प्यार में हार......

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"प्यार कहां किसी का पूरा होता है प्यार का तो पहला अक्षर ही अधूरा होता है..." आज से पांच साल पहले मैं इस तरह की ट्रक-छाप शायरी से कितना चिढ़ती थी। पर आज.... मैंने डायरी बंद की। चुपके से दो आंसू लुढ़ककर तकिए में समा गए। मैं मीरा देसाई, हमेशा, हर जगह, हर फील्ड में, हर हाल में टॉपर हूं। जीतना, अव्वल आना मेरी फ़ितरत है। कभी किसी से हारना सीखा ही नहीं। घर में मुझे कॉम्पिटिशन देने वाला कोई था ही नहीं। इकलौती औलाद जो हूं। कहने को एक कज़िन है, इरा। लेकिन उससे कभी बनी नहीं।

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प्यार में हार...... 1

"प्यार कहां किसी का पूरा होता है प्यार का तो पहला अक्षर ही अधूरा होता है..."आज से पांच साल मैं इस तरह की ट्रक-छाप शायरी से कितना चिढ़ती थी। पर आज....मैंने डायरी बंद की। चुपके से दो आंसू लुढ़ककर तकिए में समा गए।मैं मीरा देसाई, हमेशा, हर जगह, हर फील्ड में, हर हाल में टॉपर हूं। जीतना, अव्वल आना मेरी फ़ितरत है। कभी किसी से हारना सीखा ही नहीं।घर में मुझे कॉम्पिटिशन देने वाला कोई था ही नहीं। इकलौती औलाद जो हूं। कहने को एक कज़िन है, इरा। लेकिन उससे कभी बनी नहीं।इरा अनाथ होने के बावजूद दबी-कुचली बेचारी ...और पढ़े

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प्यार में हार....... 2

और इस कारण इरा की 'बुराइयां' और उभरकर सामने आतीं। लड़कों जैसी रहती है, लड़कों के साथ रहती है। मुंहफट है एक नम्बर की। पैसों का नशा है इसलिए बेचारी मीरा को कुछ नहीं समझती। ऐसी तेज़- तर्रार लड़कियां कभी हंसती-बसती नहीं रह सकतीं। जब जवानी का जोश ठंडा होगा, बुढ़ापे में पछताएगी।जबकि हक़ीक़त में इरा एक सीधी-सादी, मिलनसार, सच्ची, मददगार, नर्मदिल लड़की है। बस उसे बातें बनाना, मक्खन लगाना, अपना काम निकालना नहीं आता था। लेकिन उस समय तो मुझे यह सब बातें दिखती ही नहीं थीं। बस अपनी जीत पर ख़ुशी होती थी। एक अघोषित मुकाबला था, ...और पढ़े

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