कथा 01- मिथ्या की सच्चाई आज कल के परिवेश में ये शब्द ही मिथ्या स्वरुप लगता है। सच्चाई नामक शब्द उसी प्रकार विलुप्त हो रहा है जैसे कि डायनासोर । हाँ और ये तो वैज्ञानिक रुप से प्रमाणित है कि हम जिस वस्तु का उपयोग करना कम कर देते है या उसको लम्बे समय तक उपयोग में न लाने पर वे विलुप्त हो जाती है। वैसे भी जो चीज जीवन में कठिनाई का सबब हो , उसको उपयोग ही कौन करता हैं। आज के समय में हम हर चीज सरलता और सुगमता से प्राप्त करने की घनिष्ठ इच्छा रखते है । हम
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अंशकथा
कथा 01- मिथ्या की सच्चाई आज कल के परिवेश में ये शब्द ही मिथ्या स्वरुप लगता है। सच्चाई नामक उसी प्रकार विलुप्त हो रहा है जैसे कि डायनासोर । हाँ और ये तो वैज्ञानिक रुप से प्रमाणित है कि हम जिस वस्तु का उपयोग करना कम कर देते है या उसको लम्बे समय तक उपयोग में न लाने पर वे विलुप्त हो जाती है। वैसे भी जो चीज जीवन में कठिनाई का सबब हो , उसको उपयोग ही कौन करता हैं। आज के समय में हम हर चीज सरलता और सुगमता से प्राप्त करने की घनिष्ठ इच्छा रखते है । हम ...और पढ़े
अंशकथा - 2
कथा 01- पुराना बरगद का पेड़अरे सुनो ! सुनो तो !आखिर मैं भी इसी समाज का सदस्य हूँ । सबने मुझे यूँ अकेला क्यों छोड़ दिया । क्या मैंने किसी का कुछ बिगाड़ा था या फिर किसी को कुछ कह दिया ? जिससे सब मुझझे नाराज़ हैं और कोई मुझझे नाता नहीं रखना चाहता है। मैं बिल्कुल अकेला सा पड़ गया हूँ । पर मुझे अब भी याद आता है , वो समय जब गाँव के सभी बच्चों को मैं उनके चेहरे के साथ-2 उनके पुकारु नाम से जानता था । जैसे वो कल्लू , वो रामू , वो ...और पढ़े