पश्चिम बंगाल के कोलकाता में स्थित पांडुआ गाँव के जंगल में स्थित चंद्रताला मंदिर में वर्षों पहले राउभान नाम के चंद्रवंशी सामंत ने प्राप्त खजाने को प्रजा के हित में उपयोग किया जाए और जब तक उसकी आवश्यकता न हो, तब तक किसी अन्य राजा के हाथ न लगे, इस हेतु मंदिर में छिपाया। जिसकी रचना उस समय के गिने-चुने महान शिल्पकारों ने की थी। उन्होंने एक रहस्यमयी गुफा बनाकर उस खजाने को वहीं छिपा दिया। उस गुफा को पाने के केवल दो ही रास्ते थे – पहला, सामंत राउभान का खून या उसके वंश का खून मिलने पर ही उस गुफा के अंदर जाने का रास्ता प्राप्त किया जा सकता था।
चंद्रवंशी - परिचय
अर्पणमेरे माता-पिता को।.........प्रिय पाठकों को।आभारकहानी लिखने में मदद करने वाले, कहानी की भाषा को शुद्ध करने वाले मित्रों का हमेशा आभारी रहूँगा।मेरी अर्धांगिनी का आभार, जिन्होंने मुझे लेखन की ओर अधिक ध्यान देने में मदद की।मेरे माता-पिता का आभार, जिन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति के आशीर्वाद दिए।मेरी बहनों का आभार, जिन्होंने हर कार्य में मुझे प्रोत्साहित किया।कॉपीराइटइस पुस्तक या इसके किसी भी अंश को किसी भी प्रकार से, किसी भी माध्यम में सार्वजनिक या निजी प्रसार/व्यावसायिक तथा गैर-व्यावसायिक उद्देश्य के लिए प्रिंट/इंटरनेट (डिजिटल)/ऑडियो-विजुअल स्वरूप में लेखक-प्रकाशक की लिखित अनुमति के बिना उपयोग में लेना गैरकानूनी है।© युवराजसिंह ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 1
(सूर्यास्त का समय है, सूरज पूर्व से पश्चिम की यात्रा पूरी कर चुका है। अपनी इस यात्रा में उसने कहानियों की शुरुआत होते देखी होगी और कई कथाओं का अंत भी उसने देखा होगा। वह हर एक पल में रोया भी होगा और हर क्षण में हँसा भी होगा। यह उसका रोज़ का काम था। परंतु आज वही सूरज निराश होकर ढल गया था और चाँद को भी आने से मना कर दिया था। कौन जाने, शायद आज उसे किसी कहानी का अंत पसंद नहीं आया हो या राम जाने, उसने चाँद को भी साफ़ मना कर दिया था।)रात ...और पढ़े
चंद्रवंशी - 1 - अंक – 1.1
दूसरे दिन सुबह साढ़े छह बजे घड़ी का अलार्म बजा – "टीटी-टीट… टीटी-टीट… टीटी-टीट..." लगभग एक मिनट तक बजता जिससे जीद जाग गई। उसने माहि को भी उठा दिया। माहि अपनी आंखें मसलती हुई अपना चश्मा ढूंढ रही थी। उसका चश्मा सोफे के पीछे गिर गया था। माहि चश्मा लेकर पहनती ही है कि सामने की दीवार पर अपने अंकल की तस्वीरों को देखती है। उसने देखा कि अंकल जॉर्ज के बचपन की तस्वीर और अभी के स्वरूप में जमीन-आसमान का फर्क था। माहि के पापा हमेशा अपने भाई यानी अंकल की तारीफ किया करते थे। ये वही अंकल ...और पढ़े
चंद्रवंशी - 1 - अंक - 1.2
माही ने अपने मन में उठे पहले सवाल को पूछा: “तुम्हारी मम्मी ने अचानक ही तुम्हें कोलकाता आने की क्यों दे दी? मैंने और मेरे मम्मी-पापा ने तुम्हें वहाँ जॉब मिली, तब उन्हें मनाने के लिए कितनी रिक्वेस्ट की थी, लेकिन तब तो तुम्हारी मम्मी टस से मस नहीं हुई थीं और अब ऐसे अचानक ही तुम्हें कोलकाता जाने को कह दिया?”तब जीद हिचकिचाते हुए कहती है: “वो तो... क... क... शायद उन्हें तुम्हारे मम्मी-पापा की बात असर कर गई होगी!”“हाँ! जैसे पहले असर नहीं करती थी, है न?” हँसते हुए माही बोली।“चलो जाने दो वो बात, लेकिन कल ...और पढ़े
चंद्रवंशी - 1 - अंक - 1.3
