बुढ़ापा आ गया है, बीमार भी हूं और अब मेरे विचार अक्‍सर मृत्‍यु की ओर ही जाया करते हैं जो दिन-ब-दिन मेरे पास आ रही है। कदाचित् ही मैं भूतकाल के संबंध में सोचता हूं और शायद ही कभी मैंने अपनी आत्‍मा की आखों से अपने अतीत के जीवन की ओर मुड़कर देखा है। सिर्फ, समय-समय पर, जाड़े में जब मैं दहकती आग के सामने निश्‍चल भाव से बैठता हूं, या गर्मी में जब छायादार वृक्षों की पंक्ति के नीचे धीर-गति से टहला करता हूं तब मुझे अतीतकाल के दिन, घटनाएं और परिचित चेहरे याद आ जाते हैं, किन्‍तु ऐसे समय में भी मेरे विचार, मेरी जवानी या पकी उमर पर नहीं जाते, वे मुझे बचपन के प्रारम्‍भ की या छुटपन के शुरू के वर्षों की ही याद दिलाते हैं। मसलन मुझे उन दिनों की याद आ जाती है, जब मैं देहात में अपनी कठोर तथा गुस्सैल दादी के साथ रहा करता था, उस समय मेरी उम्र सिर्फ बारह साल की थी, और मेरी कल्‍पना के आगे दो मूर्तियां आकर खड़ी हो जाती हैं। किन्‍तु अब मैं अपनी कहानी का सिलसिले के साथ, ठीक-ठीक, वर्णन करूंगा।

Full Novel

1

स्वाभिमानी - 1

1830 बूढ़ा नौकर फिलिप्पिच दबे पांव, जैसी कि उसकी आदत थी, गले में रूमाल बांधे वहां पहुंचा। उसके होंठ खूब दबे हुए थे, जिससे उसकी सांस की गंध महसूस न हो और पेशानी के ठीक बीच में सफेद रंग के बालों का गुच्‍छा पड़ा हुआ था। उसने अन्‍दर दाखिल होकर सलाम किया और मेरी दादी के हाथ में एक लम्‍बी चिट्ठी रख दी, जिस पर मुहर लगी हुई थी। मेरी दादी ने चश्‍मा उठाया और उस पत्र को शुरू से आखिर तक पढ़ डाला। ...और पढ़े

2

स्वाभिमानी - 2

1837 सात साल बीत गये। उस समय हम लोग पहले के समान ही मास्‍को में रहते थे। किंतु अब मैं के दूसरे साल का विद्यार्थी था और मेरी दादी की, जो गत कई वर्षों से प्रत्‍यक्ष रूप में वृद्धा जान पड़ने लगी थीं, हुकूमत का भार मेरे ऊपर अब पहले जैसा नहीं रह गया था। मेरे जितने साथी छात्र थे, उनमें टारहोव नामक एक सुशील एवं प्रसन्‍न-हृदय नवयुवक था, जिसके साथ मेरी घनिष्‍ठता हो गई थी। हम दोनों के स्‍वभाव और रूचि में समानता थी। टारहोव कविता-प्रेमी था और स्‍वयं भी कविताएं लिखा करता था। मेरे हृदय क्षेत्र में पूनिन ने कविता के जो बीज बोये थे, वे निष्‍फल नहीं गये। ...और पढ़े

3

स्वाभिमानी - 3

सात नहीं, बल्कि पूरे बारह वर्ष बीत गये और मैंने अपने जीवन के बत्‍तीसवें वर्ष में पदार्पण किया था। दादी को मरे हुए बहुत दिन हो गये थे। मैं पीटर्सबर्ग-गृह विभाग के एक पद पर काम करता था। टारहोव मेरी दृष्टि से दूर हो गया था। वह फौज में भर्ती होकर चला गया था और प्राय: हमेशा प्रांतों में ही रहा करता था। हम दोनों में दो बार मुलाकात हो चुकी थी, और पुराने दोस्‍त के रूप में दूसरे को देखकर प्रसन्‍न भी हुए थे, पर बातचीत में पुरानी बातों का जिक्र नहीं आया। आखिरी बार जब हम दोनों मिले थे, उस समय वह-यदि मुझे ठीक स्‍मरण है-एक विवाहित पुरुष बन चुका था। ...और पढ़े

4

स्वाभिमानी - 4

इस घटना को बीते बारह साल गुजर गये। रूस का हरेक आदमी जानता है और बराबर याद रखेगा कि 1849 और 1861 के सालों के बीच रूस पर क्‍या-क्‍या बीती। मेरे व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत से परिवर्तन हो गये, पर उनके संबंध में अब विशेष कुछ कहने की आवश्‍यकता नहीं। जीवन में बहुत सी नई बातें और नई चिंताएं आ गई। बैबूरिन ओर उसकी पत्‍नी उस समय मेरे विचार-क्षेत्र से अलग हो गये। बाद में तो मैं उन्‍हें बिल्‍कुल ही भूल गया। फिर भी बहुत दिनों के अंतर पर कभी कभी मेरा मानसी से पत्र व्‍यवहार हो जाया करता था। कभी-कभी एक-एक वर्ष से भी अधिक समय व्‍यतीत हो जाता, और मुझे मानसी या उसके पति का कोई समाचार नहीं मिलता था। ...और पढ़े

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