प्रेम गली अति साँकरी - 146

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146-=== =============== सच कहा जाए तो सबसे प्यारी सपनों की नगरी और देखा जाए तो स्वप्न ही स्वप्न!इन दिनों जीवन को स्वप्न के अलावा कुछ भी नहीं समझ पा रही थी | मैं ही नहीं, कोई और भी होता वह भी इस उलझन से बाहर नहीं निकल पाता क्योंकि जीवन भी तो स्वप्न ही है बेशक हम किसी भी खुमार में उसे बिता दें | कल भाई और पापा से दो अलग-अलग प्रकार की बातें जिनका कोई भी छोर कहीं से बांधा जा सकना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था | फिर भी मनुष्य अपने जीवन में होने वाली बातों को