एक सुनसान गाँव के किनारे स्थित एक प्राचीन हवेली में सदियों पुरानी एक काली किताब छिपी हुई थी, जिसके बारे में कहा जाता था कि इसमें भूत-प्रेतों की आत्माएँ बंद हैं। हवेली की दीवारों पर समय की मार साफ झलकती थी, और उसके अंधेरे कमरे हमेशा किसी अनदेखी ताकत की उपस्थिति महसूस कराते थे। गाँव वालों में कई तरह की कहानियाँ प्रचलित थीं – कुछ कहते थे कि उस किताब को खोलने वाले का जीवन अचानक अंधकार में डूब जाता है, तो कुछ मानते थे कि उसमें छिपे मंत्रों से प्रेतात्माएँ आज भी आज़ाद हो जाती हैं।
Full Novel
काली किताब - 1
एक सुनसान गाँव के किनारे स्थित एक प्राचीन हवेली में सदियों पुरानी एक काली किताब छिपी हुई थी, जिसके में कहा जाता था कि इसमें भूत-प्रेतों की आत्माएँ बंद हैं। हवेली की दीवारों पर समय की मार साफ झलकती थी, और उसके अंधेरे कमरे हमेशा किसी अनदेखी ताकत की उपस्थिति महसूस कराते थे। गाँव वालों में कई तरह की कहानियाँ प्रचलित थीं – कुछ कहते थे कि उस किताब को खोलने वाले का जीवन अचानक अंधकार में डूब जाता है, तो कुछ मानते थे कि उसमें छिपे मंत्रों से प्रेतात्माएँ आज भी आज़ाद हो जाती हैं।एक दिन शहर से ...और पढ़े
काली किताब - 2
कई वर्षों के बीतने के बाद गाँव में फिर से एक अजीब सी हलचल मच गई थी। लोग अब उस पुरानी हवेली के बारे में फुसफुसाते थे, जहाँ काली किताब की कहानियाँ पीढ़ियों से सुनाई जाती थीं। एक युवा मनोवैज्ञानिक, वरुण, जिसे अतीत की रहस्यमयी कथाएँ जानने का अत्यधिक शौक था, ने तय किया कि वह इन कहानियों के पीछे छिपे सच का पता लगाएगा। एक बरसाती रात, जब बूंदों की टपकन ने हवेली की टूटी-फूटी दीवारों पर एक नया संगीत बिखेर दिया, वरुण उस सुनसान हवेली के पास पहुँचा।हवेली का प्रवेशद्वार खुले दरवाजे की तरह उसे आमंत्रित कर ...और पढ़े
काली किताब - 3
कुछ दिनों बाद वरुण की ज़िंदगी फिर से अजीब घटनाओं का साक्षी बनने लगी। रातों में उसे खौफनाक सपने लगे, जहाँ काली किताब के पन्नों से निकलते अंधेरे साये उसकी नींद उड़ा देते थे। दिन के उजाले में भी उसके चारों ओर कुछ अनदेखा सा महसूस होने लगा – हवेली के पास के जंगल में अजीब रोशनी झलकती, सुनसान पगडंडों पर हल्की-हल्की फुसफुसाहट गूँजती। गाँव के बुजुर्ग बताने लगे कि काली किताब केवल एक श्रापित वस्तु नहीं है, बल्कि उसका संबंध एक प्राचीन आत्मा से है, जिसे सदियों पहले एक महान साधु ने अपने शत्रुओं से बदला लेने के ...और पढ़े
काली किताब - 4
वरुण के जीवन में अब भी एक अनसुलझी पहेली बाकी थी—काली किताब भले ही शांत हो गई थी, लेकिन पूरी तरह विलुप्त नहीं हुई थी। हवेली के रहस्यों ने भले ही अपना कुछ भार हल्का कर दिया था, लेकिन वरुण के मन में अभी भी एक सवाल था: **आखिरी बलिदान क्या था?** आत्मा ने जो संकेत दिया था, उसका सही अर्थ क्या था?कुछ दिनों तक वरुण सामान्य जीवन में लौटने की कोशिश करता रहा, लेकिन रात में जब भी वह सोने जाता, उसे अजीब सपने आते। कभी उसे किताब के पन्नों पर जलते हुए अक्षर दिखते, कभी हवेली के ...और पढ़े
काली किताब - 5
कुछ महीनों तक सब कुछ सामान्य रहा। वरुण ने हवेली को पीछे छोड़ दिया और अपनी जिंदगी में आगे की कोशिश की। लेकिन कुछ चीजें इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं।एक रात, जब वरुण अपनी स्टडी में बैठा किताब पढ़ रहा था, उसे अजीब सी बेचैनी महसूस हुई। खिड़की से बाहर झाँका, तो उसे दूर जंगल की ओर हल्की-हल्की नीली रोशनी टिमटिमाती दिखी। वह झटके से उठ खड़ा हुआ। **ऐसी ही रोशनी उस दिन हवेली में भी दिखी थी, जब उसने आत्मा को मुक्त किया था।**क्या इसका मतलब था कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ?अगली सुबह, वह गाँव के ...और पढ़े
काली किताब - 6
वरुण के शरीर में अब एक अजीब ऊर्जा बह रही थी। उसका दिमाग साफ महसूस कर सकता था कि की हवा में हलचल हो रही है, पेड़ों की फुसफुसाहट अब सिर्फ हवा की सरसराहट नहीं थी—मानो वे उससे कुछ कह रहे हों। यह सब एक नया अहसास था, लेकिन इसके साथ ही एक अजीब सा डर भी था।वह धीरे-धीरे उठा और मंदिर के चारों ओर देखा। अब उसे हर चीज़ पहले से अलग लग रही थी—जैसे वह दुनिया को किसी और नजरिए से देख रहा हो। उसकी आँखें अपने आप उन प्रतीकों को समझने लगीं, जो पहले सिर्फ रहस्यमयी ...और पढ़े
