आदिकाल से ही भारत देश में, जीवन के हर क्षेत्र में, असाधारण व्यक्तियों का प्रादुर्भाव होता रहा है। हमारा इतिहास ऐसे महान लोगों के नामों से भरा पड़ा है; जिनकी कला, साहित्य, राजनीति, विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण देन रही है। कितनों के नाम तो घर-घर लोगों की जुबान पर हैं। इनमें से बहुत-से व्यक्ति ऐसे हैं जिनका सिर्फ नाम ही लोग जानते हैं, उनके जीवनवृत्त और कार्य के बारे में लोगों की जानकारी बहुत कम है। कुछ ऐसे भी हुए हैं जिनकी उपलब्धियाँ तो असाधारण हैं, किंतु उनके संबंध में लोगों का ज्ञान न के बराबर है।
महाराजा रणजीत सिंह - परिचय
आदिकाल से ही भारत देश में, जीवन के हर क्षेत्र में, असाधारण व्यक्तियों का प्रादुर्भाव होता रहा है। हमारा ऐसे महान लोगों के नामों से भरा पड़ा है; जिनकी कला, साहित्य, राजनीति, विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण देन रही है। कितनों के नाम तो घर-घर लोगों की जुबान पर हैं। इनमें से बहुत-से व्यक्ति ऐसे हैं जिनका सिर्फ नाम ही लोग जानते हैं, उनके जीवनवृत्त और कार्य के बारे में लोगों की जानकारी बहुत कम है। कुछ ऐसे भी हुए हैं जिनकी उपलब्धियाँ तो असाधारण हैं, किंतु उनके संबंध में लोगों का ज्ञान न के बराबर है।किसी देश ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 1
पूर्वज और प्रारंभिक वर्षरणजीत सिंह किसानों के कुल में पैदा हुए। उनके पूर्वज खेती-बाड़ी करते और मवेशी पालते थे। पूर्वजों में सबसे पहले कुछ ख्याति पाने वाले थे गुजरावाला के निकट के एक गाँव सुक्करचकिया के बुध सिंह। यह माना जाता है कि उन्हें सिख धर्म की दीक्षा स्वयं गुरु गोविंद सिंह ने दी थी। वह बड़े ही दुःसाहसी थे और लूटपाट की जिंदगी बसर करते थे। ‘देसां’ नाम की एक घोड़ी थी उनकी, जिस पर वह फिदा थे और अकसर उसकी पीठ पर रावी, चिनाब और झेलम नदियों को पार कर जाते थे। 1718 ई. में बुध सिंह ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 2
प्रारंभिक विजय-अभियानबात इतनी पुरानी हो चुकी है कि औसत पाठक को रणजीत सिंह के उन विभिन्न विजय अभियानों के ब्यौरों में शायद ही कोई खास दिलचस्पी हो, जिनके फलस्वरूप अंत में वह पंजाब के महाराजा बन पाए। फिर भी, किसी आदमी को उसके कामों से अलग करके नहीं देखा जा सकता, और इसलिए उनकी जीवन-कथा के महत्व को ठीक-ठीक आँकने के लिए उन विजय अभियानों का भी थोड़ा-बहुत विवरण देना आवश्यक है।बार-बार भारत पर आक्रमण करने वाले अहमद शाह अब्दाली के पोते शाह जमन ने दुर्रानी के ही कदमों पर चलने की कोशिश करते हुए 1795 ई. में झेलम ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 3
बाद के विजय-अभियानरणजीत सिंह के राज्य का अब तेजी के साथ विस्तार हो रहा था। सन् 1800 ई. में के राजा संसार चंद ने नेपाली सेनापति थापा के एक नए आक्रमण के विरुद्ध जब फिर से रणजीत सिंह से सहायता माँगी, तो महाराजा वहाँ जा पहुँचे। पर कांगड़ा को उनके हवाले कर देने के अपने वादे को पूरा करने में जब राजा कुछ आनाकानी करता दिखाई दिया, तो रणजीत सिंह ने थापा से लड़ने की खातिर उनका किला दखल कर लिया, और आखिर थापा को खदेड़ दिया। इस युद्ध में सफलता पाने की वजह से विजयी महाराजा के प्रति ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 4
घोड़े और तोपेंकिसी ने बहुत अच्छा कहा है कि रणजीत सिंह घोड़ों और तोपों के लिए दीवाने रहते थे। के अनुसार : “तोपों के लिए महाराजा का दीवानापन और उनके वजन के लिए उनका आकर्षण इतना ज्यादा है कि किसी तोप के मिलने का कोई भी मौका वह हाथ से नहीं जाने दे सकते थे। उन्हें अगर पता चल जाए कि किसी किले में कोई तोप मौजूद है, तो वह तब तक चैन नहीं लेंगे जब तक कि उस तोप को पाने के लिए वह उस किले को ही फतह न कर लें और या फिर किले को उनसे ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 5
