त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप

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हवा में अजीब सी घुटन थी। आसमान में बादल थे, लेकिन बिजली नहीं चमक रही थी। सिर्फ एक बेचैनी थी — जो हर दिशा से वेद को घेर रही थी। उसका गांव छोटा था, शांत और पहाड़ियों से घिरा हुआ। लेकिन पिछले कुछ दिनों से, वो हर रात एक ही सपना देख रहा था — एक विशाल किला, आग से घिरा हुआ, एक त्रिशूल जिसकी तीन नोकों से तीन रंग की लपटें निकल रही थीं — और फिर एक आवाज़ जो उसे पुकारती थी, "वेद... समय आ गया है…" वेद हर बार डर के मारे जाग जाता।

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 1

हवा में अजीब सी घुटन थी। आसमान में बादल थे, लेकिन बिजली नहीं चमक रही थी।सिर्फ एक बेचैनी थी जो हर दिशा से वेद को घेर रही थी।उसका गांव छोटा था, शांत और पहाड़ियों से घिरा हुआ।लेकिन पिछले कुछ दिनों से, वो हर रात एक ही सपना देख रहा था —एक विशाल किला, आग से घिरा हुआ,एक त्रिशूल जिसकी तीन नोकों से तीन रंग की लपटें निकल रही थीं —और फिर एक आवाज़ जो उसे पुकारती थी, "वेद... समय आ गया है…"वेद हर बार डर के मारे जाग जाता।---"आज तुम्हारा जन्मदिन है, वेद," उसकी मां ने मुस्कराते हुए कहा,"आज ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 2

Last Seen Recap:श्रेयांस, एक आम इंसान की तरह दिखने वाला युवक, अपनी दादी के मरने के बाद उस हवेली लौटता है जहाँ से बचपन में उसे दूर भेज दिया गया था। हवेली रहस्यों से भरी है, और एक अनजान पुकार उसे उसी कक्ष में ले जाती है जहाँ दादी की मौत हुई थी। दादी की राख के पास, एक जली हुई किताब और एक रहस्यमयी मुहर उसे कुछ खोलने का इशारा देती है…अब आगे..श्रेयांस ने जैसे ही राख के नीचे दबी उस पुरानी, जली हुई किताब को उठाया, उसकी उंगलियों में कुछ चुभ गया।"आह!" उसने फौरन हाथ खींचा, पर ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 3

पिछली बार आपने पढ़ा हुआ था:श्रेयांस ने उस रहस्यमयी किताब को छुआ और उसका लहू जैसे ही किताब पर एक पुरानी दीवार अचानक दरवाज़े में बदल गई। वो ‘पहला द्वार’ खुला — और वो एक गुफा जैसी सुरंग में जा पहुंचा। वहाँ उसकी मुलाकात हुई एक बूढ़े साधु से, जो उसकी पहचान पहले से जानता था...अब आगे:तू आ ही गया…बूढ़े साधु ने अपनी धुँधली आँखें उठाईं और श्रेयांस की तरफ देखा।आप मुझे जानते हैं? श्रेयांस ने हैरानी से पूछा।साधु ने सिर हिलाया मैं तुझे तब से जानता हूँ, जब तू इस दुनिया में आया भी नहीं था।श्रेयांस सन्न रह ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 4

पिछली बार क्या हुआ था:अनिरुद्ध की बंद आंखों के सामने जब एक चमकदार नीली रेखा उभरी और उसने प्रथम पार किया तो उसकी चेतना जैसे किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गई। वहाँ न समय था न जगह बस गूंजते शब्द थे एक पुराना रहस्य, और एक छवि एक रहस्यमयी स्त्री जो उसे उसी की तरह देख रही थी।इस बारआँखें खोलो अनिरुद्धये स्वर उसके कानों में हल्के से गूंजे, जैसे हवा में फुसफुसाहट हो। अचानक, उसकी पलकों ने हरकत की और उसके सामने एक बिल्कुल ही नई दुनिया खुल गई।वह अब किसी साधारण जगह पर नहीं था। चारों ओर हल्की ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 5