रोम की बात सुनकर जिद हँस पड़ी। उसके दोनों हाथ उसके मुँह को ढाँकने में नाकाम रहे। उसके गाल गड्ढे को देख रहा वह अनजान लड़का बस एकटक उसे देखता रहा।“ओ तेरी…” रोम बोल पड़ा।“देख रोम, मैं तुझे इसलिए कहता हूँ कि तू एक दिन मुझे मरवा ही डालेगा।”काले शर्ट वाला लड़का ध्यान हटाकर झेंपते हुए रोम से कहता है।तभी जिद हँसते हुए : “इट्स ओके, यू आर वेरी फनी।” कहकर वहाँ से चली जाती है। थोड़ा आगे जाकर पीछे मुड़कर देखती है और मुस्कराकर फिर चलने लगती है।रोम अब उस काले शर्ट वाले को नाम से बुलाकर कहता ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 2
जिद माहिना के घर आती है। माहि का घर कोलकाता के दाजीपुर में है। माही ने दरवाज़ा खटखटाया।“हाँ आ हूँ मैं।” हिंदी और गुजराती का मिश्रण करती माही की मम्मी ने दरवाज़ा खोला।“ओहो, बहुत जल्दी आ गए बेटा।” माही की मम्मी ने प्यार भरे शब्दों से दोनों का स्वागत किया।जिद, माही की मम्मी और पापा से मिलती है। उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेती है। सब लोग पुरानी और नई बातें करते हैं और इस तरह वह शाम जिद के लिए खुशियों में बदल जाती है।रात को खाना खाकर जिद अपनी मम्मी को माही के घर के टेलीफोन से फोन ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 2 - अंक 2.1
शहर के बिलकुल बीचों-बीच चार रास्तों पर एक बड़ी बिल्डिंग थी और वह भी पूरी काँच की। “श्रीवास्तव पावर वह बिल्डिंग का नाम अंग्रेज़ी में लिखा हुआ था। वह नाम साधारण बोर्ड पर नहीं बल्कि डिजिटल बोर्ड पर लिखा गया था, जिससे रात में भी उसका नाम दिखता रहे।जीद टैक्सी की खिड़की से रास्ते पर एक साथ चल रही कई गाड़ियों और बसों को देखकर ही चौंक गई थी। जीद को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह लंदन आ गई हो। जीद की नजर उस बिल्डिंग पर पड़ी। बिल्डिंग को देखते ही उसकी नजर डिजिटल बोर्ड पर अटक ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 2 - अंक 2.2
सुबह आठ बजे के आसपास जिद की आंखें खुल गईं। उसने एक भयानक सपना देखा था। उसके माथे पर की रेखाएं उभर आई थीं। उसका चेहरा पानी-पानी हो गया था और वह अपने मुंह में जमा थूक को बाहर निकालने के लिए बिस्तर से उठने के लिए अपनी चादर हटाकर नीचे पैर रखकर खड़ी हुई। जिद ने वही रात वाले कपड़े पहने हुए थे। वह वॉशरूम में जाकर फ्रेश हो गई और माही को उठाते हुए बोली –“माही उठ... जाग जा... तूने मुझसे कहा था कि कल हम चलेंगे और मेरी मम्मी को तार भेजेंगे।जाग जल्दी से।”जिद को जैसे ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 2 - अंक 2.3
साइना अब उसके सामने खुलकर बात करती है।“मेरी कॉलेज में एक नयन नाम का लड़का था। जैसे तू जानती वैसे, पूरे भारत में सबसे अच्छी कंप्यूटर कॉलेज यही है। शायद वो भी मेरी तरह कंप्यूटर का शौकीन था। अंग्रेजी और गुजराती भाषा के अलावा वह और दो भाषाओं का विशेषज्ञ था – हिंदी और बांग्ला।”“मैंने उसे जब पहली बार देखा, तब वो भी मेरी ही तरह प्रिंसिपल की ऑफिस में एक कोने में खड़ा था। लगभग आधा साल पूरा हो चुका था हमारे पढ़ाई का। प्रिंसिपल ने हमसे सवाल किया – कल तुम दोनों मेन कंप्यूटर हॉल में क्या ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 3