काली किताब - 7
वरुण के हाथ काँप रहे थे, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा और काली किताब के पहुँचा। जैसे ही उसने उसे छूने की कोशिश की, एक ज़ोरदार झटका लगा और उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। जब उसने आँखें खोलीं, तो वह किसी और ही जगह पर था। यह हवेली का कोई पुराना कक्ष था, जहाँ दीवारों पर जली हुई तस्वीरें टंगी थीं और फर्श पर धूल की मोटी परत जमी थी।एक परछाईं सामने उभरी—वही आत्मा। लेकिन अब उसके चेहरे पर गहरी पीड़ा के निशान थे। उसने धीमे स्वर में कहा, "वरुण, मैं तुम्हें सब ...और पढ़े
काली किताब - 8
कुछ महीनों बाद, गाँव की हवेली अब एक पुरानी, सुनसान इमारत बन चुकी थी। वहाँ अब कोई आत्मा नहीं कोई अजीब घटनाएँ नहीं होती थीं, और गाँव वाले भी धीरे-धीरे उसे भूलने लगे थे। लेकिन वरुण के लिए, यह सब कभी हुआ ही नहीं था।वह अब एक अलग शहर में था, एक नई ज़िंदगी जी रहा था। उसके पास एक नौकरी थी, दोस्त थे, लेकिन जब भी कोई उससे उसके अतीत के बारे में पूछता, वह बस कंधे उचका देता। उसे खुद भी नहीं पता था कि वह पहले कौन था, कहाँ से आया था।कभी-कभी, उसे अजीब सपने आते। ...और पढ़े
काली किताब - 9
कुछ हफ्तों बाद, वरुण की ज़िंदगी फिर से सामान्य दिखने लगी थी। लेकिन भीतर ही भीतर, एक अजीब सा उसके दिल में घर कर चुका था। जब रात को वह सोने जाता, तब अक्सर उसे उन जले हुए पन्नों की महक, हवेली की टूटी दीवारों से आती ठंडी हवा, और परछाइयों की सरसराहट महसूस होती थी।एक शाम, जब वह अपनी बालकनी में बैठा चाय पी रहा था, तभी उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। वरुण ने चौंककर घड़ी देखी—रात के ग्यारह बजे कोई आने की उम्मीद नहीं थी।सावधानी से उसने दरवाज़ा खोला। बाहर कोई नहीं था। बस नीचे एक छोटा-सा ...और पढ़े
काली किताब - 10
वरुण ने आँखें बंद कीं, दिल की धड़कनों को शांत किया और मंत्र पढ़ना शुरू किया—**"अग्नि तत्वे स्वाहा, प्रकाश से मुक्त करो!"**जैसे ही उसके शब्द कमरे में गूँजे, टॉर्च की रोशनी भड़क उठी और वरुण के चारों ओर एक सुनहरी ढाल बन गई। दीवारों से निकले काले हाथ ढाल से टकराते ही राख में बदलने लगे। परछाई के चेहरे पर पहली बार घबराहट दिखाई दी।"तुम्हें रोकना होगा!" वह गरजा। उसकी आवाज़ से पूरा कमरा गूँज उठा। काले धुएँ ने एक विशाल प्राणी का रूप लिया—सैकड़ों हाथ, जली हुई आँखें और वहशी दाँत।वरुण ने किताब को दोनों हाथों से थाम ...और पढ़े
काली किताब - 11
वरुण की साँसें थम सी गईं।उस राक्षसी पुरुष की आँखों में एक ऐसा खिंचाव था, जैसे वो समय के देख सकता हो।**"तुम मुझे जानते हो?"** वरुण ने धीमे स्वर में पूछा, लेकिन उसकी उंगलियाँ किताब के पन्नों पर कस गईं।वो प्राणी उठा—उसकी लंबाई इंसानों से कहीं अधिक थी। काले लिबास में लिपटा उसका शरीर आधा धुएँ सा लग रहा था, जैसे वो स्थिर नहीं, बल्कि लहराता हो।**"जानता हूँ?"**उसकी हँसी गूँजी और दीवारों से टकरा कर गूंज उठी।**"वरुण, तुम मेरे उत्तर नहीं—मेरे परिणाम हो।"**वरुण ने झटके से किताब खोली।पन्नों पर लाल अक्षरों में एक मंत्र उभरा:**"अग्नि-चक्र मंत्र—रक्षा और आग का ...और पढ़े
काली किताब - 12 (अंतिम भाग)
मंदिर शांत था। काल-राज की गूँज अब बीते युग की परछाई बन चुकी थी।वरुण की हथेली में अब भी प्राचीन किताब थी—जिसका हर पन्ना एक ब्रह्मांड खोलता था।पर जैसे ही उसने आख़िरी पन्ना बंद किया, ज़मीन काँप उठी।अचानक, मंदिर के बीचोंबीच एक चक्र खुला—न समय में, न स्थान में।एक आवाज़ आई—**"तुमने एक संतुलन बिगाड़ा है, उत्तराधिकारी। अब तुम्हें जवाब देना होगा।"**वरुण की आँखों के आगे सब कुछ घूमने लगा।वो गिरा... जैसे समय में नहीं, बल्कि *समय के परे* फिसल रहा हो।जब होश आया, वो एक नीले-सुनहरे मैदान में था—जहाँ हर चीज़ ठहरी हुई थी। पक्षी हवा में जमे हुए, ...और पढ़े