अधूरी मुलाकात...

(12)
  • 18.9k
  • 5
  • 9.3k

कुछ मुलाकातों की भी अपनी ही एक अलग किस्मत होती है जो एक तय मुकाम पर ही आकर रुकती है । ऐसी मुलाकातें जाने कब, कहां और कैसे हो जाएं, ये न तो हम जानते है और न ही वो जो इससे होकर गुजरते है पर हां एक बात तो हमेशा तय रहती है कि इन्हे चाहकर भी भुलाया नही जा सकता और कोई चाहे जितना अपने जेहन से झगड़ ले पर दिल तो इन्ही मुलाकातों के पन्नों को बार-बार पलटता रहता है, भला जिद्दी जो ठहरा । ऐसी ही एक मुलाकात से आज राजीव भी गुजरने वाला था जो कॉफी शॉप पर बैठा, गर्मागर्म कॉफी की चुस्कियों के साथ अपने नोवॅल के अंतिम चैप्टर पर उलझा पड़ा था । बार-बार शब्दों से उलझते हुए उसकी अंगुलियां लेपटॉप के डिलीट बटन पर आकर रुक जाती और फिर न चाहते हुए भी स्क्रीन पर उभरे शब्द एक-एक करके गुमनामी की दुनिया में विलीन हो जाते । सांसो में घुलती कॉफी की सुगंध, रह-रहकर उसके दिलोदिमाग को मुग्ध कर जाती । आस-पास बैठे लोगो की गुफ्तगू से अनजान, वो अपने ही मन की गलियों में अपनी कहानी के किरदारों के साथ खोया हुआ सा था । कुछ सूझता तो झट से उसकी अंगुलियां लेपटॉप पर चल पड़ती पर वही अगले ही पल अपने ख़यालों से झगड़कर वो फिर उलझ जाता ।

Full Novel

1

अधूरी मुलाकात... - 1

कुछ मुलाकातों की भी अपनी ही एक अलग किस्मत होती है जो एक तय मुकाम पर ही आकर रुकती ।ऐसी मुलाकातें जाने कब, कहां और कैसे हो जाएं, ये न तो हम जानते है और न ही वो जो इससे होकर गुजरते है पर हां एक बात तो हमेशा तय रहती है कि इन्हे चाहकर भी भुलाया नही जा सकता और कोई चाहे जितना अपने जेहन से झगड़ ले पर दिल तो इन्ही मुलाकातों के पन्नों को बार-बार पलटता रहता है, भला जिद्दी जो ठहरा । ऐसी ही एक मुलाकात से आज राजीव भी गुजरने वाला था जो कॉफी ...और पढ़े

2

अधूरी मुलाकात... - 2

कॉफी के कप में उठते धुएं को फूंक मारकर उड़ाती हुई अर्चना रह-रहकर कप को होंठो तक ले आती फिर बारिश की बूंदो में सुकून ढूंढने का असफल प्रयास करती । अब क्या लिखता वो, लफ्ज़ तो कुछ पल पहले ही उसका साथ छोड़ चले थे अब तो बस लेपटॉप के भटकते कर्सर को वो सिर्फ ताक ही सकता था कि अचानक अनचाहे कदमों के आगमन से राजीव चौंक उठा । नजरें उठाकर देखा तो उसने वेटर को पाया जो उससे आगे के ऑर्डर की फरमाइश करता दिखा । राजीव ने न चाहते हुए भी एक कॉफी मंगवा ली ...और पढ़े

3

अधूरी मुलाकात... - 3

राजीव ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखकर, जवाब का इंतजार किया और अर्चना अपने दिमाग पर जोर देते हुए भुले-बिसरे शब्द अपने होंठो पर जुटा ही रही थी कि राजीव बोल पड़ा,” बारिश की हर एक बूंद का स्वाद चखना है, मुझको । कुछ यूं भीगना है आज मुझे कि…”तभी अर्चना ने आखिरी वाक्य को खत्म करते हुए कहा, ” अपने तन से घुलकर, रुह मे मिल जाऊं कही, ” ।राजीव का चेहरा दमक उठा पर वही अर्चना शायद अपने बीते कल में ही कही ठहर गई कि उसकी नजरें गुमराह हो चली । ”हैरानी होती है मुझे, कि ...और पढ़े

4

अधूरी मुलाकात... - 4

राजीव उसकी बात पर सिर हिलाकर सिर्फ मुस्कुरा पाया और बदले में अर्चना भी मुस्कुरा उठी । कुछ ही बाद वो उसकी नजरों से दूर होती चली गई और राजीव बिना पलकें झपकाए, शीशे की आड़ में उसे तब तक देखता रहा जब तक की वो उसकी आंखो से ओझल नहीं हो गई । न जाने क्यो मन ये ख्याल पाल बैठा था कि शायद वो उसी दरवाजे से वापस चली आए, जहां से वो खो गई थी, बस इसी इंतजार में राजीव यूं ही टेबल पर कुछ पल बैठा रहा । पर वो वापस नही लौटी । वो ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प