रोम असिस्टेंट को देखकर प्रश्न करता है, “Can you speak Hindi?”असिस्टेंट रिंगणी कलर की शर्ट का बटन बंद करते बोला, “हाँ, मैं जानता हूँ।”“कितने वक्त से तुम यहाँ पे काम कर रहे हो?” रोम इन्वेस्टिगेशन कर रहा था। साथ-साथ पहले रोमियों की छेड़छाड़ भी। जब वह जवाब देना शुरू करता तब रोम उसकी गोल-गोल फिरती और उसकी तरफ़ देखकर धीरे-धीरे मुस्कुराता।अचानक ही उसकी नज़र जिद पर पड़ी। उसने रोमियों को थोड़ी देर बाद मिलने कहा। रोम सीधा चौथे फ्लोर पर गया और वहाँ खड़े विनय से बात की। विनय वहाँ के सिक्योरिटी से स्नेहा की जानकारी ले रहा था। ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 3 - अंक 3.1
“लगभग दस बजे हैं। मैं तुझसे कह रही थी न कि पाडुआ भले ही पास में हो, लेकिन हावड़ा के बीच से यहाँ आने में हमें दो घंटे लग ही जाएंगे।” माही बोली।पाडुआ एक छोटा सा गाँव है। वहाँ लगभग सौ से दो सौ घर बसे हुए थे। गाँव से थोड़ी दूरी पर चंद्रताला मंदिर स्थित है। उस मंदिर का एकमात्र पुजारी पाडुआ गाँव में रहता है। उसका नाम शुद्धिनाथन था। जिद की मम्मी के अनुसार, उस पुजारी के पूर्वज वर्षों से चंद्रताला मंदिर के ही पुजारी रहे हैं। इसलिए माही और जिद सबसे पहले पाडुआ गाँव के अंदर ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 3 - अंक 3.2
“माही, तुझे लगता है कि जंगल में इतनी दूर भी कोई मंदिर होगा?” जिद चलते-चलते ही बोल रही थी।“अब में आया कि वो छोटी लड़की ने उस लड़के को क्यों डरा रही थी। उसकी मम्मी तो क्या! मेरी मम्मी भी मुझे मारती।” माही बोली।लगभग पंद्रह मिनट चलने के बाद थोड़ी दूर एक मंदिर की चोटी (शिखर) दिखाई देने लगी थी। माही जिद की तरफ खुशी से देखकर उस चोटी की तरफ इशारा किया। दोनों की चलने की रफ्तार बढ़ गई। मंदिर तक पहुँचते-पहुँचते दोनों पसीने-पसीने हो गए। आसमान में मौजूद बादलों की वजह से उन्हें और ज्यादा उमस लग ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 3 - अंक 3.3
"जीद... जीद... कहां सपनों में खो गई?"अचानक माही की आवाज़ सुनकर जीद उठी और आंखें मसलते हुए बोली, "आज छुट्टी का दिन है न!""हां, लेकिन उसी छुट्टी के दिन तो तुझे किसी से मिलने जाना है। तुझे याद तो है न?" माही की बात सुनते ही जीद बोली, "अरे... हां! मैं तो भूल ही गई।" फिर अपने बेड पर ही बैठ गई।"हां तो मैडम, आज कौन से कपड़े पहनकर जाने का इरादा है?" माही बोली।"आज..." बोलकर जीद सोचने लगी।जीद ने शायद कपड़ों की पसंद नहीं की थी, ऐसा लगता माही ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "एक काम कर, हमारे ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 4
"रोम... रोम... कहाँ है तू?" विनय हेड ऑफिस में रोम को ढूंढता-ढूंढता बोला।पीछे की सीढ़ियों से रोम एकदम से और "भू..." करके उसे डराने की कोशिश की।"तेरे ये खेल कब बंद करेगा? चल, हमें स्नेहा केस के लिए आज फिर उस कोयले की खदान पर जाना है।" विनय रोम को याद दिलाते हुए बोला।"सर कौन है? मैं कि तू?" रोम अब भी मस्ती कर रहा था।"मैं!" रोम के पीछे से श्रुति आकर बोली।रोम घबरा कर एकदम विनय से चिपक गया और पीछे देखकर बोला, "मुझे लगा भूत आ गया।""तेरे लिए भूत ही समझ।" श्रुति बोली।फिर सब साथ में वहाँ ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 4 - अंक 4.1
“कैसे हुआ ये सब! हमारी कंपनी में से ही किसी ने जानकारी दी है। क्या तुम बता सकती हो है वो?” श्रेया के सामने कंपनी का मालिक यानी कि जॉर्ज खड़ा होकर प्रश्न कर रहा था।“मैं! कुछ समझी नहीं। मैं कैसे बता सकती हूँ।” श्रेया घबरा गई थी। उसके हाथ में एक फाइल थी। हाथ काँप रहे थे। श्रेया और जॉर्ज एक होटल के कमरे में खड़े थे। हालांकि, श्रेया को जॉर्ज से कोई खतरा नहीं था लेकिन उसका पार्टनर बहुत ही खतरनाक इंसान था। उसी समय किसी ने होटल के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। जॉर्ज को भी पसीना ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 4 - अंक 4.2