पिछली बार क्या हुआ था:अनिरुद्ध ने दूसरे द्वार को पार किया और संज्ञा वन में प्रवेश किया — एक जंगल जहाँ विचार ही शत्रु बन जाते हैं। द्वार ने उसे उसके अतीत के दर्द से सामना करवाया था लेकिन अब असली परीक्षा शुरू होने वाली थीअब आगे:हवा भारी थी। जंगल के हर पेड़ पर अजीब चिन्ह बने थे जो हल्की हरी आभा छोड़ रहे थे।अनिरुद्ध चारों तरफ देख रहा था लेकिन यहाँ की खामोशी उसके भीतर डर भर रही थी।ये जगह सामान्य नहीं है उसने धीरे से कहा।जैसे ही उसने सोचा उसकी ही आवाज़ पेड़ों के बीच गूँज गईसामान्य ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 6

पिछली बार:अनिरुद्ध ने संज्ञा वन में अपने भय को हराकर अग्निशक्ति जगाई थी। लेकिन तभी उसके सामने एक रहस्यमयी प्रकट हुआ — जिसने दावा किया कि वही अनिरुद्ध का भविष्य है।अब आगे:जंगल के बीच लाल आँखों वाला वो व्यक्ति खड़ा था।हवा में अजीब सी गंध घुल गई थी जैसे कहीं गीली मिट्टी में खून टपका हो।मैं तेरा भविष्य हूँउसने कहा और उसकी आवाज़ गूँजते ही पेड़ों पर बने सारे चिन्ह जलने लगे।अनिरुद्ध ने तलवार और कसकर पकड़ी। अगर तुम मेरा भविष्य हो तो मुझे साबित करो।वो आदमी हँसा — एक ठंडी, डरावनी हँसी।सच तो ये है अनिरुद्ध भविष्य तुझे ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 7

पिछली बार:अनिरुद्ध ने संज्ञा वन में अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार कर लिया था और पहली बार अपने असली सामर्थ्य पहचाना।लेकिन अब उसके सामने दर्पण था जिसमें कैद वही रहस्यमयी स्त्री दिखाई दी, जो शुरू से उसे पुकार रही थी।भविष्य की परछाईं ने कहा था अगर इसे तोड़ोगे तो रास्ता बदल जाएगा।अब आगे:जंगल की ठंडी हवा भारी हो गई थी।अनिरुद्ध के सामने दर्पण चमक रहा था, उसमें उसकी ही परछाईं और उस स्त्री की थकी, डरी हुई आँखें झलक रही थीं।मैं क्या करूँ उसने तलवार कसकर पकड़ी।उसके भीतर द्वंद्व था।दिल कह रहा था तोड़ दे, उसे बचा ले।दिमाग चिल्ला रहा ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 8

पिछली बार:अनिरुद्ध ने दर्पण तोड़कर अद्रिका को मुक्त कर लिया।उसने अपनी माँ और अपने वंश की सच्चाई की झलक अब उसके सामने उसका सबसे बड़ा शत्रु खड़ा है — उसका ही अंधकारमय रूप।अंधकार का परिचयसन्नाटा इतना गहरा था कि सिर्फ हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी।अनिरुद्ध ने तलवार कसकर पकड़ी।उसके सामने खड़ा उसका दूसरा रूप — वही शक्ल, वही आँखें, बस उनमें दया नहीं, क्रूरता थी।वो मुस्कुराया, "तो तू ही वो है जिसे लोग वंशज कहते हैं? कितना हास्यास्पद है।तेरा डर… तेरी कमजोरी… यही तेरा असली चेहरा है। और मैं उसी चेहरे का सच हूँ।"अनिरुद्ध ने जवाब दिया, ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 9

पिछली बार:अनिरुद्ध ने अपने ही अंधकारमय रूप को हराकर सुनहरी शक्ति जाग्रत की।लेकिन अद्रिका ने बताया — असली शत्रु अभी सामने ही नहीं आया।---रात का रहस्यचाँदनी रात थी।अनिरुद्ध और अद्रिका एक पुराने किले की ओर बढ़ रहे थे, जो सदियों से खंडहर था।कहा जाता था, वहाँ वो शक्ति छिपी है जिसने पूरे वंश को श्रापित किया था।जैसे ही वो किले के भीतर पहुँचे, हवा भारी हो गई।दीवारों पर काले निशान थे, जैसे किसी ने आग से उन्हें जला दिया हो।एक गहरी गूँज सुनाई दी —"तो आखिरकार वंशज मेरे दरवाज़े तक आ ही गया।"अनिरुद्ध का दिल जोर से धड़कने लगा।उसने ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 10

