डॉमनिक की वापसी - 19

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बैटरी ख़त्म होने को आई थी पर स्टूल पर रखे फोन की घंटी बजती जा रही थी. खिड़की से आती धूप बिस्तर को छूती हुई फर्श पर फैल गई थी. भूपेन्द्र दीपांश को कई बार उठाने की कोशिश कर चुका था. अबकी बार उसने ज़ोर से झिंझोड़कर उठाया. तब तक फोन बजना बंद हो गया और एक बीप के साथ ऑफ हो गया. दीपांश ने आँखें खोलीं तो खिड़की के शीशे से टूटके बिखरती धूप आँखों में चुभती-सी लगी. सर चटक रहा था. ‘शिमोर्ग सुबह से कितनी बार फोन कर चुकी है.’ भूपेन्द्र ने अपना बैग उठाकर कंधे पर डालते हुए कहा.