औरतें रोती नहीं - 13

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औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 13 अधूरे ख्वाबों की सिसकियां उज्ज्वला की नजर से: मई 2006 इस तरह जिंदगी ने ली करवट। वो भी सिर्फ चंद महीनों में। कल रात मन्नू ने मुझसे कहा था, ‘‘तुम्हारे अंदर इतनी मजबूत औरत बसती है, मुझे अंदाज नहीं था। तुमने किस तरह हम सबको संभाल लिया!’’ मैं चुप रही। मन्नू बहुत बेचैन है, साफ नजर आ रहा है। कल रात ही मैंने उससे सख्ती से कहा था कि तुम पद्मजा की मां के साथ सोओगी। मन्नू ना-नुकुर करने लगी। मैंने डांट दिया, ‘‘तुम्हें दिख नहीं रहा, वो औरत बीमार ची रही है?