श्रीमत् अष्टावक्रगीता का हिन्दी अनुवाद

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** हे प्रभो ! (पुरुषः ) ज्ञानम् कथम् अवाप्नोति । (पुंसः) मुक्तिः कथम् भविष्यति । ( पुंसः) वैराग्यम् च कथम् प्राप्तम् ( भवति ) एतत् मम ब्रूहि ॥१॥ Old king Janak asks the young Ashtavakra - How knowledge is attained, how liberation is attained and how non-attachment is attained, please tell me all this.॥ वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं एक समय मिथिलाधिपति राजा जनक के मन में पूर्वपुण्य के प्रभाव से इस प्रकार जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि, इस असार संसाररूपी बंधन से किस प्रकार मुक्ति होगी और तदनंतर उन्होंने ऐसा भी विचार किया कि, किसी ब्रह्मज्ञानी गुरु के समीप जाना चाहिये, इसी अंतर में उन को ब्रह्मज्ञान के मानो समुद्र परम दयालु श्रीअष्टावक्रजी मिले । इन मुनि की आकृति को देखकर राजा जनक के मन में यह अभिमान हुआ कि, यह ब्राह्मण अंत्यत ही कुरूप है । तब दूसरे के चित्त का वृत्तांत जाननेवाले अष्टावक्रजी राजा के मन का भी विचार दिव्यदृष्टि के द्वारा जानकर राजा जनक से बोले कि, हे राजन् ! देहदृष्टि को छोडकर यदि आत्मदृष्टि करोगे तो यह देह टेढा है परंतु इस में स्थित आत्मा टेढा नहीं है, जिस प्रकार नदी टेढी होती है परंतु उस का जल टेढा नहीं होता है, जिस प्रकार इक्षु (गन्ना) टेढा होता है परंतु उस का रस टेढा नहीं है।

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श्रीमत् अष्टावक्रगीता का हिन्दी अनुवाद - भाग 1

अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का ग्रन्थ है जो ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद के रूप में है। उपनिषद और ब्रह्मसूत्र के सामान अष्टावक्र गीता अमूल्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति और समाधिस्थ योगी की दशा का सविस्तार वर्णन है। ****** श्रीमत् अष्टावक्रगीता का हिन्दी अनुवाद ॥ श्रीः ॥ अथ: कथं ज्ञानमवाप्नोति कथं मुक्तिर्भविष्यति ।वैराग्यं च कथं प्राप्तमेतद्ब्रूहि मम प्रभो॥१॥ ** हे प्रभो ! (पुरुषः ) ज्ञानम् कथम् अवाप्नोति । (पुंसः) मुक्तिः कथम् भविष्यति । ( पुंसः) वैराग्यम् च कथम् प्राप्तम् ( भवति ) एतत् मम ब्रूहि ॥१॥ Old king Janak asks the young Ashtavakra ...और पढ़े

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श्रीमत् अष्टावक्रगीता का हिन्दी अनुवाद - भाग 2

अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का ग्रन्थ है जो ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद के रूप में है। उपनिषद और ब्रह्मसूत्र के सामान अष्टावक्र गीता अमूल्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति और समाधिस्थ योगी की दशा का सविस्तार वर्णन है।महापंडित एवं विद्वान अष्टावक्र की बुद्धिमत्ता से हम सब भली भॉति परिचित है। जनक की सभा मे उन्होने बंदी से शास्त्रार्थ करके अपनी विद्वता का परिचय दिया था। और बंदी को उनके अहंकार के बारे मे ज्ञात करवाया था। उन्ही के द्वारा रचित महागीता का यहाँ दूसरा अध्याय प्रस्तुत है। ****द्वितीयोंः अध्यायः’’’’’’ श्रीमत् अष्टावक्रगीताका हिन्दी अनुवाद॥ ...और पढ़े

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