पॉलिटेक्निक वाले फुट ओवर ब्रिज पर

(22)
  • 15k
  • 24
  • 5.3k

फुटओवर ब्रिज पर इधर-उधर टहलते हुए रुहाना को आधा घंटा से ज़्यादा हो चुका था। उसे आते-जाते लोगों में घर जाने की जल्दी साफ दिख रही थी। सात बज गए थे। अंधेरा गहरा हो चुका था। दिन भर छिटपुट इधर-उधर फैले बादलों ने इस समय इकट्ठा होकर आसमान को पूरा ही ढंक लिया था। हवा कुछ और तेज़ हो चुकी थी। सवेरे ही रुहाना ने ई-पेपर में पढ़ा था कि आंधी के साथ तेज़ बारिश हो सकती है, ओले भी पड़ सकते हैं। इससे ठंड एक बार फिर लौट सकती है।

Full Novel

1

पॉलिटेक्निक वाले फुट ओवर ब्रिज पर - 1

फुटओवर ब्रिज पर इधर-उधर टहलते हुए रुहाना को आधा घंटा से ज़्यादा हो चुका था। उसे आते-जाते लोगों में जाने की जल्दी साफ दिख रही थी। सात बज गए थे। अंधेरा गहरा हो चुका था। दिन भर छिटपुट इधर-उधर फैले बादलों ने इस समय इकट्ठा होकर आसमान को पूरा ही ढंक लिया था। हवा कुछ और तेज़ हो चुकी थी। सवेरे ही रुहाना ने ई-पेपर में पढ़ा था कि आंधी के साथ तेज़ बारिश हो सकती है, ओले भी पड़ सकते हैं। इससे ठंड एक बार फिर लौट सकती है। ...और पढ़े

2

पॉलिटेक्निक वाले फुट ओवर ब्रिज पर - 2

रुहाना को उसकी हालत पर बड़ी दया आ रही थी। खासतौर से उस दुधमुंहे डेढ़ साल के बच्चे पर, उस ठंड में बचने लायक कपड़े तक नहीं पहने था। उसे उसी तरफ देखते पाकर श्वेतांश समझ गया कि वह क्या देख रही है। उसने उसे टोकते हुए कहा, ‘क्या देख रही हो?’ श्वेतांश ने अपना चेहरा तभी दूसरी तरफ घुमा लिया था जब उन सब ने खाना शुरू किया था। उसके प्रश्न पर रुहाना ने भी उसी की तरफ मूंह कर लिया और कहा, ‘इन सब को देख रही हूं। इस ठंड में बेचारों के पास कपड़े तक नहीं हैं। ठंड से ठिठुर रहे हैं, खाना भी पता नहीं क्या खा रहे हैं? जो बच्चा दूध पी रहा है, उस बेचारे को देखो वह भी आधा नंगा है। नन्हीं सी जान को ठंड लग गई तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी।’ ...और पढ़े

3

पॉलिटेक्निक वाले फुट ओवर ब्रिज पर - 3 - अंतिम भाग

श्वेतांश की इस बात पर रुहाना हल्के से हंस दी, फिर बोली, ‘सही कह रहे हो। पहले जब तुमको बस स्टॉप पर लोगों को लिफ्ट देते देखती तो मैं तुम्हें कोई मवाली लफंगा समझती। सोचती अजीब मूर्ख आदमी है। आजकल लोग लिफ्ट मांगने पर भी नहीं देते और यह मूर्ख रोज निश्चित समय पर इधर से निकलता है, सबको लिफ्ट ऑफर करता है, लोगों को बैठा कर ले जाता है। लेकिन जब बहुत दिनों तक रोज ही देखने लगी तो सोचा समाज सेवा का नया-नया भूत सवार है, कुछ दिन में उतर जाएगा। ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प