लुई ब्रेल सिर्फ 5 साल का था जब उसकी आंखों की रोशनी चली गई वह बहुत होशियार था और अन्य लोगों जैसी ही जिंदगी जीना चाहता था उसकी सबसे ज्यादा रुचि पढ़ने में थी पेरिस के अंधशाला में भी उसके लिए कोई किताबें नहीं थी इसलिए उसने खुद के लिए एक नई वर्णमाला रची इस प्रणाली में वह आंखों से नहीं बल्कि किताबों को उंगलियों के पोरो से छूकर पड़ सकता था उसकी प्रणाली इतनी क्रांतिकारी थी कि आज भी नेत्रहीन लोग उसका इस्तेमाल करते हैं इस प्रेरक कहानी में अजय भारद्वाज ने एक ऐसे शख्स की जीवन कथा को दर्शाया हे |
छह बिंदियाँ - 1
लुई ब्रेल सिर्फ 5 साल का था जब उसकी आंखों की रोशनी चली गई वह बहुत होशियार था और लोगों जैसी ही जिंदगी जीना चाहता था उसकी सबसे ज्यादा रुचि पढ़ने में थी पेरिस के अंधशाला में भी उसके लिए कोई किताबें नहीं थी इसलिए उसने खुद के लिए एक नई वर्णमाला रची इस प्रणाली में वह आंखों से नहीं बल्कि किताबों को उंगलियों के पोरो से छूकर पड़ सकता था उसकी प्रणाली इतनी क्रांतिकारी थी कि आज भी नेत्रहीन लोग उसका इस्तेमाल करते हैं इस प्रेरक कहानी में अजय भारद्वाज ने एक ऐसे शख्स की जीवन कथा को ...और पढ़े