खिलता है बुरांश !

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....आज सांवली शाम का जादू गायब था! वह टहलुई सी चलती रही..., मन का बेड़ा अभी अचानक उठे तूफान के बीच फंसा था...! एक पल को उसके जेहन में खौफनाक विचार उठा - समाप्त कर दे काया माँ... निर्जीव देह को अब और नहीं घसीट सकेगी वह..., जब प्राण ही देह से चले गये तो अपनी ही लाश को ढोने का क्या तुक...? मौत का सोचते ही देह में झुर्रझुर्री उठी ‘‘अभी अभी तो जिंदगी मिली थी... कितनी आसक्ति थी उसे देह से...!

Full Novel

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खिलता है बुरांश ! - 1

....आज सांवली शाम का जादू गायब था! वह टहलुई सी चलती रही..., मन का बेड़ा अभी अचानक उठे तूफान बीच फंसा था...! एक पल को उसके जेहन में खौफनाक विचार उठा - समाप्त कर दे काया माँ... निर्जीव देह को अब और नहीं घसीट सकेगी वह..., जब प्राण ही देह से चले गये तो अपनी ही लाश को ढोने का क्या तुक...? मौत का सोचते ही देह में झुर्रझुर्री उठी ‘‘अभी अभी तो जिंदगी मिली थी... कितनी आसक्ति थी उसे देह से...! ...और पढ़े

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खिलता है बुरांश ! - 2

भाई आकुल व्याकुल घर के आगे लान में टहल रहा था, बार बार मोबाइल कान पर लगाता उसे देखते झल्ला गया ‘‘ओफ्फो! एक फोन तो कर ही सकती थी न दीदी... कहाँ रह गई इतनी रात.... ‘‘उसने कलाई घड़ी देखी बारह बजने वाले हैं,’’ ऐसा भी नहीं था कि वह पूरी रात घर से बाहर न रही हो कभी, उसके पेशे में अक्सर देर रात तक भी लड़कियाँ बैठी रहती थी, लेकिन वह रात की पाली में काम नहीं कर सकती थी। कभी जरूरी काम आने पर प्रणव ही उसे देर रात घर छोड़ता पर वह कभी अंकुर को फोन करना नहीं भूलती, उसने भाई की बातों का कोई जवाब नहीं दिया, सीधे कमरे में जाकर सिटकनी लगाकर दरवाजे पर गिर पड़ी पलंग पर और बुक्का फाड़ कर रोने लगी.... ...और पढ़े

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