तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 15 - पहली नौकरी

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दिल्लीपढ़ाई पूरी हो चुकी थी मेरी। दिल्ली का चुनाव मैंने किया था क्योंकि मेरी मित्र थी वहां। ढेर सारे अरमान एवम् थोड़े से सामान के साथ दिल्ली पहुंची मैं। संयोगिता को पहले ही बता दिया था। स्टेशन आने वाली थी वो।दिल्ली स्टेशन - देख कर लगा सालों पहले यहां मेरी तरह ही वर्षा वशिष्ठ आई होंगी ' मुझे चांद चाहिए ' वाली। स्टेशन पर संयोगिता के साथ दीपक एवं अन्य कोई परिचित थे। मैं ऑटो से जाना चाहती थी कि क्योंकि दो सामान थे मेरे पास और एक छोटा सा पीठ पर टंगा बैग। दो बाइक लेकर आए थे वो। तो