“ये आदम जैसा भी नाम है क्या सच में!” रोम हँसते हुए बोला।“क्यों, नाम तो कुछ भी हो सकते तो आदम में क्या दिक्कत है?” विनय बोला।“ना मुझे कोई दिक्कत नहीं है। दिक्कत तो उसे है। (हँसते हुए) उसका नाम मेरे हाथ में रखे काग़ज़ में है, इसलिए।” रोम हँसने लगा।“वो काग़ज़ नहीं है। अरेस्ट वारंट है।” विनय बोला।“अरेस्ट वारंट काग़ज़ का ही तो होता है?”“इसमें क्या समझना। अगर हम कानून के रक्षक ही वारंट की कद्र न करें, तो बाकी लोग क्या करेंगे।” विनय रोम को समझाते हुए बोला।“ये बात भी है ना! चल भाई काग़ज़, आज से ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 4 - अंक 4.3
“मुझे माफ कर देना लेकिन मैं तुमसे शादी नहीं करना चाहती।” जिद बोली।“मतलब!” विनय गुस्से हो गया।“मतलब मैं तुम्हें नहीं समझा सकती।” जिद बोली।“पर तुम्हें अचानक क्या हो गया?” माहि भी उनके साथ थी।“बस ऐसे ही।” जिद बोली।“अभी तो तुम लोग मिले हो उसका एक महीना ही हुआ है और तुम्हारा प्यार खत्म हो गया?” माहि बोली।“ना...!” जल्दी में जिद के मुँह से एक शब्द निकल गया। उसके साथ ही उसकी आँख से एक आँसू भी बह निकला और वह तुरंत कंपनीबाग से निकलकर सड़क के पास जाकर रुक गई। उसने पीछे देखा। विनय और माहि उसे ही देख ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 5
सुबहॐ सूर्याय नम: ।ॐ सूर्याय नम: ।।दो हाथों के बीच एक सोने की कलश पकड़े एक सुंदर स्त्री सरोवर किनारे सूर्य पूजा कर रही है। उसके सिर पर लगे मोगरे के फूल, उसकी जटाओं की सुंदरता को चार चाँद लगा रहे हैं। उसके दूधिया रंग की जीर्ण साड़ी को देखकर ऐसा लग रहा था मानो उसने विशाल आकाश ओढ़ लिया हो। रोज़ ऐसा लगता था जैसे सूर्य जागते ही सबसे पहले उसी को एकटक निहारता हो। उसके आसपास सूर्य की रोशनी की गर्मी नहीं, बल्कि शीतलता का अनुभव हो रहा था। उसके साथ एक दासी भी थी, जो रोज़ ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.1
सांझसांझ के समय संध्या खिली है। चारों तरफ़ चकलियाँ ही चकलियाँ उड़ रही हैं। तेज़ी से पंख फड़फड़ाती हुई के ऊपर गोल-गोल उड़ रही थीं। महल की दीवारें और नक्काशियाँ डूबते सूरज की अंतिम रौशनी का एहसास कर रही थीं। ऊपर चकलियाँ, सामने सूरज और पहाड़ों से टकरा कर लौट रही हवाएँ वातावरण को मोहक बना रही थीं। उसी समय महल की सुंदरता में भाग लेने राजकुमारी संध्या भी खिड़की पर आकर खड़ी हो गई। राजकुमारी की आँखों का काजल थोड़ा फैलकर पलकों से नीचे आ गया था। सफेद जरीदार साड़ी में सूरज की किरणें पड़ते ही राजकुमारी के ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.2
दूसरे दिन“राजा पागल हो गया है क्या?” एक वृद्ध बोला।“क्यों, क्या किया राजा ने?” वह वृद्ध की पत्नी बोली।“क्या सब कुछ ही खो दिया हमने।” वृद्ध की आशा टूट चुकी थी। वह अपनी छोटी सी कोठरी में रखे ढोलिये पर बैठ गया।अब तक उसकी पत्नी को वृद्ध की बात समझ में नहीं आई थी। इसलिए वह उससे पूछने जाने लगी, लेकिन उससे पहले ही एक युवक दौड़ता हुआ वहाँ आया।“मुखिया ओ रमणलालमुखी, पांडुआ गाँव में सिपाही आ गए हैं। चलो, अभी राजा भी आता ही होगा।” वह युवक मुखिया के भाई का बेटा था। रमणभाई पिछले ही दिन राज्य ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.3
