विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...!

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रात में चांद अपने पूरे आकार में चमक रहा था, और आज की ये रात अमावस की काली अंधेरी रात थी! मिर्ज़ा पुर रेलवे फाटक के उस पार एक स्टेशन है, और उस स्टेशन से कुछ एक दो घंटे की दूरी पे कब्रिस्तान है, और उस कब्रिस्तान के बाहर ही कुछ लोग खूब एक दूसरे को खरी खोटी सुनाए जा रहें थे, देखने से लग रहा था, जैसे पूरी एक फैमली लग रहे थे वो, दो लड़के थे एक आदमी और एक औरत आदमी की उम्र यहीं कोई चालीस लग रही थी, और उस औरत की उम्र यकीनन तो नही पर शायद बतीस लग रही थी! उन दोनों लड़कों में से एक की उम्र लगभग पच्चीस छब्बीस साल लग रही थी तो दूसरा बीस बाइस साल का लग रहा था! ना जानें क्यों और किस बात पे लड़ रहें थे, दोनों भाई नही पता! रात का अंधेरा इतना था की कुछ साफ न तो दिखाई दिया और ना ही सुनाई दिया!

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विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 1

रात में चांद अपने पूरे आकार में चमक रहा था, और आज की ये रात अमावस की काली अंधेरी थी! मिर्ज़ा पुर रेलवे फाटक के उस पार एक स्टेशन है, और उस स्टेशन से कुछ एक दो घंटे की दूरी पे कब्रिस्तान है, और उस कब्रिस्तान के बाहर ही कुछ लोग खूब एक दूसरे को खरी खोटी सुनाए जा रहें थे, देखने से लग रहा था, जैसे पूरी एक फैमली लग रहे थे वो, दो लड़के थे एक आदमी और एक औरत आदमी की उम्र यहीं कोई चालीस लग रही थी, और उस औरत की उम्र यकीनन तो नही ...और पढ़े

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विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 2

रात में चांद अपने पूरे आकार में चमक रहा था, और आज की ये रात अमावस की काली अंधेरी थी! मिर्ज़ा पुर रेलवे फाटक के उस पार एक स्टेशन है, और उस स्टेशन से कुछ एक दो घंटे की दूरी पे कब्रिस्तान है, और उस कब्रिस्तान के बाहर ही कुछ लोग खूब एक दूसरे को खरी खोटी सुनाए जा रहें थे, देखने से लग रहा था, जैसे पूरी एक फैमली लग रहे थे वो, दो लड़के थे एक आदमी और एक औरत आदमी की उम्र यहीं कोई चालीस लग रही थी, और उस औरत की उम्र यकीनन तो नही ...और पढ़े

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विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 3

पता किस धुन में थी की घर से इतनी दूर निकल आई और उसे पता ही नहीं चला, वहीं एक घना और बहुत ही सुंदर सा पेड़ था, उस पेड़ के पीछे से एक जोड़ी आँखें अरू को ही देख रही थीं! अरु भी जैसे उसे देखने की चाह में उसकी ही ओर खींच जा रही हो! धींमें कदमों के साथ वो रेलवे फाटक की और बढ़ने लगी जैसे ही उस पार जानें को हुई के तभी दूर से आती ट्रेन की आवाज़ सुनाई दी और धीरे धीरे ट्रेन की आवाज़ तेज़ होने लगी और देखते ही देखते ट्रेन ...और पढ़े

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विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 4

और उस खुशबू के पीछे पीछे चल पड़ती है!चलते चलते उसी अनोखे वृक्ष के पास पहुंच जाती है और ही गौर से उस वृक्ष को देखने लगती है उस वृक्ष के पीछे से ही फिर से वहीं एक जोड़ी आँखें देख रही थी, अरुंधति को जैसे ही एहसास होता है की कोई उसे देख रहा है पेड़ के पीछे से तो वो उस वृक्ष के इर्द गिर्द घूम के देखती है तो कोई नही होता है वहाँ पर उस वृक्ष से आती खुशबू से जैसे सम्मोहित सी हुई जा रही थी!अरुंधति धीरे धीरे उस पेड़ के और करीब जाके ...और पढ़े

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