पिछली बार:अनिरुद्ध ने पहली बार अपने असली शत्रु — छाया का स्वामी का सामना किया।उसने जाना कि उसका पूरा उसकी तकलीफ़ें, यहाँ तक कि उसके भीतर की शक्ति भी… सब छाया की योजना का हिस्सा थे।अब युद्ध अवश्यंभावी था।---युद्धभूमि का रूपकिला काँपने लगा।दीवारों से काली लहरें उठीं और पूरा कक्ष एक अंधेरी भूलभुलैया में बदल गया।छाया का स्वामी गरजा,"अनिरुद्ध! ये तेरी कब्र बनेगी।तेरी आत्मा मेरी शक्ति को अनंत बना देगी।"अनिरुद्ध ने सुनहरी तलवार उठाई।उसकी आँखों में डर की जगह एक अजीब-सी चमक थी।"तेरी छाया कितनी भी गहरी हो…मैं रोशनी की चिंगारी हूँ।और चिंगारी ही आग भड़काने के लिए काफी ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 11

पिछली बार:अनिरुद्ध ने सुनहरी तलवार से हमला तो कर दिया, लेकिन हर वार छाया के स्वामी को और ताकतवर रहा था।अब उसकी शक्ति धीरे-धीरे अंधकार में बदल रही है।क्या वो खुद अपनी हार का कारण बन जाएगा?अंदर की लड़ाईअनिरुद्ध का हाथ काँप रहा था।उसकी हथेली से निकली सुनहरी आग अब काले धुएँ में घुलती जा रही थी।उसके पूरे शरीर से जैसे ताक़त निकलती जा रही थी।उसने खुद से कहा,"नहीं… मैं हार नहीं सकता।लेकिन… ये क्या हो रहा है? मेरी ताकत ही इसे मजबूत क्यों कर रही है?"अद्रिका उसकी तरफ झुकी,"अनिरुद्ध! अपनी साँस पर ध्यान दो।जो शक्ति बाहर निकल रही ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 12

पिछली बार:अनिरुद्ध ने अपनी अंदर की शक्ति को पहचान कर छाया के स्वामी को पराजित कर दिया।लेकिन उसने समझ कि अंधकार सिर्फ बाहर नहीं, हर मन में छिपा होता है।अब असली लड़ाई उसके सामने है — खुद को और अपने वंश को बचाना।नई शुरुआतकिले का वातावरण बदल चुका था।जहाँ पहले काले धुएँ ने सब कुछ घेर रखा था, अब वहाँ नरम सुनहरी रोशनी फैली थी।दीवारों पर बने जले निशान धीरे-धीरे मिटते गए।जंगल में चिड़ियों की आवाजें फिर सुनाई देने लगीं।अद्रिका ने मुस्कुराकर कहा,"देख अनिरुद्ध… सब कुछ नया हो सकता है, अगर मन की रोशनी बुझने न पाए।अब तेरा काम ...और पढ़े

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 13

पिछली बार:अनिरुद्ध ने अपने वंश की जिम्मेदारी संभाली और लोगों के दिलों में आशा जगानी शुरू की।अब वो गाँव-गाँव बुझी हुई उम्मीद को फिर से जलाना चाहता है।लेकिन असली चुनौती आने वाली है—एक ऐसी ताक़त जो उसकी दृढ़ता को परखेगी।आशा की यात्रासूरज की पहली किरण जब पर्वतों पर बिखरी, अनिरुद्ध और अद्रिका अपने नए सफर पर निकल पड़े।रास्ता कठिन था—टूटी पगडंडियाँ, झाड़ियों से ढके हुए मार्ग और वीरान गाँव।हर जगह अंधकार के निशान मौजूद थे।लेकिन जहाँ भी अनिरुद्ध जाता, लोग उसकी बातों से प्रेरित हो जाते।वो बच्चों के सिर पर हाथ रखता और कहता:“तुम्हारी आँखों में जो मासूमियत है, ...और पढ़े

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