औरतें रोती नहीं - 3

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औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 3 करवट बदलने से टूट जाते हैं सपने मन्नू की नजर से: 1989 ‘‘मन्नू, मैं बहुत परेशान हूं। मैं शायद अब आ नहीं पाऊंगा...’’ मन्नू हाथ में स्टील की कटोरी में चना-गुड़ लिए खड़ी थी, झन्न से गिर गई कटोरी। चेहरा फक। आंख में टपाटप आंसू भर आए। ऐसा क्यों कह रहे हैं श्याम? उसके पास नहीं आएंगे? उसका क्या होगा? श्याम बैठे थे, आंखें बंद किए। मन्नू उनके पैरों के पास बैठ गई। आंसुओं से तलुआ धुलने लगा, तो श्याम के शरीर में हरकत हुई, ‘‘मत रो मन्नू। मैं रोता नहीं देख पाऊंगा