"विनय कहाँ है तू?" सुबह के सात बजे रोम आ पहुँचा और विनय के हाथ में वो किताब देखकर उठा। "पूरी रात?"विनय ने खाली सिर "हाँ" में हिलाया।"अरे इतना तो कोई बैराने को भी ना पकड़े रखे। तू तो इस किताब को भी नहीं छोड़ता।" बोलकर रोम ज़ोर से हँसने लगा।"हाँ... हाँ... तेरा जोक श्रुति मैडम को सुना ही देना।" विनय ने किताब अपनी तिजोरी में रखी और फ्रेश होने उठ गया। उसके पैर पूरी रात बैठे रहने से काँप रहे थे। रोम उस समय उसके कमरे के बाहर जाकर चाय नाश्ते का ऑर्डर देने चला गया। थोड़ी देर ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 6
चंद्रमंदिर का रहस्यबहुत समय पहले सूर्यवंशी राजा यहाँ राज्य करते थे। उस समय बंगाल आधा समुद्र में था। पांडुआ की राजधानी थी। वह समय में समुद्र से करीब तीन किलोमीटर दूर था। जिससे समुद्र के पास का क्षेत्र रेतिला था और वह बंजर भी था। उस समय सूर्यवंशी राजाओं के सूबेदार के रूप में चंद्रवंशी राजा होते थे। जिससे युद्धों में और राज्य विस्तार में चंद्रवंशी राजाओं की बड़ी संख्या में मृत्यु होती और राज्य क्षेत्र से प्राप्त हुए सोने-जेवरात सब कुछ सूर्यवंशी राजा को सौंपना पड़ता। अगर राजा खुश हो जाए तो ही उसका थोड़ा हिस्सा मिलता। फिर ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 6 - अंक 6.2
एक तरफ सूर्यांश को गुप्तचर ने चंद्रमंदिर का रहस्य बताया, दूसरी तरफ मदनपाल को उसके पिता ग्रह रिपु ने पौराणिक ख़ज़ाने की बात बताई।राजा से निकलते ही झंगीमल मदनपाल को सामने मिला। शरण में आए झंगीमल का चेहरा बदला हुआ था, फिर भी उसे देखकर राजकुमार समझ नहीं सके कि इस सबके पीछे कहीं न कहीं झंगीमल ही है।"राजकुमार जी प्रणाम।" सामने आया झंगीमल बोला। मदनपाल वैसे तो अपने दुश्मनों को दूर ही रखता, लेकिन अपने पिता की आज्ञा के कारण उसने झंगीमल को जीवित छोड़ा। जो आज उसे प्रणाम कर रहा था। मदनपाल खुश हुआ और मन ही ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 6 - अंक 6.1
"विनय... विनय! (धीरे-धीरे आवाज़ तेज़ हो गया।)" माही विनय के पास आ पहुँची।"सॉरी माही मैं अभी तक उसे नहीं पाया।" लगातार दूसरी रात जागने से विनय की आँखें लाल हो गई थीं। पर विनय को उसकी कोई परवाह नहीं थी, उसकी आँखें तो सिर्फ़ जिद को ढूँढ रही थीं। जो माही को साफ़ दिखाई दे रहा था। इसलिए माही ने उसके हाथ में रखा एक पेपर उठाया और विनय को दिखाया।"क्या है इसमें?" विनय बोला।"आज की न्यूज़ ने मुझे और मेरे पूरे परिवार को हिला दिया है।" माही की आँखों में आँसू थे।"क्यों, क्या हुआ?" माही के हाथ से ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 6 - अंक 6.3
राजकुमारी संध्या आज शाम के समय, वही खिड़की पर रोज़ की तरह आकर खड़ी है। लेकिन, आज उसकी नज़र सूरज की ओर है और उसे देखकर ऐसा ही लग रहा था कि वह उस डूबते सूरज की नज़रों से सुर्यांश को ढूंढ रही है। थोड़ी ही देर में संध्या की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। उस समय चंद्रमा आकाश में ऊपर आ चुका था और जैसे अपनी बेटी को रोता देखकर मन ही मन पीड़ित होता हो, वह भी लाल हो गया। चंद्रमा से और देखा नहीं गया तो उसने बादलों की चादर अपने चारों ओर ओढ़ ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 7
