बड़े बेटे संतकुमार को वकील बना कर, छोटे बेटे साधुकुमार को बी.ए. की डिग्री दिला कर और छोटी लड़की पंकजा के विवाह के लिए स्त्री के हाथों में पाँच हजार रुपए नकद रख कर देवकुमार ने समझ लिया कि वह जीवन के कर्तव्य से मुक्त हो गए और जीवन में जो कुछ शेष रहा है, उसे ईश्वरचिंतन के अर्पण कर सकते हैं। आज चाहे कोई उन पर अपनी जायदाद को भोग-विलास में उड़ा देने का इलजाम लगाए, चाहे साहित्य के अनुष्ठान में, लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि उनकी आत्मा विशाल थी। यह असंभव था कि कोई उनसे मदद माँगे और निराश हो। भोग-विलास जवानी का नशा था। और जीवन भर वह उस क्षति की पूर्ति करते रहे, लेकिन साहित्य-सेवा के सिवा उन्हें और किसी काम में रुचि न हुई और यहाँ धन कहाँ ? - यश मिला और उनके आत्मसंतोष के लिए इतना काफी था।संचय में उनका विश्वास भी न था। संभव है, परिस्थिति ने इस विश्वास को दृढ़ किया हो, लेकिन उन्हें कभी संचय न कर सकने का दुख नहीं हुआ। सम्मान के साथ अपना निबाह होता जाए, इससे ज्यादा वह और कुछ न चाहते थे। साहित्य-रसिकों में जो एक अकड़ होती है,चाहे उसे शेखी ही क्यों न कह लो, वह उनमें भी थी। कितने ही रईस और राजे इच्छुक थे कि वह उनके दरबार में जाएँ, अपनी रचनाएँ सुनाएँ उनको भेंट करें, लेकिन देवकुमार ने आत्म-सम्मान को कभी हाथ से न जाने दिया। किसी ने बुलाया भी तो धन्यवाद दे कर टाल गए। इतना ही नहीं, वह यह भी चाहते थे कि राजे और रईस मेरे द्वार पर आएँ, मेरी खुशामद करें, जो अनहोनी बात थी। अपने कई मंदबुद्धि सहपाठियों को वकालत या दूसरे सींगों में धन के ढेर लगाते, जाएदादें खरीदते, नए-नए मकान बनवाते देख कर कभी-कभी उन्हें अपनी दशा पर खेद होता था, विशेषकर जब उनकी जन्म-संगिनी शैव्या गृहस्थी की चिंताओं से जल कर उन्हें कटु वचन सुनाने लगती थी,पर अपने रचना-कुटीर में कलम हाथ में ले कर बैठते ही वह सब कुछ भूल साहित्य-स्वर्ग में पहुँच जाते थे, आत्म-गौरव जाग उठता था। सारा अवसाद और विषाद शांत हो जाता था।।
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मंगलसूत्र - 1
मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंद बड़े बेटे संतकुमार को वकील बना कर, छोटे बेटे साधुकुमार को बी.ए. की डिग्री कर और छोटी लड़की पंकजा के विवाह के लिए स्त्री के हाथों में पाँच हजार रुपए नकद रख कर देवकुमार ने समझ लिया कि वह जीवन के कर्तव्य से मुक्त हो गए और जीवन में जो कुछ शेष रहा है, उसे ईश्वरचिंतन के अर्पण कर सकते हैं। आज चाहे कोई उन पर अपनी जायदाद को भोग-विलास में उड़ा देने का इलजाम लगाए, चाहे साहित्य के अनुष्ठान में, लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि उनकी आत्मा विशाल थी। यह ...और पढ़े
मंगलसूत्र - 2
मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंदशैव्या ने पूछा - संतू कहाँ रह गया? चाय ठंडी हो जाएगी तो कहेगा यह पानी है। बुला ले तो साधु; इसे जैसे खाने-पीने की भी छुट्टी नहीं मिलती।साधु सिर झुका कर रह गया। संतकुमार से बोलते उनकी जान निकलती थी।शैव्या ने एक क्षण बाद फिर कहा - उसे भी क्यों नहीं बुला लेता?साधु ने दबी जबान से कहा - नहीं, बिगड़ जाएँगे सवेरे-सवेरे तो मेरा सारा दिन खराब हो जाएगा।इतने में संत कुमार भी आ गया। शक्ल-सूरत में छोटे भाई से मिलता-जुलता, केवल शरीर का गठन उतना अच्छा न था। हाँ, मुख पर तेज ...और पढ़े
मंगलसूत्र - 3
मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंदसंत कुमार की स्त्री पुष्पा बिल्कुल फूल-सी है, सुंदर, नाजुक, हलकी-फुलकी, लजाधुर, लेकिन एक नंबर आत्माभिमानिनी है। एक-एक बात के लिए वह कई-कई दिन रूठी रह सकती है। और उसका रूठना भी सर्वथा नई डिजाइन का है। वह किसी से कुछ कहती नहीं,लड़ती नहीं, बिगड़ती नहीं, घर का सब काम-काज उसी तन्मयता से करती है बल्कि और ज्यादा एकाग्रता से। बस जिससे नाराज होती है उसकी ओर ताकती नहीं। वह जो कुछ कहेगा, वह करेगी, वह जो कुछ पूछेगा, जवाब देगी, वह जो कुछ माँगेगा, उठा कर दे देगी, मगर बिना उसकी ओर ताके हुए। ...और पढ़े
मंगलसूत्र - 4
मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंददुविधा में पड़ कर बोला - मगर सभी स्त्रियाँ मिस बटलर तो नहीं हो सकतीं?पुष्पा आवेश के साथ कहा - क्यों? अगर वह डॉक्टरी पढ़ कर अपना व्यवसाय कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकती?- उनके समाज में और हमारे समाज में बड़ा अंतर है।- अर्थात उनके समाज के पुरुष शिष्ट हैं, शीलवान हैं, और हमारे समाज के पुरुष चरित्रहीन हैं, लंपट हैं, विशेषकर जो पढ़े-लिखे हैं।- यह क्यों नहीं कहती कि उस समाज में नारियों में आत्मबल है, अपनी रक्षा करने की शक्ति है और पुरुषों को काबू में रखने की कला ...और पढ़े
मंगलसूत्र - 5
मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंदसंतकुमार ने भाषण समाप्त करके जब उससे कोई जवाब न पाया तो एक क्षण के बोला - क्या सोच रही हो? मैं तुमसे सच कहता हूँ, मैं बहुत जल्द रुपए दे दूँगापुष्पा ने निश्चल भाव से कहा - तुम्हें कहना हो जा कर खुद कहो, मैं तो नहीं लिख सकती।संतकुमार ने होंठ चबा कर कहा - जरा-सी बात तुम से नहीं लिखी जाती, उस पर दावा यह है कि घर पर मेरा भी अधिकार है।पुष्पा ने जोश के साथ कहा - मेरा अधिकार तो उसी क्षण हो गया जब मेरी गाँठ तुमसे बँधी।संतकुमार ने गर्व ...और पढ़े
मंगलसूत्र - 6
मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंदसाधु चला गया तो पुष्पा फिर उसी खयाल में डूबी - कैसे अपना बोझ उठाए। तो पतिदेव उस पर यह रोब जमाते हैं। जानते हैं कि इसे चाहे जितना सताओ, कहीं जा नही सकती, कुछ बोल नहीं सकती। हाँ, उनका खयाल ठीक है। उसे विलास वस्तुओं से रुचि है। वह अच्छा खाना चाहती है, आराम से रहना चाहती है एक बार वह विलास का मोह त्याग दे और त्याग करना सीख ले, फिर उस पर कौन रोब जमा सकेगा, फिर वह क्यों किसी से दबेगी।शाम हो गई थी। पुष्पा खिड़की के सामने खड़ी बाहर की ...और पढ़े
मंगलसूत्र - 7
मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंदबूढ़ा नौकर बहुत दिनों का था। स्वामिनी उसे बहुत मानती थीं। उनके देहांत होने के उसे कोई विशेष प्रलोभन न था, क्योंकि इससे एक-दो रुपया ज्यादा वेतन पर उसे नौकरी मिल सकती थी, पर स्वामिनी के प्रति उसे जो श्रद्धा थी वह उसे इस घर से बाँधे हुए थी। और यहाँ अनादर और अपमान सब कुछ सह कर भी वह चिपटा हुआ था। सब-जज साहब भी उसे डाँटते रहते थे, पर उनके डाँटने का उसे दुख न होता था। वह उम्र में उसके जोड़ के थे। लेकिन त्रिवेणी को तो उसने गोद खिलाया था। अब ...और पढ़े
मंगलसूत्र - 8
मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंदऔर दोनों मित्र उठ खड़े हुए। देवकुमार कभी कानून के जाल में न फँसे थे। और बुकसेलरों ने उन्हें बारहा धोखे दिए, मगर उन्होंने कभी कानून की शरण न ली। उनके जीवन की नीति थी - आप भला तो जग भला, और उन्होंने हमेशा इस नीति का पालन किया था, मगर वह दब्बू या डरपोक न थे। खासकर सिद्धांत के मुआमले में तो वह समझौता करना जानते ही न थे। वह इस षडयंत्र में कभी शरीक न होंगे, चाहे इधर की दुनिया उधर हो जाए। मगर क्या यह सब सचमुच उन्हें पागल साबित कर देंगें? ...और पढ़े