद जी को थोड़ी सी फिक्र होने लगी की आखिर अनमोल आ क्यों नहीं रहा है ? अब वो बिल्कुल भी इंतजार के मूड में नहीं थे । उन्होंने अनमोल को फोन किया और कहा की तुरंत घर आओ दादी तुम्हारे लिए परेशान है वरना मै वहां खुद ही आ जाता हूं। फिर तुम्हे लेकर आता हूं। अनमोल अब विवश था । उसे घर जाना ही होगा। पापा से अनमोल ने कहा, आप मत आइए पापा मै आ जाता हूं। ...और पढ़े

20

ये कैसी राह - 20

अनमोल का प्लेसमेंट हो गया था। वो बंगलूरू चला गया था। घर में सभी को उसकी नौकरी की खुशी थी, बिना घर आए, बिना सब से मिले चला जाना परिवार के सभी सदस्यों को बहुत ज्यादा अखर रहा था। अरविंद जी किसी से कुछ नहीं कहते पर अनमोल के अंदर जो परिवर्तन आ रहा था वो उन्हे अच्छा नहीं लग रहा था। ये परिवर्तन एक अनजाने डर को जन्म दे रहा था। पर बार बार वो अपने इस अंदेशे को मन से झटकने का प्रयास करते। अरविंद जी खुद को दिलासा देते की नहीं ये सिर्फ और सिर्फ उनके मन का वहम है। ...और पढ़े

21

ये कैसी राह - 21

आपने अब तक पढ़ा कि अरविंद जी अनमोल का फोन स्विच -ऑफ होने पर घबरा कर बैंगलुरू पहुंच जाते अनमोल उन्हें लेकर पास के ही एक अच्छे से होटल में लेकर जाता है । वहां रूम लेकर पिता - पुत्र बैठते है पर अनमोल अपने पिता के सवालों से बचना चाहता है। पहले वो बोलता है, पापा…!आप फ्रेश हो लो तो बात करते है। जैसे ही वो फ्रेश होकर बाथरूम से आते है और बात शुरू करना चाहते है। उन्हें ये कह कर रोक देता है कि, पापा आप भूखे होंगे मै आपके लिए कुछ खाने के लिए लेकर आता हूं। ...और पढ़े

22

ये कैसी राह - 22

अनमोल के ड्रॉइंग रूम आते ही जवाहर जी उठ कर अनमोल को गले लगाते है और पूछते है हो बेटा ? संक्षिप्त सा जवाब ठीक हूं देकर जवाहर जी और रत्ना जी के पांव छूकर अनमोल वहीं बैठ गया। रत्ना ने भी दुलार से कहा, अरविंद भाई साहब ..! जब अनमोल पैदा हुआ तभी मैंने कहा था ना आपसे ये बच्चा आपके पूरे परिवार का नाम रौशन करेगा। देखिए मेरी कही हुई बात आज सच साबित हुई। जिस आईं आई टी में पढ़ने के लिए लोग तरसते हैं, अपना अनमोल पहली बार में ही सेलेक्ट हो गया और इतने अच्छे पैकेज पर नौकरी कर रहा है। जो कई लोगों के लिए सपना ही रह जाता है। अभी अपना अनमोल बहुत आगे जाएगा। ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 23

रंजन सारे काम छोड़ तुरंत ही अनमोल के ऑफिस में गया और उसके केबिन में गया तो वहां अनमोल जगह कोई और बैठा था। जब अनमोल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि अनमोल जब से घर गया वापस ऑफिस आया ही नहीं । इसलिए कम्पनी ने उनकी जगह मुझे अप्वाइंट किया है। वहां से वापस आकर रंजन ने अरविंद जी को कॉल लगाई। अरविंद जीघबराए ना इसलिए बहुत ही आराम से बताना शुरू किया, ...और पढ़े

24

ये कैसी राह - 24

भाग 24 अनमोल पापा को रोता सुन झल्ला उठा और बोला, "ओह ! पापा इसी सब वजह से मै नहीं करता हूं। जब देखो तब आपका रोना धोना शुरू हो जाता है। सच पूछो तो इसी वजह से मै फोन स्विच ऑफ रखता हूं। अब क्या प्रॉब्लम है मै ठीक तो हूं ना। अगर मुझे कुछ होगा तो सबसे पहले आपको ही खबर किया जाएगा।" अरविंद जी का दिमाग सुन्न हो गया ये सब सुनकर । उनका संस्कारी बेटा ये कैसी भाषा बोल रहा है । उन्हे अपने कानो पर यकीन नहीं हो रहा था कि जो बोल रहा ...और पढ़े

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ये कैसी राह - 25 - अंतिम भाग

भाग 25 अरविंद जी को अनमोल के पिता के रूप में बहुत सम्मान मिला आश्रम में सभी से। अनमोल जब मां के बीमारी के बारे में बताया और खुद के जाने की इच्छा व्यक्त की तो सभी को अच्छा नहीं लगा। अनमोल तो चाहता था पापा और परी यही आश्रम में ही रुके परसुबह ही ट्रेन थी और सामान रंजन के यहां था। इसलिए यहां नहीं रुक सकते थे। रंजन ने रिक्वेस्ट किया को अनमोल भी उसके घर ही चले और वही से सुबह सभी के साथ घर के लिए चला जाए। परअपनी तैयारी और सामान का बहाना बना ...और पढ़े

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