माही अपने कमरे में बैठी है। उसके पास सायना आई है। माही के घर में अलग सन्नाटा है। सायना के साथ कंप्यूटर पर काम करती थी। यह बात माही को पता थी। जीद ने माही को सायना और नयन की बात भी बताई थी। सायना के हाथ में एक चिट्ठी थी। माही अब बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, “तो सायना, तुम्हारा कहने का मतलब है कि तुम्हारे प्रेमी नयन को स्नेहा केस की जानकारी थी। जिससे, उसे तुम्हें छोड़कर गुजरात जाना पड़ा?”सायना ने सिर हाँ में हिलाया।“मतलब कि जीद को हमारी कंपनी में लाना ये एक सोची-समझी चाल ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 7 - अंक 7.1
सुबह मदनपाल मंदिर के बाहर आया। उसी समय सूर्यांश घोड़े पर सवार उसकी नजरों के सामने सूर्य जैसी रोशनी मशाल हाथ में लेकर आगे बढ़ा। मदनपाल सूर्यांश को देखकर खुश हुआ और दोनों अपनी सवारी से उतरकर गले मिले।“सूर्यांश, कहां चला गया था?” मदनपाल बोला।“राज्य संकट में है राजकुमार।” हाथ में एक नक्शा लेकर मदनपाल के हाथ में रख दिया।नक्शा देखकर आश्चर्यचकित मदनपाल बोला, “हमारे सामने ये सारे राज्य हैं?”“हाँ!” सूर्यांश बोला। थोड़ी देर मंदिर को निहारने के बाद फिर बोला, “मुझे महाराज से मिलना है।”“महाराज! क्यों, महाराज से क्यों मिलना है?” मदनपाल बोला।“उसकी चर्चा हम रास्ते में करेंगे।” ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 7 - अंक 7.2
विनय मंदिर में प्रवेश कर चुका है। उसके साथ पांडुआ का एक वृद्ध पंडित था। वही एकमात्र इस मंदिर बारे में बताने को तैयार हुआ था। बाकी लोग पांडुआ के जंगल में कोई मंदिर है, इस बात को मानने को ही तैयार नहीं थे। वे हमेशा जंगल में आती-जाती कोयले की गाड़ियाँ देखते और चुप रहते। पंडितजी के पास ज़्यादा समय नहीं था। वह विनय को केवल मंदिर के कुछ ही रहस्य बताकर निकल जाना चाहता था।पंडित मंदिर के प्रांगण में खड़ा होकर बोला,"यह मंदिर वर्षों पहले बनवाया गया था। उस समय सूर्यवंशी राजा राज करते थे और उनके ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 7 - अंक 7.3
“जागो जागो राजकुमारीजी।” पारो सुबह-सुबह संध्या के पास आकर बोली।राजकुमारी बंद आँखें रखकर ही पारो की आवाज़ पहचानकर बोली, क्या हुआ कि इतनी सुबह-सुबह आ गई?”“राजकुमारीजी, हमें बारात लेकर जाना है।”“बारात... किसकी?” अचानक आँखें खोलते हुए संध्या बोली।“राजकुमार की;” कहते-कहते पारो रुक गई और कहा, “नहीं बारात तो मेरे भाई की जाएगी, राजकुमार तो पहले ही शादी कर चुके हैं।”सुबह के समय हाथ में दीए की रौशनी लिए खड़ी पारो को आश्चर्य से संध्या देखने लगी। फिर अचानक उठकर बोली, “भाई ने शादी कर ली है?”अचानक उठी हुई संध्या को देखकर पारो घबराकर पीछे हटती हुई बोली, “हाँ राजकुमारीजी, ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 8
चंद्रमंदिर के दरवाज़े के बाहर किसी के चलकर आने की आहट विनय के कानों में हवा की तरह टकराई। विचारों में उलझा विनय, रोम को यहाँ-वहाँ नज़र फेरकर ढूँढने लगा। पढ़ने में मग्न विनय यह भी भूल गया कि पंडित होश में आ चुका है। उसने पंडित की ओर देखा और हल्की तीखी नज़र मंदिर के कोट की तरफ फेर दी। कई साल पहले इस मंदिर में क्या हुआ होगा, इसकी परछाइयाँ उसकी नज़रें पढ़ने की कोशिश कर रही थीं। साथ ही उसके कान एक साथ उठती और गिरती आहटों की रफ्तार को परख रहे थे। थोड़ा पास आते ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 8 - अंक 8.1
