प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 5

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प्रेमी आत्मा मारीचिका - 05 घर पहुँच कर भी उसका गुस्सा कम नहीं हुआ, उसकी मूँह बोली माँ उसे देख कर बहुत प्यार से बोली “आ गया बेटा, कहाँ था अब तक”। “कहीं नहीं बस अपना हक मांगने गया था” सुभ्रत गुस्से में तमतमाता हुआ बोला। “हक कैसा हक, माना की तु नागोनी होरा की मिटटी से पैदा नहीं हुआ पर बचपन से लेकर आज तक यहाँ रहते हुए तूने यहाँ के सारे रीत -रिवाज तो देखे ही हैं, तूं बहुत अच्छे से जानता है की सरदार के खिलाफ जाना मतलब मौत के मुंह में हाँथ डालने के बराबर है। (ये