दस्विदानिया (कहानी पंकज सुबीर) (1) पत्र के आरंभ में कोई भी औपचारिकता नहीं कर रहा हूँ । पत्र जिस मनोस्थिति में लिख रहा हूँ उसमें औपचारिकता की कोई गुंजाइश भी नहीं है । पता नहीं ये पत्र तुमको मिलेगा तो तुम इसको सहज भाव से ले पाओगी भी या नहीं । कुछ नहीं जानता, बस ये जानता हूँ कि तुमको पत्र लिखने के लिये बहुत दिनों से अपने अंदर का अपराध बोध दबाव डाल रहा था । काफी दिनों तक तो टालता रहा, लेकिन जब टालने से बाहर बात हो गई तो अंत में लिखना ही पड़ा । लगभग 20
Full Novel
दस्विदानिया - 1
दस्विदानिया (कहानी पंकज सुबीर) (1) पत्र के आरंभ में कोई भी औपचारिकता नहीं कर रहा हूँ । पत्र जिस में लिख रहा हूँ उसमें औपचारिकता की कोई गुंजाइश भी नहीं है । पता नहीं ये पत्र तुमको मिलेगा तो तुम इसको सहज भाव से ले पाओगी भी या नहीं । कुछ नहीं जानता, बस ये जानता हूँ कि तुमको पत्र लिखने के लिये बहुत दिनों से अपने अंदर का अपराध बोध दबाव डाल रहा था । काफी दिनों तक तो टालता रहा, लेकिन जब टालने से बाहर बात हो गई तो अंत में लिखना ही पड़ा । लगभग 20 ...और पढ़े
दस्विदानिया - 2
दस्विदानिया (कहानी पंकज सुबीर) (2) मैं बॉटनी में पीजी करना चाहता था। बॉटनी मेरा पसंदीदा विषय थी और बॉटनी वाली शैफाली मैडम भी । तुम्हें तो याद ही होगा कि फायनल में सबसे अच्छा हर्बेरियम कलेक्शन मैंने ही बनाया था। जाने कहाँ कहाँ से, जंगलों की, खेतों की खाक छान छान कर पत्तियाँ और फूल जमा किये थे । उनको कापियों में दबा दबा कर, सुखा कर, फिर ड्राइंग शीट पर चिपका कर हर्बेरियम कलेक्शन बनाया था । शैफाली मैडम को प्रभावित करने के लिये। कामयाब भी हुआ था। पूरी क्लास को दिखाया था उन्होंने मेरा हर्बेरियम कलेक्शन। ये ...और पढ़े
दस्विदानिया - 3 - अंतिम भाग
दस्विदानिया (कहानी पंकज सुबीर) (3) इस बीच एक और घटनाक्रम हुआ था । वो ये कि एक बार राजेश मैं अपने फाइनल के साथी लड़कों के साथ संडे को क्रिकेट मैच खेलने गये थे । उस दिन कुछ ऐसा हुआ कि मेरे मन में गाँठ पड़ गई। उस दिन लड़के राजेश को बार बार तुम्हारा नाम ले ले कर छेड़ रहे थे । हालाँकि राजेश उस सब में सहमति नहीं जता रहा था, लेकिन वो उस सबका कोई प्रतिरोध भी नहीं कर रहा था । मौन का नाम सहमति ही होता है । एक दो बार राजेश ने शायद ...और पढ़े