धूमधाम से निकले राजकुमार की बारात में शामिल लोगों के साथ गाँव के दूसरे लोग भी जुड़ गए। यह सुर्यांश ने उन्हें रोका और बोला, “तुम कौन हो और हमारे साथ क्यों आना चाहते हो?”उसकी बात सुनकर एक घोड़े पर सवार व्यक्ति आगे आया और बोला, “मैं भोलो महाराज।”“कौन, वो जो युद्ध से भाग निकला था वही भोलो?” सुर्यांश बोला।भोलो सिर झुकाकर खड़ा रहा। उसके साथ आए लोगों में बातें उड़ने लगीं, “वो तो कहता था घायल हुआ था। आज सच्चाई पता चली कि वो तो भाग निकला था।” लोग बातें करते और हँसते।सुर्यांश फिर बोला, “अब तुझे क्या ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 8 - अंक 8.2
एक तलवार और साफ़ा सामने रखे वाणी ने घरचोलु ओढ़ा हुआ था। रूप और गुण में कोई भी खामी निकले, यह तो पूरे गाँव को मालूम था। आज वाणी की सुंदरता से स्वर्ग की अप्सराएँ भी ईर्ष्या करती हों, ऐसा मनमोहक वातावरण बनने लगा था।एक समय वाणी के विवाह का प्रस्ताव लेकर झंगीमल स्वयं उसके पिता के पास आया था। लेकिन उन्होंने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया। उस समय मदनपाल और सुर्यांश वाणी के पिता आचार्य अधी के सेवक बनकर छुपे रूप में रहते थे। झंगीमल के राज्य के सभी बलवान लोगों के सामने उन्होंने मल युद्ध खेले, तलवारबाज़ी की, ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 8 - अंक 8.3
“महाराज, राजकुमारीजी आ गई हैं।” एक दास बोला।यह बात सुनकर दौड़ते कदमों से मदनपाल और उसकी माता वहाँ पहुँच जहाँ राजकुमारी थी। हाँफते और टूटे स्वर में, आँखों में आँसू भरते हुए “मेरी बेटी!” कहकर उसकी माता उसे गले लग गई। थोड़ी देर आसपास देखने के बाद मदनपाल बोला, “सूर्यांश और बाकी सब कहाँ हैं?”सूर्यांश का नाम सुनते ही संध्या की आँखों में आँसुओं की एक लंबी धारा बह निकली। पारो ने आगे आकर जीद को मदनपाल को सौंपा। “वाणी?” मदनपाल के इस सवाल का भी कोई उत्तर नहीं था। थोड़ी देर रुककर पारो ने सारी बात मदनपाल को ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 9
पूरी चंद्रवंशी कहानी पढ़ने के बाद विनय की आँखों में भी आँसू आ गए। गाड़ी में आगे की सीट बैठकर गाड़ी चलाते हुए रोम बोला, “हर कहानी का अंत दिल को सुकून देने वाला ही होता है। लगता है कहानी अभी अधूरी होगी।”रोम के मुँह से निकले अनमोल मोती जैसे शब्द सुनकर विनय ने अपने एक हाथ से आँसू पोंछकर थोड़ा मुस्कराता चेहरा बनाते हुए कहा, “हाँ, इस कहानी का अंत भी अभी बाकी है।” और पीछे बैठे पंडित शुद्धिनाथन की ओर देखा।उसी समय पुलिस स्टेशन आ गया। विनय जीप से नीचे उतरकर जीप का नंबर देखकर बोला, “ये ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 9 - अंक - 9.1
"अच्छा हुआ जल्दी अस्पताल ले आए। उनकी हालत देखकर लगता है, मरीज ने कई दिनों से अन्न का एक भी मुँह में नहीं डाला।" डॉक्टर बोले।रूम के बाहर खड़े विनय और नयन ने यह बात सुनी। वे दोनों अंदर आए। एक बेड पर जिद सोई थी। बाजू में इंजेक्शन पड़ा था। वहीं बोतल का स्टैंड भी था। ग्लूकोज़ की बोतल में इंजेक्शन की सुई लगी थी। बेड पर अपनी चमक को त्यागकर सोई चाँदनी जैसी जिद की हालत बहुत ही खराब हो गई थी। आँखों में कुण्डली, हाथ और मुँह फीके पड़ गए थे। जिद को ऐसी स्थिति में ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 9 - अंक - 9.2
