उन्होंने कहा था कि अपनी शायरी का जितना मुन्किर मैं हूँ, उतना मुन्किर मेरा कोई बदतरीन दुश्मन भी ना होगा। कभी कभी तो मुझे अपनी शायरी बुरी, बेतुकी लगती है इसलिए अब तक मेरा कोई मज्मूआ शाया नहीं हुआ। और जब तक खुदा ही शाया नहीं कराएगा उस वक्त तक शाया होगा भी नहीं। तो ये इंकार का आलम था.. जौन ने मोहब्बत को लज़्ज़ते हयात कहा लेकिन शायद ख़ुद उनकी मोहब्बत बेलज़्ज़त रही। और इस ज़ायक़े को बदलने के लिए उन्होने शराब से महोब्बत कर ली। शराब इतनी पी के बाद में शराब उन्हें पीने लगी. शोअरा के हुजूम में जौन एक ऐसे लहजे के शायर हैं जिनका अंदाज़ न आने वाला कोई शायर अपना सका.. न गुज़रने वाले किसी शायर के अंदाज़ से उनका अंदाज़ मिलता है। जौन इश्क़ और महोब्बत के मौज़ूआत को दोबारा ग़जल में खींच कर लाए। लेकिन हां वो रिवायत के रंग में नहीं रंगे। बल्कि उन्होने इस क़दीम मौज़ू को ऐसे अंदाज़ से बर्ता कि गुज़रे जमाने की बातें भी नयी नज़र आयीं।

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सैयद अब्बास - 1

उन्होंने कहा था कि अपनी शायरी का जितना मुन्किर मैं हूँ, उतना मुन्किर मेरा कोई बदतरीन दुश्मन भी ना कभी कभी तो मुझे अपनी शायरी बुरी, बेतुकी लगती है इसलिए अब तक मेरा कोई मज्मूआ शाया नहीं हुआ। और जब तक खुदा ही शाया नहीं कराएगा उस वक्त तक शाया होगा भी नहीं। तो ये इंकार का आलम था..जौन ने मोहब्बत को लज़्ज़ते हयात कहा लेकिन शायद ख़ुद उनकी मोहब्बत बेलज़्ज़त रही। और इस ज़ायक़े को बदलने के लिए उन्होने शराब से महोब्बत कर ली। शराब इतनी पी के बाद में शराब उन्हें पीने लगी. शोअरा के हुजूम में ...और पढ़े

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सैयद अब्बास - 2

सैयद अब्बास मेहदी रिजवी/ नई दिल्ली: उर्दू शायरी के चमिनस्तान में हज़ारों फूलों ने अपनी ख़ुशबू बिखेरी है। वक़्त गुज़रते गए और नए नए फूल चमन को आबाद करते गए। लेकिन कुछ ख़ुशबुओं का एहसास आज भी लोगों के दिलो दिमाग़ पर छाया हुआ है। उन्ही गुलों के हुजूम में एक फूल खिला जिसे दुनिया ने जौन एलिया के नाम से जाना और पहचाना।मैं जो हूं जौन एलिया हूं जनाबइसका बेहद लिहाज़ कीजिएगा।।जौन उर्दू शायरी के एक आबाद शहर का नाम था। जिसकी दीवारों पर इश्क़ के क़िस्से लिखे थे. जिसकी मुंडेरों पर उल्फ़त के चिराग़ जल रहे थे। ...और पढ़े

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