सलोनी-शेखर को एक साथ जाते देखती तो प्रश्नों के तीर मारती, उनके चेहरे की भाव भंगिमा देखकर रचना धीरे से कहती दोनों बचपन से दोस्त हैं... इसीलिए शेखर सलोनी को लेने आता है... उसको आत्मग्लानि भी होती ‘‘उसे सफाई क्यों देनी पड़ती है गो कि शेखर-सलोनी मुजरिम हों... और ये जज...? तभी एक अदृश्य आवाज उसकी विचारधारा का गला घोंटने बढ़ती ’’आदिम सभ्यता की सीढ़ी पार चुके हैं हम...