इश्क पर ज़ोर नहीं

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सुबह सुबह का समय है। दिल्ली के जमुना के दरिया के पास तीन लोग अपने अपने हाथ में लाल कपड़े से ढका कलश लिए खड़े हैं। ठंडी हवाएं चल रही है। उन हवाओं से दरिया का पानी छलक रहा है। उसी शाम दूसरी जगह: हल्की हल्की शाम है। मौसम में लाली है। एक बगीचे के अंदर बेंच पर बैठा सुशांत अपनी डायरी में कुछ लिख रहा है। तभी वहाँ शीतल नाम की एक लड़की सुशांत को देखते हुए उसके पास आई। सुशांत शीतल को देख कर थोड़ा घबरा गया और उससे नजरें चुराने लगा। शीतल ने सुशांत को आवाज दी और उसके पास आकार बैठ गई। शीतल ने सुशांत से उसका हाल-चाल पूछा। लेकिन सुशांत कुछ भी बताने की परिस्थिति में नहीं था। वो रोई आँखों से शीतल को सिर्फ देख ही रहा था। शीतल ने सुशांत को शांत किया। सुशांत थोड़ा शांत हुआ। सुशांत ने शीतल से बात ही शुरू की थी की तभी मीरा गाना गुनगुनाते हुए आ गई।

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इश्क पर ज़ोर नहीं - भाग 1 - मीरा

इस कहानी पर ज़्यादा चर्चा ना करते हुए सिर्फ एक बात कहना चाहूँगा। इश्क पर दुनिया की किसी ताकत ज़ोर नहीं। कहानी को अंत तक ज़रूर पढें और अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें। ये कहानी आपको अपने इर्द गिर्द घूमती हुई नज़र आएगी। ये कहानी का पहला भाग है। आपकी प्रतिक्रिया के ऊपर ही मैं अगला भाग लेकर आऊंगा। ...और पढ़े

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