बेतुकी हाँक महुए से कुछ गरज है न हाजत है ताड़ की साकी को झोंक दूँगा मैं भट्टी में भाड़ की! हात्‍तेरे पीनेवाले की दुम में पुरानी भट्टी का जंग लगा हुआ भभका! ओ गीदी, हात्‍तेरे शराबखोर की दुम में मियाँ आलू बुखारा अत्‍तार की करनबीक! ओ गीदी, हात्‍तेरे मतवाले की मगड़ी के दोनों सिरों में कठपुतली नाच-ताक धनाधन ताक धनाधन। हात्‍तेरे की - और लेगा? अबे, तुम लोगों के हम वैसे ही दुश्‍मन हैं जैसे मोर साँप का, कुत्‍ता बिल्‍ली का, गेंडा हाथी का। गैंडे ने हाथी को देखा - और जंजीर तुड़ाके दौड़ा और सींग मारा और हाथी का पेट फाड़ डाला, - हात्‍तेरे की - और लेगा? मियाँ हवन्ना साहब कजली बन के महाराजा बने चले जाते हैं, मगर दुश्‍मन से नहीं चलती।

Full Novel

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हुश्शू - 1

बेतुकी हाँक महुए से कुछ गरज है न हाजत है ताड़ की साकी को झोंक दूँगा मैं भट्टी में भाड़ की! हात्‍तेरे की दुम में पुरानी भट्टी का जंग लगा हुआ भभका! ओ गीदी, हात्‍तेरे शराबखोर की दुम में मियाँ आलू बुखारा अत्‍तार की करनबीक! ओ गीदी, हात्‍तेरे मतवाले की मगड़ी के दोनों सिरों में कठपुतली नाच-ताक धनाधन ताक धनाधन। हात्‍तेरे की - और लेगा? अबे, तुम लोगों के हम वैसे ही दुश्‍मन हैं जैसे मोर साँप का, कुत्‍ता बिल्‍ली का, गेंडा हाथी का। गैंडे ने हाथी को देखा - और जंजीर तुड़ाके दौड़ा और सींग मारा और हाथी का पेट फाड़ डाला, - हात्‍तेरे की - और लेगा? मियाँ हवन्ना साहब कजली बन के महाराजा बने चले जाते हैं, मगर दुश्‍मन से नहीं चलती। ...और पढ़े

2

हुश्शू - 2

तोड़-फोड़ - खटपट नाविल के पढ़नेवाले बड़े परेशान होंगे कि आखिर इस बेतुकी हाँक के क्‍या मानी! मगर इसमें परेशानी खराबी की क्‍या बात है? मजमून का चेहरा तो मुलाहजा फरमा लीजिए - हम तो खुद इसके कायल हैं कि 'बेतुकी हाँक' है। अब इसका खुलासा हमसे सुनिए - लाला जोती प्रसाद नामी एक बुजुर्गवार बड़े शराबखोर, बदमस्‍त और मुतफन्‍नी थे। उनके भाई-बंदों दोस्‍तों, - बड़ों-छोटों ने समझाया कि भाई - ऐब भी करने को हुनर चाहिए! ...और पढ़े

3

हुश्शू - 3

कलवारीखाना और काना पहला सीन इधर बमचख, उधर जूती, इधर पैजार, उधर दंगा! बही कलवारखाने में है कैसी उलटी यह गंगा!! बोतलवाले और चमक्‍को को कुठरिया में पड़े रहने दीजिए, वह जानें, उनका काम। अब मियाँ हुश्‍शू साहब का हाल सुनिए कि बोतलवाले की बोतलें तोड़, झौआ औंधा करके जो सीधी भरी तो एक कलवारीखाने में पहुँचे। कलवार साहब बड़े तोंदल डबल आदमी - लाला दरगाही लाल - दुकान के राजा बने हुए बैठे थे। मियाँ हुश्‍शू भी धँस ही तो पड़े। भलेमानस अमीर देख कर उसने मोंढा दिया, कपड़े भी अच्‍छे पहले थे। ...और पढ़े

4

हुश्शू - 4

हुश्‍शू का वार हवेली में टिके पाजी पजोड़े, बिकी ईंटें, हुए कड़ियों के कोड़े! लाला जोती परशाद को बीच का रास्‍ता पकड़ने दिली नफरत थी। या कूंड़ी के इस पार या उस पार! अगर पीने पर आए तो दिन-रात गैन, हर घड़ी चूर, हर दम धुत्‍त, सिवा शराब के और कोई शगल ही नहीं। खाना पीना, ओढ़ना-बिछौना, सब शराब! और अगर छोड़ दी तो एक कतरा भी हराम। अगर डाक्‍टर नुस्‍खे में भी तजवीजें तो भी न पिएँ। इन दो सूरतों से किसी हाल में भी खाली नहीं रहते थे। या तो उसके नाम से इस कदर नफरत कि जहर से बदतर समझते थे, या इस कदर इसके गुलाम कि बे-पिए जरा चैन नहीं। ...और पढ़े

