काश........ लेकिन कितने???....

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शर्त बस सी थी कि दोनों जब कुछ बन जाएंगे तभी घरवालों से शादी की बात की जाएगी। उन दिनों यूनिवर्सिटी के लड़के लडकियां भी बहुत निसंकोच होकर एक दूसरे से नहीं मिल पाते थे। कम से कम अपने बारे में तो ऐसा कह ही सकता हूं मैं। मेरी मित्र मंडली के लड़के भी साथ की लड़कियों से बात करने में घबराते थे। यूनिवर्सिटी में जब भी खाली समय मिलता हम एक जगह इकठ्ठा होते या कभी कभी क्लासेज ख़त्म हो जाने के बाद भी। कुछ कविताएं पढ़ी जातीं, कुछ कहानियां गढ़ी जातीं। कुछ गीत, कुछ गजलें, सभी कुछ समय के उस छोटे टुकड़े में सम्पन्न होता। उन खुशनुमा दिनों के बीच एक डर हम सभी के मन में चोर सरीखा छिपा रहता-अनदेखे भविष्य का डर। पढ़ाई खत्म हो जाने के बाद क्या होगा? नौकरी नहीं मिली तो क्या करेंगे? कविता, कहानी या गाने बजाने से रोज़ी रोटी नहीं कमाई जा सकती है- ये एक कड़वा सच था

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काश........ लेकिन कितने???.... 1

शर्त बस सी थी कि दोनों जब कुछ बन जाएंगे तभी घरवालों से शादी की बात की जाएगी। उन यूनिवर्सिटी के लड़के लडकियां भी बहुत निसंकोच होकर एक दूसरे से नहीं मिल पाते थे। कम से कम अपने बारे में तो ऐसा कह ही सकता हूं मैं। मेरी मित्र मंडली के लड़के भी साथ की लड़कियों से बात करने में घबराते थे।यूनिवर्सिटी में जब भी खाली समय मिलता हम एक जगह इकठ्ठा होते या कभी कभी क्लासेज ख़त्म हो जाने के बाद भी। कुछ कविताएं पढ़ी जातीं, कुछ कहानियां गढ़ी जातीं। कुछ गीत, कुछ गजलें, सभी कुछ समय के ...और पढ़े

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काश.... लेकिन कितने????.. 2

उसके व्यवहार में गहरी आत्मीयता थी, स्वाभाविकता थी जिससे मैं सहज होने लगा। बातें उसने ही शुरू कीं। अकादमी ट्रेनिंग की, अनुभवों की, स्टाफ की। कुछ देर तक हम लोग पुरानी यादों में डूबते उतराते रहे। आखिरकार मैंने कह ही दिया-"ये सिगरेट कब से पीना शुरू कर दिया तुमने?""तुम कहते हो तो नहीं पीती... लो फेंक दी," वो मुस्कराई मानो उसने मेरा मन पढ़ लिया हो। वापसी में उसने मुझे घर छोड़ने का प्रस्ताव दिया जिसे मैंने टाल दियाइसके बाद हम लोग लगातार चार पांच बार मिले। हफ्ते दस दिन के अंतराल पर, छोटे शहर की छोटी छोटी छोटी ...और पढ़े

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