वह चार साल बाद अपने घर पहुँची लेकिन गेट पर लगी कॉल-बेल का स्विच दबाने का साहस नहीं कर पाई। क़रीब दस मिनट तक खड़ी रही। उसके हाथ कई बार स्विच तक जा-जा कर ठहर गए। जून की तपा देने वाली गर्मी उसे पसीने से बराबर नहलाए हुए थी। माथे से बहता पसीना बरौनियों पर बूँद बन-बन कर उसके गालों पर गिरता, भिगोता और फिर उसके स्तनों पर टपक जाता। चढ़ती दुपहरी, चढ़ता सूरज आसमान से मानो अग्नि-वर्षा कर रहे थे। उसका गला बुरी तरह सूख रहा था। पपड़ाए होंठों पर जब वह ज़ुबान फेरती तो उसे ऐसा लगता मानो उन पर नमक की पर्त चढ़ी हुई है। सड़क पर इक्का-दुक्का लोगों के अलावा कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। उसने गेट के बग़ल में दीवार पर लगी उस नाम शिला-पट्टिका को ध्यान से देखा, जिस पर सबसे ऊपर उसके माता-पिता चंद्र-भूषण त्रिवेदी, निरुपमा त्रिवेदी और उसके ठीक नीचे चारों भाई-बहनों का नाम ख़ुदा हुआ था।
Full Novel
जेहादन - भाग 1
भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव वह चार साल बाद अपने घर पहुँची लेकिन गेट पर लगी कॉल-बेल का स्विच दबाने साहस नहीं कर पाई। क़रीब दस मिनट तक खड़ी रही। उसके हाथ कई बार स्विच तक जा-जा कर ठहर गए। जून की तपा देने वाली गर्मी उसे पसीने से बराबर नहलाए हुए थी। माथे से बहता पसीना बरौनियों पर बूँद बन-बन कर उसके गालों पर गिरता, भिगोता और फिर उसके स्तनों पर टपक जाता। चढ़ती दुपहरी, चढ़ता सूरज आसमान से मानो अग्नि-वर्षा कर रहे थे। उसका गला बुरी तरह सूख रहा था। पपड़ाए होंठों पर जब वह ज़ुबान फेरती तो ...और पढ़े
जेहादन - भाग 2
भाग -2 उसने माँ की शिक्षा का पूरा ध्यान रखा, बोली, “अम्मा आप सही कह रही हैं। मैंने भगवान एक छोटी-सी फोटो रखी हुई है, कितनी भी देर हो रही हो, ईश्वर को प्रणाम करके ही निकलती हूँ और आकर भी करती हूँ, आप घर पर यह सब करवाती थीं, यह तो आदत में है, कैसे भूल सकती हूँ।” माँ ने पूछा, “तुम्हारे ऑफ़िस में सब लोग कैसे हैं?” उसने कहा, “अम्मा वहाँ किसी को सिर उठाकर बात करने की भी फ़ुर्सत नहीं रहती और छुट्टी होते ही सभी घर की तरफ़ भागते हैं। मिलने पर बस हाय हैलो ...और पढ़े
जेहादन - भाग 3
भाग -3 लेकिन वह निखत और खुदेजा की फ़्रेंडशिप में इतने गहरे उतर गई कि उसका ध्यान भी इस नहीं गया। वह अपने पेरेंट्स भाई-बहनों से भी अपनी इन दोनों फ़्रेंड की प्रशंसा करते नहीं थकती। घरवालों को समझाया कि पहले इन्हें ठीक से समझ नहीं पाई थी। उन दोनों के घर जाने लगी। वह दोनों उसके यहाँ आने लगीं। एक दिन वह उनके साथ किसी पार्क में बैठी आइसक्रीम खा रही थी कि तभी निखत ने कहा, “कितना सुंदर पार्क है और मौसम भी। जानती हो यह सब अल्लाह का बनाया हुआ है, वह ग्रेट है। यह आसमान, ...और पढ़े
जेहादन - भाग 4
भाग -4 वह ऐसे बोलती चली जा रही थी, जैसे बहुत दिन से भरी बैठी थी और उसे छेड़ गया। निखत और खुदेजा ने कल्पना भी नहीं की थी कि वह इतना कुछ जानती ही नहीं बल्कि बोलेगी भी। दोनों अंदर ही अंदर खौलने लगी थीं। लेकिन ऊपर से बिल्कुल नॉर्मल दिखने का प्रयास करती हुई उसकी बातों को ऐसे समझती सुनती रहीं, जैसे उन्हें बहुत अच्छी लग रही हैं। लेकिन अंततः माहौल कुछ तनावपूर्ण सा होने लगा। डोर कहीं हाथ से छूट न जाए इसलिए निखत ने बड़ी चालाकी से कहा, “सुनो बड़ी भारी-भारी बातें हो गई हैं, ...और पढ़े
जेहादन - भाग 5 (अंतिम भाग)
भाग -5 इस उद्देश्य के लिए धर्मान्तरण के साथ-साथ लैंड-जिहाद को भी चलाने में जी-जान से जुटे हुए हैं। लिए देश को मज़ारों, मस्ज़िदों, मदरसों, क़ब्रिस्तानों से पाट देने का अभियान प्रचंड गति से चला रखा है। काफ़ी हद तक सफल भी हो चुके हैं, क्योंकि जिधर भी निकलो लगता है मस्ज़िदों, मज़ारों के क़बीले में आ गए हैं। सोने पे सुहागा यह कि उनके इस अभियान को गति, ऊर्जा देने के लिए कांग्रेस ने उनको उन्नीस सौ पचानवे में वक़्फ़ बोर्ड क़ानून बना कर एक ऐसा अमोघ हथियार दे दिया है, जिसके ज़रिए मात्र दस-बारह साल में ही ...और पढ़े