कुछ देर बाद अपने अपने हाथों में कोफ़ी के प्याले लिए दोनों चुपचाप खड़े थे. लाल चुनर ओढ़े धरती जैसे दुल्हन बनी थी. पश्चिम में अस्त होता सूरज अपने सिंदूरी हाथों से धरती को जैसे आलिंगन में बाँधने को उत्सुक था. कोफ़ी की चुस्कियां लेते हुए मेडम अवनी पर फैली बहारों को जी भर के अपनी आँखों में बसा रही थी. पर राहुल कहीं और खोया हुआ था. गुमसुम सा और शुन्य मनस्क उसकी आँखे मेडम पर ही टिकी थी. वदन पर मुग्धता धारण किये मेडम राहुल की और मुड़ी. उसने अपनी नशीली निगाहों को राहुल की निगाहों में मिला