5

हुश्शू - 5

गर्काबा करेंगे प्‍यारे से प्‍यार अपने, किसी के बाबा का डर नहीं है। पिएँगे मय मस्जिदों में जा कर किसी की का घर नहीं है! एक खुशनुमा बाग में ठीक दोपहर के वक्‍त एक रईस बैठे हुए बड़े शौक और जौक के साथ शराब का शगल कर रहे थे। शीशे के कई गिरास करीने के साथ चुने हुए थे, और बोतलें तालाब में पैर रही थीं। और थोड़ी दूर पर कई बावर्ची हर तरह के कबाब पका रहे थे और हजूर रईस ठाठ के साथ बैठे हुए मजे-मजे से खा रहे थे। ...और पढ़े

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हुश्शू - 6

वहशत! वहशत! वहशत! एक रईस एक जोड़ी गाड़ी पर सवार हो कर सदर बाजार गए, और एक मालदार बजाज की पर जा कर दो उम्‍दा सूट बनवाए - एक रेशमी और दूसरा सूती। इसके बाद टहलते-टहलते-बजाज की आँख जरा चूकी ही थी कि आपने एक चमड़े का बेग, जिसमें बोतल और गिलास सफर के लिए रक्‍खा जाता है, झप से गले में पहन लिया और दुकान से बाहर निकल आए। थोड़ी देर में एक सार्जेंट आया। अंग्रेजी में लाला से कहा - हम अपना बेग यहाँ भूल गए हैं। उसमें एक बोतल है और गिलास। बजाज के आदमी ने कहा - जी हाँ, रक्‍खा है। लाला ने टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहा - आप बैठें, मेरा आदमी लिए आता है। ...और पढ़े

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हुश्शू - 7

मुल्‍ला पागल मौलवी साहब गाड़ी पर सवार जोती परशाद को अपने जान बेवकूफ बनाते चले जाते थे और सोचते जाते कि लाला को यह खबर ही नही कि घड़ी-दो में मुरलिया बाजेगी पागलखाने की सैर करते होंगे। दिल में रंज था, मगर करते भी क्‍या, अपने सर पड़ी आप ही झेलनी पड़ती है। पागलखाने की आलीशान कोठी के पास पहुँच कर मौलवी साहब ने गाड़ी रुकवाई और लाला जोती परशाद के बनाने और दिल बहलाने के लिए, कि पागलखाना देख के भड़कें नहीं, यों मजे-मजे की बातें करने लगे - ...और पढ़े

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हुश्शू - 8

धर लिए गए यों तो लखनऊ में मेले बहुत से होते हैं - ऐशबाग के मेले - परिस्‍तान की परियों गुंचा खिला हुआ, बावली का मेला - गठा हुआ, अलीगंज का मेला भी, खैर, ऐसा बुरा नहीं। गोल दरवाजे का मेला, होली के दिन सब सफेदपोश - सुनहरा मेला। साहजी के बँगले से चौक तक और कश्‍मीरी मोहल्‍ला, यहियागंज नख्‍खास, यह-वह, हर मोहल्‍ले में छोटे-छोटे मेले होते हैं। दिवाली की रात, शबरात - तमास शहर जगमगाता है। मजहबी मेलों में रामलीला - ड्रैमेटिक मेला, मोहर्रम - हर जगह रोशनी, हुसैनाबाद मुबारक, नजफ, अशरफ मीरबाकर का इमामबाड़ा, हैदरी का इमामबाड़ा। ...और पढ़े

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हुश्शू - 9

लाहौर ! लाहौर ! लाहौर ! शैतान दूर लाला जोती परशाद साहब 'हुश्‍शू' को अब हम 'हुश्‍शू' न कहेंगे। क्‍योंकि अब अच्‍छे-भले इन्सानों की तरह रहते हैं। दो महीने के लिए ये बुजुर्गवार शहर से बाहर अपने गाँव के एक बाग में जा कर रहे और वहाँ से अपने दोस्‍तों को खत लिखे। एक खत लिख कर उसकी नकल करके रवाना की, जो हू-बहू नीचे दी जाती है : हजरत सलामत, गो मैंने अक्‍सर दोस्‍तों से माफी माँग ली है, मगर एक बार फिर माफी का खास्‍तगार हूँ। शाहाँ च अजब गर बिनवाजंदा गदा रा! (बादशाहों की शान से यह दूर नहीं है कि वह फकीरों को नेवाज दें!) ...और पढ़े

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