सपने बुनते हुए

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सपने बुनते हुएकभी सुना था उसने सपने मर जाने से मर जाता है समाज आज सपने बुनते हुए भावी समाज के वह बुदबुदाया'चोर को चोर कहना ही काफी नहीं है'दो बार और फुसफुसाकर कहा पर तीसरी बार उसने हाँक लगा दी'चोर को चोर कहना ही काफी नहीं है।'तभी एक व्यक्ति दौड़कर आया'क्या कहोगे मित्र?किसी चोर को क्या कहोगे ? सांसद विधायक अधिकारी या और कुछ।"'कौन हो तुम ?'उसी रौ में वह गरज उठा 'गरजो नहीं, मैं एक चोर हूँमुझे क्या कहोगे?चोर को चोर कहनासचमुच उसका अपमान करना है।'उस ने सुना या नहीं पर चौथी हाँक लगा दी गिर पड़ा |

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सपने बुनते हुए - 1

1. सपने बुनते हुएकभी सुना था उसने सपने मर जाने से मर जाता है समाज आज सपने बुनते हुए समाज के वह बुदबुदाया'चोर को चोर कहना ही काफी नहीं है'दो बार और फुसफुसाकर कहा पर तीसरी बार उसने हाँक लगा दी'चोर को चोर कहना ही काफी नहीं है।'तभी एक व्यक्ति दौड़कर आया'क्या कहोगे मित्र?किसी चोर को क्या कहोगे ? सांसद विधायक अधिकारी या और कुछ।"'कौन हो तुम ?'उसी रौ में वह गरज उठा 'गरजो नहीं, मैं एक चोर हूँमुझे क्या कहोगे?चोर को चोर कहनासचमुच उसका अपमान करना है।'उस ने सुना या नहीं पर चौथी हाँक लगा दी गिर पड़ा ...और पढ़े

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सपने बुनते हुए - 2

14. दिनकर उगाना हैगह्वर के भीतर का घना अंधियारा और जंगल की हूक किसने उगाई यहाँ? तुमने कहा था- दिनकर उगा रहे वंचक हो कह दूँ क्या? तुम्हारे इन तंत्रों के एक एक तार जो बिखरे पड़े हैं कैसे सह पाएँगे आग, एक युग की जीवन की?किसी देश की सम्पूर्ण पीढ़ी को तीन बन्दर समझना भ्रम है उन्होंने अभी तक तुम्हें ललकारा नहीं यही क्या कम है? यह जानकर कि मेरे ओंठ सिले हैं तुम्हें सुकून मिल सकता है किन्तु सिले हुए ओंठों की आग को दिनकर उगाना है। तुम्हारे द्वारा प्रसारित अँधियारे को हज़म कर जाना है। 15. ...और पढ़े

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सपने बुनते हुए - 3

42. तुम्हीं बताओ मेरी आत्मा थी मनस्वी केवल बिटिया नहीं थी। आत्मा बिना क्या कोई जीवित रह पाता है? कहते हो मैंने तिल-तिल आत्मघात किया मुझे जीना चाहिए था अपने लिए, पति के लिए, समाज के लिए यही सदा होता है एक औसत प्राणी को मिल ही जाता है पाथेय कहते हो तुम कि मैं बनाए न रख सकी अपनी जिजीविषा को। औसत का दर्शन तुम्हारा यह लुभा न सका मुझे।शरीर का जीना क्या संभव है किसी दर्शन के सहारे बिना आत्मा के? तुम कहते हो जीने के रास्ते बहुत थे पर ये सारे रास्ते संभव हैं आत्मा का ...और पढ़े

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