पहली नज़र की चुप्पी

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बारिश की हल्की बूँदें खिड़की के शीशे से टकरा रही थीं। हवा में मिट्टी की खुशबू घुली हुई थी, जैसे ज़मीन भी अपनी कहानी सुनाने को बेचैन हो। Prakhra ने अपनी किताब बंद की, खिड़की के पास जाकर आँखें मूँद लीं। उस पल में दुनिया ठहर-सी गई थी — और उसी ठहराव में कहीं एक चेहरा था, जो उसके ज़ेहन में बसा हुआ था... Aarav। कभी-कभी ज़िंदगी किसी किताब की तरह नहीं होती, जहाँ अगले पन्ने का अंदाज़ा लग सके। कुछ मुलाक़ातें तो बस एक नज़र में पूरी कहानी लिख जाती हैं। उनकी पहली मुलाक़ात भी कुछ ऐसी ही थी..

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पहली नज़र की चुप्पी - 1

बारिश की हल्की बूँदें खिड़की के शीशे से टकरा रही थीं। हवा में मिट्टी की खुशबू घुली हुई थी, ज़मीन भी अपनी कहानी सुनाने को बेचैन हो।Prakhra ने अपनी किताब बंद की, खिड़की के पास जाकर आँखें मूँद लीं। उस पल में दुनिया ठहर-सी गई थी — और उसी ठहराव में कहीं एक चेहरा था, जो उसके ज़ेहन में बसा हुआ था... Aarav।कभी-कभी ज़िंदगी किसी किताब की तरह नहीं होती, जहाँ अगले पन्ने का अंदाज़ा लग सके। कुछ मुलाक़ातें तो बस एक नज़र में पूरी कहानी लिख जाती हैं।उनकी पहली मुलाक़ात भी कुछ ऐसी ही थी... वो कॉलेज ...और पढ़े

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पहली नज़र की चुप्पी - 2

बारिश अब भी कॉलेज की पुरानी दीवारों को छूकर गिर रही थी,जैसे हर बूँद पिछले मौसम की कोई अधूरी दोहरा रही हो।Prakhra की diary अब उसके लिए routine बन गई थी —हर पन्ने में Aarav का ज़िक्र, हर line में उसकी मुस्कान।वो खुद से पूछती, “क्या ये सिर्फ़ दोस्ती है... या कुछ ज़्यादा?”पर जवाब हमेशा एक ख़ामोशी में बदल जाता —वही ख़ामोशी जो पहली नज़र में शुरू हुई थी। हर दिन की मुलाक़ातें अब आदत बन चुकी थीं।क्लास में साथ बैठना, library की वही खिड़की,canteen की चाय की ख़ुशबू और बीच-बीच में छोटी-छोटी बातें।Aarav ज़्यादा नहीं बोलता था,पर उसकी ...और पढ़े

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पहली नज़र की चुप्पी - 3

कॉलेज की गलियों में अब एक नई पहचान बस चुकी थी —जहाँ हर सुबह की शुरुआत एक मुस्कान से और हर शाम एक चुप्पी में खत्म।वो चुप्पी अब बोझ नहीं लगती थी, बल्कि सुकून देती थी।जैसे दो आत्माएँ बिना शब्दों के भी एक-दूसरे को समझने लगी हों।Prakhra अब Aarav की मौजूदगी की आदी हो चुकी थी।क्लास में उसकी कुर्सी के बगल में बैठना,हर बार pen गिराकर उसका ध्यान खींचना,और फिर दोनों का एक साथ झुककर उसे उठाना —ये छोटे-छोटे पल अब उसकी दिनचर्या बन चुके थेAarav को भी अब उसकी कमी महसूस होती थी जब वो आसपास नहीं होती।कभी ...और पढ़े

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पहली नज़र की चुप्पी - 4

कॉलेज का वही पुराना गलियारा, वही सुबह की हल्की धूप, वही library की खामोश खुशबू…सब पहले जैसा था,लेकिन Prakhra लिए दुनिया अब पहले जैसी नहीं रही थी—क्योंकि Aarav बदल रहा था।धीरे-धीरे, चुपचाप… ऐसे जैसे हवा की दिशा बदल जाए और किसी को पता भी न चले।पहले वो दोनों साथ ही क्लास में enter करते थे,साथ में first bench लेते थे—कभी-कभी तो चारों ओर कितनी भीड़ होती थी,पर उन्हें लगता था कि दुनिया में बस वही दो लोग मौजूद हैं।पर अब…Aarav क्लास में पहले से मौजूद रहता,या फिर आख़िरी में चुपचाप आकर ऐसी जगह बैठताजहाँ Prakhra उसकी आँखें भी न ...और पढ़े

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पहली नज़र की चुप्पी - 5

कभी-कभी silence भी बहुत कुछ कह जाती है…और कभी-कभी वही silence सबसे बड़ा दर्द बन जाती है।जहाँ शब्द खत्म जाते हैं, वहीं दिल की उलझनें शुरू होती हैं।Aarav और Prakhra अब पहले जैसे नहीं रहे।कभी दोनों एक-दूसरे के रोज़मर्रा के हिस्से थे,पर अब उनकी routine में भी एक अजीब-सी कमी घुस गई थी।जो बात कभी बिना बोले समझ आ जाती थी,अब समझाने के लिए भी शब्द कम पड़ने लगे थे —जैसे दोनों के बीच कोई अदृश्य दीवार खड़ी हो गई होजिसे कोई तोड़ना नहीं चाहता, पर दोनों महसूस कर रहे थे।Prakhra अब library नहीं जाती थी।वो जगह जहाँ कभी ...और पढ़े

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