रणजीत सिंह का दरबारअकबर और छत्रपति शिवाजी महाराज की ही भाँति महाराजा रणजीत सिंह ने भी स्कूली शिक्षा करीब-करीब के बराबर पाई थी, फिर भी उनके अंदर बुद्धि का आलोक था और सहिष्णुता भी। उनके धर्मावलंबियों में से अधिकांश के अंदर उन दिनों जो भावना काम करती थी उसके कारण ब्राह्मणों, मुसलमानों और विदेशियों के प्रति उनके मन में द्वेष-भाव होना चाहिए था, पर उन्होंने ऐसे कितने ही लोगों को ऊँचे ओहदों पर रखा। वस्तुतः उनके दरबार में कई धर्मों और राष्ट्रों के लोग थे। हो सकता है कि धर्म-निरपेक्षता की यह नीति धार्मिक अनास्था के फलस्वरूप और गंभीर ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 6
महाराजा की फौज में यूरोपियन अफसररणजीत सिंह बड़े अच्छे सेनाध्यक्ष थे, पर उससे भी ज्यादा अच्छे संगठनकर्ता थे। युद्धों उनकी विजय का एक बड़ा कारण यह था कि सिखों की जिस फौज को पहले एक गिरोह या झुंड ही कहा जा सकता था; उसे उन्होंने एक अनुशासित, सुगठित और सुशस्त्र सज्जित सेना में परिणत कर दिया। उन्होंने यह भी महसूस कर लिया था कि उन्हें पिछली प्रथा से विपरीत सवारों के मुकाबले पैदल सेना को अधिक महत्व देना है। अंग्रेजों की पद्धति पर उन्होंने अच्छी तरह विचार किया था जिसके फलस्वरूप उन्होंने अपनी सेना में भी वही पद्धति लागू ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 7
नागरिक प्रशासनसत्ता प्राप्त करने के बाद कुछ वर्षों तक रणजीत सिंह को लड़ाइयों और कूटनीति में इतना व्यस्त रहना कि नागरिक प्रशासन की व्यवस्था करने के लिए वक्त ही नहीं मिला, किंतु वित्त विभाग की ओर जरूर उन्हें शुरू से ही ध्यान देना पड़ गया, क्योंकि अपने विजय अभियान के लिए उन्हें प्रचुर साधनों की आवश्यकता थी। धीरे-धीरे इस वित्त-विभाग से ही कई 'सरिश्तों' या विभागों के रूप में अनेक शाखाएं-प्रशाखाएं फूटने लगीं, जिनमें से प्रत्येक विभाग के कागजात को अधिकृत रूप देने के लिए अलग-अलग मोहरें थीं। इनमें से कुछ विभागों या प्रभागों का नाम उनके अधिकारी के ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 8
महाराजा की रानियाँ और परिवारअपने जैसे अन्य महान् सैनिकों की ही भाँति रणजीत सिंह भी नारी की मोहिनी शक्ति समक्ष दुर्बल थे। यही कारण है कि उनके जीवन में काफी बड़ी संख्या में नारियों का स्थान रहा—कई उनके 'जनाना' या अंतःपुर की अंग थीं, पर कुछ उससे बाहर भी। राजकुमार दलीप सिंह ने, कहा जाता है, 1889 ई. में एक फ्रांसीसी पत्रकार को बताया था कि, 'मैं अपने पिता की 46 रानियों में से किसी एक का पुत्र हूँ।' कुछ इतिहासकारों के अनुसार, यह संख्या इतनी बड़ी नहीं थी, पर इससे कुछ अधिक अंतर नहीं पड़ता। असलियत यही है ...और पढ़े
महाराजा रणजीत सिंह - भाग 9
तड़क-भड़क और धूमधामसन् 1812 ई. में खड़क सिंह की शादी ने मेटकाफ का यह अनुमान सही साबित कर दिया 'इस मौके पर जैसी धूमधाम और जितनी तड़क-भड़क होने वाली है वैसी कई साल से भारत में नहीं हुई होगी।' रणजीत सिंह ने अंग्रेज गवर्नर-जनरल को और सारे पंजाब के राजा-महाराजाओं और सरदारों को निमंत्रण भेजा। शादी में पटियाला, नाभा, जींद, कांगड़ा और कैथल के शासकों के अलावा गवर्नर-जनरल के प्रतिनिधि कर्नल ऑक्टरलोनी भी शामिल हुए। मुलतान और बहावलपुर के नवाबों को भी निमंत्रण गया था, और उनकी ओर से उनके घराने के कुछ लोग शादी में शामिल भी हुए ...और पढ़े