अस्पताल के बाहर हथियार से लैस होकर सौएक लोगों की भीड़ आकर खड़ी हो गई थी। उन सबके बीच सफेद रंग की एम्बैसेडर आई और धीरे से ब्रेक लगी। विनय यह सब खिड़की से देख रहा था। इतने में एक कम्पाउंडर तेज़ी से दौड़ता हुआ आया और कमरे में आकर अंदर से दरवाज़ा बंद कर दिया। जॉर्ज, श्रेया और बाकी सब स्तब्ध रह गए। जीद की आंखों में हल्का असर दिखाई दिया। विनय बाकी सब कुछ भूलकर उसकी तरफ देखने लगा। वह खिड़की छोड़कर जीद के बेड के पास आया। जीद का हाथ पकड़ा और अपने दोनों हाथों के ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 9 - अंक - 9.3
"कुछ महीने पहले मैंने अपने आदमियों को पारो के पास भेजा था। उन्होंने उसे मेरे जीवित होने की खबर लेकिन वह खुश होने के बजाय उल्टा निराश हो गई। उन्होंने उसे साथ चलने को कहा। यह सुनकर उसने साफ मना कर दिया। उसने कहा, “कह देना अपने आदमियों से कि देश में सब एक जैसे होते हैं और माँ को बेचकर बहन को बचाने का नाटक मैं अच्छी तरह जानती हूँ।”उसकी बात सुनकर मेरे आदमी हैरान रह गए। वे कुछ बोले बिना वापस लौट आए। उन्होंने मुझसे संपर्क किया और उसकी बात सुनाई। बात तो उसकी सही ही थी। ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 10
रोती हुई माही को संभालती सायना और आराध्या की आँखों में भी आँसू बह रहे थे। पंडित लालची और ज़रूर था। लेकिन किसी की ऐसी मौत अगर एक ब्राह्मण का हृदय भी न पिघला सके, तो वह ब्राह्मण कहलाने योग्य नहीं। इसलिए कुछ देर वह भी दुखी हो गया। उसके मन में भी यह विचार आया कि, चाहे अनचाहे इस पाप में उसका भी हाथ है।ऐसे कठिन समय में माही अपना होश खो दे तो मुश्किल खड़ी हो सकती है। यह सोचकर आराध्या आगे बढ़ी और रोम को माही को समझाने को कहा।"नानकी मेरी छोटी बहन है, तेरा भाई ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 10 - अंक - 10.1
ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमःॐ सों सोमाय नमःॐ ऐं क्लीं सोमाय नमःकई पंडित चंद्रताला मंदिर के प्रांगण बैठकर तीन बड़े यज्ञ कुंडों में हवन कर रहे थे। मंदिर की किले की दीवार के नीचे बड़ा गड्ढा खोदकर उसमें अग्नि प्रकट की गई थी। विनय, जॉर्ज, श्रेया और रोमियो भी बंदी हालत में वहाँ आदम के आदमियों के घेरे में खड़े थे। उसी समय राहुल, श्रुति और कोयले की खान के इंचार्ज बने पुलिसवाले को लेकर आया। आदम उन सभी के बीच बैठा था। जिद को मंदिर के गर्भगृह के बाहर खड़ा किया गया था। वहाँ उस भुंयार ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 10 - अंक - 10.2
"रोम, तू यहाँ से चला जा," विनय अंदर आए रोम को रोकते हुए बोला।रोम, विनय, जीद, माहि, साइना और तथा आदम, राहुल और उसके कुछ आदमी मंदिर के प्रांगण की दीवार में बने खजाने के द्वार पर खड़े थे। विनय रोम को समझा रहा था।"यहाँ से कहाँ जाऊँ! बाहर भी कालिया के ही लोग हैं और यहाँ मारने वाले भी हैं," रोम मुस्कराते हुए बोला।"तो बाहर कौन है?" विनय बोला।"श्रेय, रोमियो और अभी जो बोला वह," रोम जॉर्ज और श्रेया को नहीं जानता था इसलिए उन्हें अलग संबोधित करता बोला।रोम और विनय को दबाव में डालता आदम अपनी भाषा ...और पढ़े
चंद्रवंशी - अध्याय 10 - अंक - 10.3
जीद की आंखों से आंसू बहने लगे। वह विनय को संभालकर उसके दोनों हाथों के बीच लेकर बैठ गई। वह छुरी नहीं निकाल सकी। आगे बढ़ते आदम ने विनय की पीठ में छुरी थोड़ी कम गाड़ी थी, यह उसने देखा। उसके आगे बढ़ने से पहले ही रोम ने गड़ी हुई छुरी बाहर खींच निकाली। आदम का सामना रोम अकेले कर पाए ऐसा नहीं था। उनके सामने राहुल भी कुछ करने की हालत में नहीं था। उसकी त्वचा धीरे-धीरे जलने की दुर्गंध भी फैला रही थी। लेकिन तब भी आदम कुछ कम नहीं था।आदम सबको पीछे छोड़कर सोने के उस ...और पढ़े