अभय अपनी पत्नी केतकी को अपलक निहार रहा है , केतकी पहले तो नजरे चुराती हुई लज्जाती है , फिर तो' केतकी की भी आंखे ठहर सी जाती है वह भूल जाती है... घर वाले उन दोनों को देख रहे हैं । अभय की मा ने दोनों को कुछ देर तो देखा.. फिर मुस्कुराकराती हुई बोली ..अभय ! पहले तू भीतर तो आजा ..फिर' केतकी को देखकर धीरे से बड़बड़ाकर कहती है घणी ही रात पड़ी है.. एक दूसरा नि अच्छासुं देख लियो ..केतकी लजाकर हल्की सी मुस्कुरा देती है । अभय को भी अपनी गलती का एहसास होता है