मंटो अपने ज़माने के बदनाम लेखकों में से एक हैं जिन्हें सरकार और समाज दोनों ही पसंद नहीं करते थे| उसकी वजह थी उनकी सीधी सटीक बातें जो कहानियां कम और सवाल ज्यादा उठातीं थीं| मंटो ने सरकार और समाज की हर एक बात पर सवाल उठाएं है जो एक आम आदमी को जीने के लिए मुश्क्त और खिलाफत करने पर मजबूर करते हैं|

Full Novel

1

औरत ज़ात

महाराजा ग से रेस कोर्स पर अशोक की मुलाक़ात हुई। इस के बाद दोनों बेतकल्लुफ़ दोस्त बन गए। महाराजा को रेस के घोड़े पालने का शौक़ ही नहीं ख़बत था। उस के अस्तबल में अच्छी से अच्छी नसल का घोड़ा मौजूदत था। और महल में जिस के गुन्बद रेस कोर्स से साफ़ दिखाई देते थे। तरह तरह के अजाइब मौजूद थे। ...और पढ़े

2

औलाद

जब ज़ुबेदा की शादी हुई तो उस की उम्र पच्चीस बरस की थी। इस के माँ बाप तो ये थे कि सत्तरह बरस के होते ही उस का ब्याह हो जाये मगर कोई मुनासिब-ओ-मौज़ूं रिश्ता मिलता ही नहीं था। अगर किसी जगह बात तै होने पाती तो कोई ऐसी मुश्किल पैदा हो जाती कि रिश्ता अमली सूरत इख़्तियार न कर सकता। ...और पढ़े

3

क़ादिरा क़साई

ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उस की माँ ज़ुहरा जान उस का नाम इसी मुनासबत से ईदन रख्खा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उस का मुजरा सुनने के लिए आते थे। ...और पढ़े

4

काली सलवार

दिल्ली आने से पहले वो अंबाला छावनी में थी जहां कई गोरे इस के ग्राहक थे। इन गोरों से के बाइस वो अंग्रेज़ी के दस पंद्रह जुमले सीख गई थी, उन को वो आम गुफ़्तगु में इस्तिमाल नहीं करती थी लेकिन जब वो दिल्ली में आई और उस का कारोबार न चला तो एक रोज़ उस ने अपनी पड़ोसन तमंचा जान से कहा। “दिस लीफ़...... वेरी बैड।” यानी ये ज़िंदगी बहुत बुरी है जबकि खाने ही को नहीं मिलता। ...और पढ़े

5

क़ीमे की बजाय बोटियाँ

डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लासंज, अदब शनास और वज़ादार आदमी था। ...और पढ़े

6

कुत्ते की दुआ

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के मिज़ाज से हम वाक़िफ़ थे, इस लिए हम ख़ामोशी से सुनते रहे। दरमयान में उन को कहीं भी न टोका। ...और पढ़े

7

क़ुदरत का उसूल

क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ायब होगई हैं ...और पढ़े

8

ख़त और उसका जवाब

तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ और मैं समझती हूँ कि इस कोशिश में कामयाब हूँ। मैं और अच्छे अदीबों के साथ आप के अफ़साने भी बड़ी दिलचस्पी से पढ़ती हूँ। आप से मुझे हर बार नए मौज़ू की उमीद रही और आप ने दर-हक़ीक़त हर बार नया मौज़ू पेश किया। लेकिन जो मौज़ू मेरे ज़ेहन में है वो कोई अफ़्साना निगार पेश न कर सका। यहां तक कि सआदत हसन मंटो भी जो नफ़्सियात और जिन्सियात का इमाम तस्लीम किया जाता है। ...और पढ़े

9

ख़ालिद मियां

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए तो इस ने इत्मिनान का सांस लिया। ...और पढ़े

10

खुद-कुशी का इक़दाम

इक़बाल के ख़िलाफ़ ये इल्ज़ाम था कि उस ने अपनी जान को अपने हाथों हलाक करने की कोशिश की, वो इस में नाकाम रहा। जब वो अदालत में पहली मर्तबा पेश किया गया तो उस का चेहरा हल्दी की तरह ज़र्द था। ऐसा मालूम होता था कि मौत से मुडभेड़ होते वक़्त उस की रगों में तमाम ख़ून ख़ुश्क हो कर रह गया है जिस की वजह से उस की तमाम ताक़त सल्ब होगई है। ...और पढ़े

11

ख़ुदकुशी

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ही रक़म बाक़ी रह गई। ...और पढ़े

12

ख़ुशबू-दार तेल

“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “ये तुम्हारी बद-एहतियातियों की वजह से होता है वर्ना आदमी को कम अज़ कम साल भर में दस महीने तो तंदरुस्त रहना चाहिए ” ...और पढ़े

13

खोल दो

सुबह दस बजे........ कैंप की ठंडी ज़मीन पर जब सिराजुद्दीन ने आँखें खोलीं और अपने चारों तरफ़ मर्दों, औरतों बच्चों का एक मुतलातिम समुंद्र देखा तो उस की सोचने समझने की क़ुव्वतें और भी ज़ईफ़ हो गईं। वो देर तक गदले आसमान को टिकटिकी बांधे देखता रहा। यूं तो कैंप में हर तरफ़ शोर बरपा था। लेकिन बूढ़े सिराजुद्दीन के कान जैसे बंद थे। उसे कुछ सुनाई नहीं देता था। कोई उसे देखता तो ये ख़याल करता कि वो किसी गहरी फ़िक्र में ग़र्क़ है मगर ऐसा नहीं था। उस के होश-ओ-हवास शॅल थे। उस का सारा वजूद ख़ला में मुअल्लक़ था। ...और पढ़े

14

गोली

शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली और कहने लगी। “अज़ीज़ साहब की बीवी और उन की लड़कीयाँ आई हैं”। ...और पढ़े

15

चोर

मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराब-नोशी की बदौलत था। रात को जब मैं के लिए चारपाई पर लेटता तो मेरा हर क़र्ज़ ख्वाह मेरे सिरहाने मौजूद होता...... कहते हैं कि शराबी का ज़मीर मुर्दा होजाता है, लेकिन मैं आप को यक़ीन दिलाता हूँ कि मेरे साथ मेरे ज़मीर का मुआमला कुछ और ही था। वो हर रोज़ मुझे सरज़निश करता और मैं ख़फ़ीफ़ होके रह जाता। ...और पढ़े

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