"तुमने कमल के पत्तों पर गिरी ओस देखी है कभी? अच्छी लगती है कितनी। है न?" नीलाभ ने पूछा। "नहीं, कभी देखी नहीं, क्योंकि वह गिरती भी है तो तुरंत फिसल जाती है। कमल के पत्तों पर कभी ठहरती नहीं हैं पानी की बूंदें। तुरंत फिसल जाती हैं उन पर से। जानती हूं, हर चीज क्षणभंगुर होती है, लेकिन कमल उन ओस की बूंदों को अपने ऊपर कुछ पल के लिए ठहरने से कभी नहीं रोकता। हर बात विश्वास और उम्मीद से जुड़ी होती है, इसलिए प्रकृति हो या नियति, उससे जुड़ी किसी भी बात पर फिलॉसफर बनने की जरूरत नहीं होती।" संध्या ने अल्हड़ता से पानी की कुछ बूंदें उस पर उछालते हुए कहा। दोनों उस समय एक झील के किनारे बैठे हुए थे। “पर पूछा क्यों? जानते तो हो कि मैं तुम्हारी तरह बेकार की उलझनों में खुद को फंसाने में यकीन नहीं रखती हूं।"

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अब चलें,,,,, - भाग 1

"तुमने कमल के पत्तों पर गिरी ओस देखी है कभी? अच्छी लगती है कितनी। है न?" नीलाभ ने पूछा।"नहीं, देखी नहीं, क्योंकि वह गिरती भी है तो तुरंत फिसल जाती है। कमल के पत्तों पर कभी ठहरती नहीं हैं पानी की बूंदें। तुरंत फिसल जाती हैं उन पर से। जानती हूं, हर चीज क्षणभंगुर होती है, लेकिन कमल उन ओस की बूंदों को अपने ऊपर कुछ पल के लिए ठहरने से कभी नहीं रोकता। हर बात विश्वास और उम्मीद से जुड़ी होती है, इसलिए प्रकृति हो या नियति, उससे जुड़ी किसी भी बात पर फिलॉसफर बनने की जरूरत नहीं ...और पढ़े

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अब चलें,,,,, - भाग 2

"बताने के लिए इतना गंभीर चेहरा बनाने की जरूरत नहीं। बिंदास होकर कहो। तुम्हारी हर बात समझ सकती हूं संध्या ने उसके होंठों को ऐसे छुआ जैसे उन पर हंसी बिखेर रही हो।"मैं तुमसे अब नहीं मिल पाऊंगा," कहते हुए नीलाभ को लगा मानो उसके स्वर में कांटों की बाड़ उग आई है। कहना इतना तकलीफदेह है तो उसके लिए सुनना कितना पीड़ादायक होगा।"हो गया मजाक तो चलें?" संध्या जोर से हंसी।"मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता। मेरी कुछ मजबूरियां हैं," नीलाभ ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए कहा।"कोई बात नहीं। मत करो अभी शादी। अपनी मजबूरियों को ...और पढ़े

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